नीतीश की वुमेन पावर का नहीं कोई तोड़! इस राह पर चलना चाहते कई राजनीतिक दल; जानें पूरा समीकरण

    Women Vote Bank In Bihar: एक दौर था जब चुनावी रैलियों, पोस्टरों और भाषणों में महिलाओं का ज़िक्र तक नहीं होता था. वे राजनीति की धारा में कहीं पीछे छूट जाती थीं, एक दर्शक के रूप में. लेकिन वक़्त बदला है.

    Bihar no substitute for Nitish women power Many political parties want to follow this path
    Image Source: ANI/ File

    Women Vote Bank In Bihar: एक दौर था जब चुनावी रैलियों, पोस्टरों और भाषणों में महिलाओं का ज़िक्र तक नहीं होता था. वे राजनीति की धारा में कहीं पीछे छूट जाती थीं, एक दर्शक के रूप में. लेकिन वक़्त बदला है. बिहार की महिलाएं अब न सिर्फ वोट डालती हैं, बल्कि सरकारें बनाने और गिराने का माद्दा भी रखती हैं. पिछले तीन विधानसभा चुनावों में उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे अब सिर्फ 'मूक दर्शक' नहीं, बल्कि 'निर्णायक शक्ति' हैं.

    बीते कुछ वर्षों में बिहार की राजनीति में महिलाओं की भूमिका ने जो करवट ली है, वो बेहद अहम है. 2010, 2015 और 2020, इन तीनों चुनावों में पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं ने मतदान किया. और दिलचस्प बात ये रही कि इन सभी चुनावों में जीत नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन को मिली. जाहिर है, महिला वोटरों का रुझान राजनीति में नई हवा लेकर आया.

    राजनीतिक दलों ने भी इस बदलाव को पहचाना. आज जहां जेडीयू और बीजेपी गठबंधन महिलाओं को लुभाने के लिए योजनाओं की झड़ी लगाए हुए हैं, वहीं विपक्षी दल जैसे राजद और कांग्रेस भी अब महिला मतदाताओं के लिए खास घोषणाएं कर रहे हैं. राजद की 'माई-बहिन योजना' हो या कांग्रेस की समान योजना, सभी का मकसद एक ही है: महिला वोट बैंक को अपने पक्ष में करना.

    सामाजिक हाशिये से सियासी ताकत तक

    बिहार में यह क्रांति रातोंरात नहीं आई. अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो 2000 के दशक की शुरुआत में महिला वोट शेयर पुरुषों से लगभग 20% पीछे था. उस समय राज्य की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं, लेकिन यह तथ्य रहा कि उनके कार्यकाल में महिलाएं मतदान केंद्रों तक पहुंचने से भी कतराती थीं. कानून-व्यवस्था की हालत ऐसी थी कि महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती थीं.

    लेकिन 2005 के बाद हालात बदले. नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ा बदलाव आया ‘गवर्नेंस’ में. महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बना, योजनाएं बनीं और फिर शुरू हुआ एक नया दौर, महिला सशक्तिकरण का.

    साइकिल, आरक्षण और आत्मनिर्भरता

    मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना (2006)

    लड़कियों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए उन्हें मुफ्त साइकिल दी गई. इससे न केवल उनकी स्कूल तक पहुंच आसान हुई, बल्कि पूरे राज्य में एक शैक्षिक और सामाजिक क्रांति की शुरुआत हो गई.

    पंचायती राज में 50% आरक्षण

    महिलाओं को जब नेतृत्व की जिम्मेदारी मिली, तो उन्होंने घर की देहरी लांघकर पंचायत की राजनीति में प्रवेश किया. इससे उनकी राजनीतिक चेतना मजबूत हुई.

    स्वयं सहायता समूह 'जीविका'

    2006 में शुरू हुआ यह मिशन आज लाखों महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुका है. जीविका दीदियों ने लोन लेकर छोटे-छोटे व्यवसाय शुरू किए और आज वो आर्थिक रूप से परिवार की रीढ़ बन चुकी हैं.

    बाल विवाह पर रोक और शिक्षा की उड़ान

    2018 में शुरू की गई मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना ने लड़कियों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया. इंटर पास करने पर 25 हज़ार और स्नातक के बाद 50 हज़ार रुपये सीधे उनके खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं. इस कदम से बाल विवाह में कमी आई और लड़कियों में उच्च शिक्षा की ललक बढ़ी.

     महिला वोटरों पर टिकी सियासत

    2025 के चुनाव में महिला वोटर पहले से भी ज्यादा निर्णायक होंगी. यह स्पष्ट है कि उन्हें अब केवल योजनाओं से नहीं, बल्कि सम्मान और भागीदारी से भी जोड़ा जा रहा है. हर पार्टी जानती है, अगर महिलाओं का भरोसा जीत लिया, तो सत्ता की राह आसान हो जाएगी. अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या महिलाएं फिर एक बार नीतीश कुमार को तरजीह देंगी या राजद-कांग्रेस की नई योजनाओं पर विश्वास जताएंगी? 

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