पाकिस्तान और तालिबान में दोस्ती करा रहा है चीन, भारत से तनाव का उठा रहा फायदा, होगा BRI का विस्तार!

    जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण हालात तेजी से गहराते जा रहे हैं, उसी समय चीन एक शांत लेकिन दूरगामी रणनीतिक चाल चल रहा है.

    China is making friendship between Pakistan and Taliban
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- ANI

    काबुल: जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण हालात तेजी से गहराते जा रहे हैं, उसी समय चीन एक शांत लेकिन दूरगामी रणनीतिक चाल चल रहा है. चीन न केवल पाकिस्तान और तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान के बीच दोस्ती गहरा कर रहा है, बल्कि ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने की योजना पर भी तेजी से काम कर रहा है. इस पूरे घटनाक्रम को क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, जिससे दक्षिण एशिया की सामरिक तस्वीर में बड़े बदलाव आ सकते हैं.

    बढ़ी तालिबान-पाकिस्तान की नजदीकी

    चीन की पहल पर पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के लिए एक विशेष राजनयिक दूत नियुक्त किया है. मोहम्मद सादिक खान, जो अफगान मामलों के लिए पाकिस्तान के विशेष दूत हैं, ने हाल ही में काबुल का दौरा किया. इस दौरे के दौरान उन्होंने चीनी विशेष दूत यू शियाओयोंग के साथ तालिबान प्रशासन के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की. सबसे अहम बात यह रही कि तालिबान को BRI में शामिल होने का औपचारिक प्रस्ताव दिया गया — और रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबान नेतृत्व ने इसे सैद्धांतिक सहमति दे दी है.

    यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हो रहा है जब भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव और कूटनीतिक खटास अपने चरम पर है. ऐसे में चीन की यह कोशिश भारत की कूटनीतिक परिधि को तोड़ने और क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की स्पष्ट रणनीति प्रतीत होती है.

    हक्कानी की मौजूदगी और त्रिपक्षीय बैठक

    काबुल के गृह मंत्रालय में हुई त्रिपक्षीय बैठक में गृह मंत्री और तालिबान की कुख्यात हक्कानी नेटवर्क के नेता, खलीफा सिराजुद्दीन हक्कानी ने चीनी और पाकिस्तानी प्रतिनिधियों से मुलाकात की. यह बैठक सिर्फ सामान्य राजनयिक संवाद नहीं थी; यह एक रणनीतिक संकेत था कि तालिबान अब खुद को केवल अफगानिस्तान तक सीमित नहीं देखता, बल्कि एक क्षेत्रीय साझेदार के रूप में खुद को स्थापित करने की दिशा में बढ़ रहा है.

    बैठक में हक्कानी ने यह संदेश दिया कि अफगानिस्तान, क्षेत्रीय सहयोग और व्यापारिक विस्तार को प्राथमिकता देता है और यह प्रक्रिया आपसी सम्मान व व्यावसायिक जुड़ाव से आगे बढ़ाई जा सकती है.

    CPEC के ज़रिए BRI का विस्तार

    चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो पहले ही पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से चीन के शिनजियांग तक फैला है, अब अफगानिस्तान की सीमा तक बढ़ाया जाएगा. काबुल में पाकिस्तान और चीन के विशेष दूतों ने अफगान वाणिज्य मंत्री नूरुद्दीन अज़ीज़ी से इस विस्तार पर विस्तृत चर्चा की.

    इस कदम का मतलब सिर्फ आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि सुरक्षा व सामरिक पहुँच का विस्तार भी है. भारत पहले से ही CPEC पर आपत्ति जताता रहा है क्योंकि यह पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है. यदि अब यह गलियारा अफगानिस्तान तक पहुंचता है, तो यह चीन को मध्य एशिया तक एक स्थायी भूमि-मार्ग और भू-राजनीतिक पकड़ प्रदान करेगा — और यह भारत के लिए एक गंभीर रणनीतिक चुनौती होगी.

    क्या तालिबान चीन का नया सहयोगी बन रहा?

    तालिबान सरकार ने जब 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता संभाली थी, तब दुनिया भर के अधिकांश देश उनकी वैधता को लेकर असमंजस में थे. परंतु चीन ने तालिबान से संवाद बनाए रखा और अब एक ऐसी स्थिति में पहुंच चुका है जहाँ वह न केवल काबुल की राजनीति में, बल्कि आर्थिक योजना में भी निर्णायक भूमिका निभा रहा है.

    हाल ही में अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से हुई मुलाकात में चीन और पाकिस्तान के दूतों ने सुरक्षा, व्यापार, निवेश और राजनीतिक स्थिरता के मुद्दों पर समान दृष्टिकोण साझा किया. अफगान विदेश मंत्री ने इस्लामाबाद को "अटूट समर्थन" का आश्वासन दिया — यह संकेत है कि काबुल अब बीजिंग-इस्लामाबाद धुरी की ओर तेजी से झुक रहा है.

    त्रिपक्षीय वार्ता का अगला दौर काबुल में

    बैठक के दौरान यह भी तय हुआ कि त्रिपक्षीय संवाद का छठा दौर काबुल में आयोजित किया जाएगा. इससे संकेत मिलता है कि अफगानिस्तान को अब न केवल आमंत्रित सदस्य के रूप में, बल्कि एक स्थायी भागीदार के रूप में देखा जा रहा है. यह पहल चीन की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह अपने पड़ोस में अमेरिका और भारत की कूटनीतिक पकड़ को कमजोर करना चाहता है.

    भारत की प्रतिक्रिया

    भारत ने फिलहाल इस घटनाक्रम पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है. परंतु भारतीय सुरक्षा विश्लेषक मानते हैं कि यह ‘चीन की ग्रेट गेम वापसी’ है — एक ऐसी स्थिति जिसमें बीजिंग दक्षिण एशिया की कूटनीतिक और आर्थिक संरचना को फिर से लिखने की कोशिश कर रहा है.

    भारत के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि वह ईरान के चाबहार पोर्ट, मध्य एशिया के साथ द्विपक्षीय समझौतों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से BRI के जवाब में अपने वैकल्पिक रणनीतिक गलियारों को मजबूती दे.

    ये भी पढ़ें- IPL 2025 का शेड्यूल जारी, 6 वेन्यू पर होंगे बचे मैच, पाकिस्तान से तनाव के कारण रोकनी पड़ी थी लीग