300 मीटर दूर रहो...शादीशुदा पुरुष के पीछे पड़ी थी महिला, संबंध बनाने के लिए कर रही थी मजबूर; कोर्ट का आदेश

    Delhi News: दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने एक बेहद असामान्य लेकिन अहम मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. यह मामला सिर्फ व्यक्तिगत उत्पीड़न से जुड़ा नहीं था, बल्कि इसमें निजता, मानसिक उत्पीड़न और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे गंभीर मुद्दे भी शामिल थे.

    Delhi court orders woman to stay away from married man
    Image Source: Meta AI

    Delhi News: दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने एक बेहद असामान्य लेकिन अहम मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. यह मामला सिर्फ व्यक्तिगत उत्पीड़न से जुड़ा नहीं था, बल्कि इसमें निजता, मानसिक उत्पीड़न और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे गंभीर मुद्दे भी शामिल थे.

    शिकायतकर्ता, जो एक विवाहित पुरुष है, ने अदालत में याचिका दाखिल की थी कि एक महिला उन्हें बार-बार यौन संबंध बनाने के लिए मानसिक और भावनात्मक दबाव में डाल रही है. इतना ही नहीं, महिला द्वारा घरेलू शांति भंग करने, सार्वजनिक उपद्रव फैलाने और परिवार को सोशल मीडिया के जरिए परेशान करने जैसे आरोप भी लगाए गए.

    शिकायतकर्ता का कहना है कि वह महिला से पहली बार एक आध्यात्मिक आश्रम में वर्ष 2019 में मिला था, जहां से कथित तौर पर यह एकतरफा संबंध शुरू हुआ. उन्होंने महिला के प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, जिसके बाद महिला ने कथित रूप से आत्महत्या की धमकियां देनी शुरू कर दीं.

    अदालत में पेश हुए प्रमाण

    शिकायतकर्ता ने कोर्ट में चैट के स्क्रीनशॉट, सीसीटीवी फुटेज और सोशल मीडिया संदेशों को साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किया. इसके आधार पर कोर्ट ने माना कि शिकायतकर्ता की निजता और मानसिक शांति को प्रभावित किया गया है.

    कोर्ट का स्पष्ट रुख

    रोहिणी कोर्ट की सिविल जज रेणु ने 25 जुलाई को आदेश देते हुए कहा, “वादी को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत संपर्क के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. हर नागरिक को स्वतंत्र, भयमुक्त और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है.” कोर्ट ने महिला और उसके पति दोनों को निर्देश दिया है कि वे शिकायतकर्ता की संपत्ति से 300 मीटर की दूरी बनाए रखें और किसी भी तरह के डिजिटल, सामाजिक या व्यक्तिगत संपर्क से दूर रहें.

    यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?

    यह मामला इसलिए भी अहम बन जाता है क्योंकि यह एक पुरुष की सुरक्षा, निजता और उत्पीड़न के खिलाफ उठी कानूनी आवाज को मान्यता देता है. आमतौर पर इस तरह के मामले महिलाओं से जुड़े होते हैं, लेकिन यह केस यह साबित करता है कि पीड़ित कोई भी हो सकता है, महिला या पुरुष. शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता दिव्या त्रिपाठी ने मामले की प्रभावशाली पैरवी की. अदालत ने उनके तर्क और प्रस्तुत साक्ष्यों को गंभीरता से लेते हुए निषेधाज्ञा पारित की.

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