इज़रायल-ईरान युद्ध अब महज़ दो देशों की लड़ाई नहीं रह गया है. अमेरिका ने अपने स्टील्थ बॉम्बर्स और मिसाइल ताकत के साथ इस टकराव में उतरकर यह साफ कर दिया है कि दुनिया एक बार फिर शीत युद्ध जैसी स्थिति की ओर बढ़ रही है—जहां हथियारों की होड़, सैन्य गठबंधन और युद्धक तकनीकें ही सारी रणनीति की धुरी बन गई हैं. ऐसे में भारत जैसे देशों के लिए भी यह दौर सिर्फ देखने और सुनने का नहीं, बल्कि सशक्त होने और तैयार रहने का है.
भारत की भौगोलिक स्थिति बेहद संवेदनशील है—एक ओर पाकिस्तान और दूसरी ओर चीन जैसे परमाणु हथियार संपन्न देश. इस दोहरी चुनौती के बीच भारत को अपने एयर डिफेंस को उस स्तर पर ले जाना होगा जहां पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान, हाइपरसोनिक मिसाइल और स्टील्थ टेक्नोलॉजी को भी रोका जा सके. यही वजह है कि अब भारत की निगाहें रूस की S-500 प्रोमेथियस एयर डिफेंस प्रणाली पर टिकी हुई हैं, जिसे दुनिया की सबसे उन्नत एयर डिफेंस तकनीक माना जा रहा है.
ऑपरेशन सिंदूर: भारत ने दिखाया एयर डिफेंस का दम
हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने अपने एयर डिफेंस सिस्टम की वास्तविक क्षमता का प्रदर्शन किया. इस ऑपरेशन में भारतीय वायु सेना ने दुश्मन के ड्रोन और मिसाइल हमलों को जिस सटीकता और स्पीड से नाकाम किया, उसने यह जता दिया कि देश अब सिर्फ रिएक्ट नहीं करता—बल्कि प्री-एम्पटिव स्ट्राइक और एक्टिव डिफेंस की नीति पर काम करता है.
इस सफलता में S-400 ट्रायंफ और स्वदेशी 'आकाश' मिसाइल सिस्टम की अहम भूमिका रही. लेकिन आने वाले समय में यदि पाकिस्तान, चीन से पांचवीं पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर जैसे J-31 या J-20 हासिल करता है, तो S-400 के हथियारों की सीमा पड़ सकती है. ऐसे टारगेट जिन्हें रडार पकड़ नहीं पाते, उनके खिलाफ ज्यादा एडवांस सिस्टम की जरूरत होती है—और यहीं S-500 एक बड़ा गेमचेंजर बन सकता है.
S-500 बनाम S-400: तकनीक में कितना फर्क?
S-400 ट्रायंफ एक शक्तिशाली एयर डिफेंस सिस्टम है, लेकिन इसकी रडार क्षमताएं और एंटी-स्टील्थ कैपेबिलिटी सीमित हैं. वहीं S-500 को खासतौर पर इस उद्देश्य से डिजाइन किया गया है कि वह स्टील्थ फाइटर जेट, हाइपरसोनिक मिसाइल और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल तक को इंटरसेप्ट कर सके.
S-500 की रेंज 600 किलोमीटर तक है और यह 180–200 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ रहे लक्ष्यों को भी नष्ट कर सकता है. इसकी रडार प्रणाली 91N6A(M) है जो दुनिया की सबसे उन्नत मानी जाती है. साथ ही इसमें 77N6-N और 77N6-N1 मिसाइलें लगी होती हैं जो बेहद तेज गति वाले टारगेट्स को भी ट्रैक और इंटरसेप्ट कर सकती हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह सिस्टम Mach-19 (23,000 किमी/घंटा) स्पीड से आने वाली हाइपरसोनिक मिसाइल को भी पहचान सकता है.
पांचवीं पीढ़ी के विमानों का अंत?
पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट—जैसे अमेरिका का F-35, चीन का J-35 या पाकिस्तान की भविष्य की योजनाएं—इन सभी की ताकत उनके स्टील्थ डिज़ाइन में होती है. ये विमानों की "Radar Cross Section (RCS)" को इतना कम कर देते हैं कि पारंपरिक रडार इन्हें पकड़ ही नहीं पाते. लेकिन S-500 के पास ऐसी क्षमता है कि वह माइक्रो RCS को भी डिटेक्ट कर सके.
इसका मतलब ये है कि जहां आज की एयर डिफेंस प्रणालियां इन विमानों को देख ही नहीं पातीं, वहीं S-500 उन्हें ट्रैक करके आसमान में ही खत्म कर सकती है. यही वजह है कि कुछ रक्षा विशेषज्ञ इसे 'फिफ्थ जनरेशन फाइटर का काल' कह रहे हैं.
क्यों S-500 भारत की ज़रूरत है?
ईरान द्वारा इज़रायल पर हाइपरसोनिक मिसाइल अटैक ने ये साबित कर दिया कि अब आयरन डोम जैसे सिस्टम भी पूरी तरह कारगर नहीं हैं. ऐसे में भारत जैसे देश, जिन्हें दो मोर्चों पर सैन्य खतरा है, उनके लिए S-500 जैसा सिस्टम सिर्फ एक विकल्प नहीं—बल्कि अनिवार्यता बन गया है.
चीन भी अपनी एयर डिफेंस के लिए रूस की टेक्नोलॉजी पर निर्भर है. अगर भारत S-500 हासिल कर लेता है, तो यह चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए रणनीतिक झटका होगा. साथ ही भारत की सुरक्षा नीति को भी एक नई दिशा मिलेगी—जहां खतरे के जवाब में केवल प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि प्रभावी प्रतिरोध और निर्णायक नियंत्रण हो.
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