नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में लंबे समय से नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति पर चर्चा जारी है. पार्टी नेतृत्व इस बार इस प्रक्रिया को तेज करना चाहता है ताकि बिहार विधानसभा चुनाव नए अध्यक्ष के नेतृत्व में लड़ा जा सके. खबरों के अनुसार, जल्द ही बीजेपी को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल सकता है, जो पार्टी की रणनीति को और मजबूती देगा.
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में देरी के पीछे की वजहें
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में देरी के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं. सबसे बड़ा कारण विचार-विमर्श की प्रक्रिया है. बीजेपी और इसके सहयोगी संगठन आरएसएस ने शीर्ष 100 नेताओं से इस संबंध में राय ली है. इसमें पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री और पार्टी के अनुभवी सदस्य शामिल हैं. इस व्यापक परामर्श का मकसद सबसे उपयुक्त उम्मीदवार का चयन करना है.
उपराष्ट्रपति चुनाव ने बढ़ाई चयन प्रक्रिया में देरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में देरी का एक अन्य बड़ा कारण उपराष्ट्रपति चुनाव रहा है. बीजेपी को अचानक उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार चुनने की प्राथमिकता मिल गई, जब जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया. अब पार्टी पूरी ताकत से सुनिश्चित कर रही है कि एनडीए का प्रत्याशी गठबंधन के विपक्षी उम्मीदवार से अधिक वोट हासिल करे. इस कारण पार्टी की सियासी रणनीतियों में बदलाव आ गया है, जिससे अध्यक्ष चयन की प्रक्रिया धीमी पड़ गई.
प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव भी जरूरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन से पहले पार्टी के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से कम से कम 19 इकाइयों में प्रदेश अध्यक्ष चुने जाने जरूरी हैं. गुजरात, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक समेत कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव अभी बाकी हैं, जिससे प्रक्रिया प्रभावित हो रही है. पार्टी के संविधान के मुताबिक यह एक अनिवार्य शर्त है.
युवा नेतृत्व को मौका देने की तैयारी
बीजेपी अपनी संगठनात्मक व्यवस्था में भी बदलाव ला रही है. पार्टी ने तय किया है कि अगले अध्यक्ष और अन्य पदों के लिए 40 वर्ष से कम उम्र के नेताओं को बढ़ावा दिया जाएगा. साथ ही जिला और प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कम से कम दस साल पार्टी में सक्रिय सदस्यता आवश्यक होगी. यह नीति पार्टी के संगठन को युवा और प्रभावी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
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