रूस-यूक्रेन जंग में ब्रिटेन की एंट्री, अमेरिका से मांगे परमाणु हथियारों वाले फाइटर जेट, होगी तबाही?

    दुनिया एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुकी है जहां शीत युद्ध जैसी रणनीतिक सोच फिर से लौटती दिखाई दे रही है.

    Britains entry in the Russia-Ukraine war
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Internet

    लंदन/वॉशिंगटन: दुनिया एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुकी है जहां शीत युद्ध जैसी रणनीतिक सोच फिर से लौटती दिखाई दे रही है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोप की सुरक्षा नीतियों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. ब्रिटेन ने अब अपनी परमाणु रणनीति को और अधिक बहुआयामी और लचीला बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है.

    ब्रिटेन की नई योजना के तहत, वह अमेरिका से ऐसे लड़ाकू विमान खरीदने की योजना पर विचार कर रहा है जो कम-शक्ति वाले गुरुत्वाकर्षण परमाणु बम ले जाने में सक्षम हों. यह पहली बार होगा जब ब्रिटेन हवाई-आधारित परमाणु क्षमताओं को अपने सुरक्षा ढांचे में शामिल करेगा.

    परमाणु रणनीति में ऐतिहासिक बदलाव

    ब्रिटेन की मौजूदा परमाणु प्रतिरोधक नीति पूरी तरह नौसेना-आधारित ट्राइडेंट मिसाइल सिस्टम पर निर्भर है, जो परमाणु-सज्जित पनडुब्बियों से संचालित होता है. इस एकमात्र स्तंभ पर आधारित नीति को अब बदलने की तैयारी है.

    ब्रिटिश रक्षा सचिव जॉन हीली और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ एडमिरल टोनी रडाकिन ने अमेरिकी F-35A लाइटनिंग II स्टील्थ फाइटर जेट्स की संभावित खरीद को लेकर अमेरिका के साथ गहन बातचीत शुरू की है. ये विमान B61 थर्मोन्यूक्लियर ग्रेविटी बम ले जाने में सक्षम हैं — वही बम जिन्हें अमेरिका अपने रणनीतिक हवाई बेड़े के लिए प्राथमिक परमाणु हथियार के रूप में रखता है.

    क्यों जरूरी हो गया है हवाई परमाणु विकल्प?

    ब्रिटेन के रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हम एक "तीसरे परमाणु युग" में प्रवेश कर चुके हैं, जहां पारंपरिक खतरे अब जटिल और बहुआयामी हो चुके हैं:

    • रूस की आक्रामकता और सैन्य विस्तार
    • चीन का तेज़ी से बढ़ता परमाणु शस्त्रागार
    • ईरान और उत्तर कोरिया की अस्थिरता
    • साइबर और अंतरिक्ष डोमेन में बढ़ती प्रतियोगिता

    इन खतरों के चलते हवाई-आधारित परमाणु हमले की क्षमता अब सिर्फ शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि रणनीतिक संतुलन का अनिवार्य अंग बन गई है.

    क्या ब्रिटेन अमेरिका से F-35A खरीदेगा?

    ब्रिटेन पहले ही F-35B वर्जन का उपयोग कर रहा है, जो विमानवाहक पोत से संचालित हो सकता है, लेकिन यह B61 जैसे परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम नहीं है. इसके उलट, F-35A — जिसकी खरीद पर विचार चल रहा है — विशेष रूप से परमाणु-संवेदनशील मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया है.

    जर्मनी, नीदरलैंड्स, और इटली जैसे NATO सहयोगी पहले ही इस मॉडल को अपने परमाणु डिटेरेंस कार्यक्रमों में शामिल कर चुके हैं.

    सामूहिक परमाणु सुरक्षा की ओर बढ़ते कदम

    फ्रांस पहले ही यूरोप में अपने परमाणु हथियारों की साझा तैनाती का सुझाव दे चुका है, और जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने इसका समर्थन किया है. इन कदमों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यूरोप एक सामूहिक परमाणु छाते (Nuclear Umbrella) की ओर बढ़ रहा है.

    ब्रिटेन का संभावित निर्णय इस दिशा में एक अहम कड़ी बन सकता है, जिससे न केवल NATO की सामूहिक सुरक्षा क्षमता मजबूत होगी, बल्कि रूस को एक स्पष्ट संकेत भी मिलेगा.

    2034 तक रक्षा खर्च में बढ़ोतरी की योजना

    ब्रिटेन सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि वह 2034 तक रक्षा बजट को GDP के 3% तक ले जाने की योजना बना रही है — जो मौजूदा 2.5% से अधिक है. इसके तहत न केवल परमाणु क्षमताओं का आधुनिकीकरण, बल्कि 7,000 से अधिक लॉन्ग-रेंज हथियारों के उत्पादन की योजना भी शामिल है.

    क्या यूक्रेन युद्ध नए स्तर पर पहुंचेगा?

    हाल के घटनाक्रमों से यह तो स्पष्ट है कि यूक्रेन युद्ध अब केवल दो देशों के बीच सीमित संघर्ष नहीं रहा, बल्कि इसके प्रभाव और प्रतिक्रियाएं वैश्विक स्तर पर फैल रही हैं. ब्रिटेन का यह कदम, यूक्रेन में रूस के बढ़ते दुस्साहस के प्रति एक सामरिक संदेश हो सकता है — कि पश्चिम अब केवल आर्थिक प्रतिबंधों तक सीमित नहीं रहेगा.

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