पंजाब के बरनाला जिले से ताल्लुक रखने वाले अवतार सिंह ने यह साबित कर दिया है कि अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाह हो, तो उम्र कभी बाधा नहीं बनती. 1982 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने पढ़ाई को अलविदा कह दिया था. उस दौर में मैट्रिक पास करना ही काफी माना जाता था, क्योंकि इससे नौकरी के दरवाज़े खुल जाते थे. पारिवारिक ज़िम्मेदारियों ने भी उन्हें आगे पढ़ने से रोक दिया. लेकिन वर्षों बाद, जब उन्होंने अपने बेटे को पढ़ते देखा, तो भीतर कुछ जागा—कुछ अधूरा सा महसूस हुआ.
अवतार सिंह ने दोबारा किताबें उठाने का फैसला किया
अपने बेटे से प्रेरित होकर अवतार सिंह ने दोबारा किताबें उठाने का फैसला किया और 12वीं कक्षा की पढ़ाई शुरू की. यह सफर आसान नहीं था, लेकिन अवतार ने हार नहीं मानी. उन्हें बठिंडा की समाजसेविका सुखविंदर कौर खोसा और बरनाला की सुखपाल कौर बाथ का साथ मिला, जिन्होंने उन्हें मार्गदर्शन और हौसला दिया.
लगन और मेहनत रंग लाई. अवतार सिंह ने 12वीं की परीक्षा न सिर्फ़ पास की, बल्कि 72% अंक हासिल कर अपने बेटे से भी ज्यादा अंक प्राप्त किए, जिसे 69% अंक मिले थे. अब पिता और पुत्र दोनों पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला से ग्रेजुएशन की पढ़ाई करेंगे.
'पढ़ाई कभी भी शुरू की जा सकती है'
अवतार सिंह ने कहा, "पहले के समय में शिक्षा को लेकर इतना जागरूक माहौल नहीं था. मैट्रिक के बाद ही नौकरी मिल जाती थी, लेकिन आज जब मैं पढ़ाई में दोबारा जुड़ा हूं, तो महसूस होता है कि शिक्षा जीवन को नई दिशा देती है."
उन्होंने आगे कहा, "अगर मन में सच्ची लगन हो, तो पढ़ाई कभी भी शुरू की जा सकती है. मैं अपने बेटे और उन समाजसेविकाओं का दिल से आभार व्यक्त करता हूं, जिनकी वजह से आज मैं यह उपलब्धि हासिल कर पाया."
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