Sukma Naxal Surrender: छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सल मोर्चे पर एक ऐसा बदलाव दिखा है, जो आने वाले समय में पूरे बस्तर क्षेत्र के हालात बदल सकता है. जंगलों से लेकर पहाड़ियों तक फैली लाल आतंक की छाया के बीच पहली बार इतनी बड़ी संख्या में हथियारबंद नक्सलियों ने विश्वास के साथ सरकार और प्रशासन की ओर कदम बढ़ाया है.
24 नवंबर को कुल 15 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिन पर 48 लाख रुपए तक का इनाम घोषित था. यह कदम न सिर्फ सुरक्षा बलों की रणनीति की सफलता है, बल्कि यह संकेत भी कि नक्सल संगठन की जड़ें अब कमजोर पड़ रही हैं.
कौन हैं सरेंडर करने वाले नक्सली?
आत्मसमर्पण करने वालों में कई कुख्यात और लंबे समय से सक्रिय नक्सली शामिल हैं. इनमें सबसे अहम हैं PLGA बटालियन नंबर-01 के चार हार्डकोर सदस्य, जिन्होंने वर्षों तक जंगलों में रहकर नक्सल गतिविधियों को अंजाम दिया था.
इनके साथ ही:
भी आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौट आए हैं.
सुकमा SP किरण चव्हाण के अनुसार, "अंदरूनी इलाकों में लगातार सुरक्षा कैंप खुलने और हमारी मौजूदगी बढ़ने से नक्सली घिरे हुए महसूस कर रहे हैं. इसी दबाव और पुनर्वास नीति के लाभ को देखते हुए उन्होंने सरेंडर किया है. हम बाकी नक्सलियों से भी अपील करते हैं कि हथियार छोड़कर समाज में लौटें.”
सरेंडर की सबसे बड़ी वजह, पुनर्वास नीति का प्रभाव
पुलिस अधिकारियों का स्पष्ट कहना है कि नक्सलियों के हथियार डालने के पीछे दो प्रमुख कारण हैं:
1. छत्तीसगढ़ शासन की पुनर्वास नीति और ‘पुना मार्गेम’ योजना
सरकार की यह नीति आत्मसमर्पण करने वालों को आर्थिक मदद, जीवन सुरक्षा, रोजगार और सम्मानजनक जीवन का अवसर देती है. नक्सलियों ने महसूस किया कि जंगल में छिपकर हिंसा के रास्ते पर चलना अब उनके भविष्य को सिर्फ अंधेरे की ओर ले जा रहा है.
2. अंदरूनी इलाकों में सुरक्षा कैंप और मजबूत पुलिस उपस्थिति
लगातार नए कैंप खुलने से नक्सलियों की गतिशीलता सीमित हुई है. घाटियों, जंगलों और घने इलाकों में सुरक्षा बलों की टीमों की मौजूदगी ने नक्सली नेटवर्क को कमजोर कर दिया है. अंदरूनी मतभेद और थकान भी बड़ी वजह साबित हुए हैं. अधिकारी बताते हैं कि कई नक्सली संगठन की हिंसक विचारधारा से टूट चुके हैं और अब वे अपने परिवारों के साथ सामान्य जीवन चाहते हैं.
सुरक्षा बलों की संयुक्त सफलता
इस सफल ऑपरेशन में कई इकाइयों ने समन्वय से काम किया:
इनकी संयुक्त रणनीति ने नक्सलियों को सरेंडर के लिए विश्वास और सुरक्षित माहौल प्रदान किया.
जंगलों में बदल रहा माहौल
सुकमा में यह सामूहिक आत्मसमर्पण सिर्फ एक घटना नहीं, यह संकेत है कि बस्तर में नक्सल आंदोलन की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है. सरकार की पुनर्वास नीति और सुरक्षा बलों की सतत मौजूदगी ने वह भरोसा पैदा किया है, जिसकी कमी अब तक महसूस होती रही. सुकमा के इस कदम से उम्मीद जगती है कि आने वाले दिनों में और भी नक्सली हथियार छोड़कर सामाजिक जीवन की ओर लौटेंगे.
यह भी पढ़ें- ढाबे, प्रोडक्शन हाउस, रियल एस्टेट... बिजनेस में भी 'ही-मैन' थे धर्मेंद्र, जानें कितना बड़ा था कारोबार