नई दिल्ली से लंदन तक राजनयिक बयानबाज़ी फिर गरमा गई है. ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत की रूस से तेल खरीद नीति को लेकर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि नई दिल्ली "पुतिन की युद्ध मशीन" को आर्थिक रूप से मज़बूत कर रही है. जॉनसन ने यह बयान ऐसे समय पर दिया है जब अमेरिका ने भारत के सामानों पर टैरिफ बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया है और पश्चिमी देशों के बीच भारत को लेकर आलोचना का नया दौर शुरू हो गया है.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए बोरिस जॉनसन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस कदम की तारीफ की जिसमें भारत से आयात पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाने का फैसला लिया गया है.
जॉनसन ने किया ट्रंप के फैसले का समर्थन
उन्होंने लिखा, डोनाल्ड ट्रंप ने साहसिक और सैद्धांतिक निर्णय लिया है. उन्होंने उन देशों को दंडित किया है जो रूस की क्रूरता को फंड कर रहे हैं. क्या ब्रिटेन और यूरोप में भी ऐसा करने की हिम्मत है? जॉनसन ने यह भी कहा कि यूरोप के कई नेता ट्रंप पर रूस को लेकर नरमी बरतने का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन अब वही ट्रंप भारत जैसे देश को उसकी नीतियों की ‘कीमत चुकाने’ पर मजबूर कर रहे हैं.
भारत पर 50% टैरिफ, झुकने से इनकार
डोनाल्ड ट्रंप ने बीते बुधवार को अपने कार्यकारी आदेश में भारत पर पहले से लगे 25% शुल्क के अलावा 25% और जोड़ दिया, जिससे कुल टैरिफ दर 50% हो गई है. यह शुल्क 7 अगस्त से लागू होगा और अतिरिक्त टैरिफ 21 दिन बाद प्रभावी होंगे. इस बदलाव के बाद भारत अब ब्राज़ील के साथ अमेरिका में सबसे ज्यादा शुल्क झेलने वाले देशों में शामिल हो गया है. हालांकि भारत ने इस फैसले को लेकर झुकने से साफ इनकार कर दिया है. विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा हम इस फैसले को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं. भारत अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और हम वैश्विक मंचों पर अपने पक्ष को मजबूती से रखेंगे.
पीएम मोदी की लंदन यात्रा और भारत-ब्रिटेन समझौता
यह घटनाक्रम ऐसे वक्त में सामने आया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ब्रिटेन का दौरा कर वहां के नए प्रधानमंत्री कीर स्टारमर के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते को ऐतिहासिक माना जा रहा है, लेकिन जॉनसन के ताजा बयान ने भारत-ब्रिटेन संबंधों में एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं.
भारत के लिए पश्चिमी दबाव की नई चुनौती
बढ़ते टैरिफ, बयानों के तीखे तेवर और रूस से व्यापार को लेकर पश्चिमी देशों की लगातार आलोचना—ये सभी संकेत हैं कि आने वाले महीनों में भारत को वैश्विक मंचों पर अधिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि भारत पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग रहा है. अब देखना होगा कि अमेरिका और यूरोप की तरफ से बने इस दबाव के बीच भारत कैसे अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों का संतुलन बनाए रखता है.
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