Education Ministry UDISE Report: देश में शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम और सफलता मिली है. नई रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूलों में पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में पिछले कई वर्षों के मुकाबले अब सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है. शिक्षा मंत्रालय के प्रयासों और नई नीतियों के सकारात्मक असर से 2024-25 के शैक्षणिक सत्र में प्राइमरी से लेकर सेकेंडरी स्तर तक ड्रॉपआउट रेट में उल्लेखनीय कमी आई है.
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE ) की ताजा रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि देश में पहली बार स्कूलों में शिक्षक संख्या एक करोड़ के पार पहुंच गई है, जिसमें महिला शिक्षकों का अनुपात पुरुषों से भी ज्यादा हो गया है. यह परिवर्तन न केवल शिक्षा के विस्तार का संकेत है, बल्कि गुणवत्ता में सुधार का भी प्रमाण है.
छात्रों की पढ़ाई जारी रखने की उम्मीदें बढ़ीं
2024-25 में प्राइमरी स्तर पर ड्रॉपआउट रेट केवल 2.3 प्रतिशत दर्ज किया गया, जो 2022-23 में 8.7 प्रतिशत था. मिडिल स्तर पर भी यह दर 3.5 प्रतिशत रह गई, जबकि सेकेंडरी स्तर पर 8.2 प्रतिशत हो गई है. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि अब अधिक बच्चे अपनी पढ़ाई बीच में नहीं छोड़ रहे और शैक्षणिक क्षेत्र में यह एक बड़ा सकारात्मक बदलाव है.
शिक्षकों की संख्या में उछाल और बेहतर छात्र-शिक्षक अनुपात
शिक्षकों की संख्या 1.01 करोड़ के पार पहुंच गई है, जिसमें 54.2 प्रतिशत महिलाएं हैं. यह आंकड़ा दर्शाता है कि शिक्षा क्षेत्र में महिला भागीदारी बढ़ी है, जो बच्चों के समग्र विकास के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है. साथ ही, छात्र-शिक्षक अनुपात राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मानकों के करीब पहुंच गया है, खासकर सेकेंडरी स्तर पर यह अनुपात 1:21 तक सुधरा है.
स्कूलों में तकनीकी और आधारभूत सुविधाओं का विस्तार
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि अब देश के लगभग 63.5 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है, जो पिछले साल 53.9 प्रतिशत था. कंप्यूटर सुविधा वाले स्कूलों की संख्या भी बढ़कर 64.7 प्रतिशत हो गई है. बिजली, पीने के पानी, खेल का मैदान और लाइब्रेरी जैसी सुविधाएं भी अधिकतर स्कूलों में मौजूद हैं, जो बच्चों के समग्र विकास के लिए जरूरी हैं.
सिंगल टीचर स्कूलों की संख्या में कमी
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पहले सिंगल टीचर वाले स्कूलों की संख्या अधिक थी, वहां भी 6 प्रतिशत की कमी आई है. इसके साथ ही, जीरो नामांकन वाले स्कूलों की संख्या में 38 प्रतिशत की गिरावट आई है, जिससे पता चलता है कि अब अधिक बच्चे स्कूलों में दाखिला ले रहे हैं और शिक्षा की पहुंच ग्रामीण इलाकों तक बेहतर हो रही है.
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