अब आपके मन की बातें पढ़ लेगा कंप्यूटर, सोचते ही पूरी कर देगा इच्छा, चेहरे को पढ़कर समझ जाएगा सबकुछ

    तकनीक ने एक बार फिर मानव जीवन को आसान बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जो बिना किसी शारीरिक हाव-भाव या आवाज के, सीधे आपके दिमाग में चल रही बातों को कंप्यूटर तक पहुंचा सकेगी.

    BCI technology lets computers instantly understand your thoughts and fulfill your wishes
    Meta AI

    नई दिल्ली: तकनीक ने एक बार फिर मानव जीवन को आसान बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जो बिना किसी शारीरिक हाव-भाव या आवाज के, सीधे आपके दिमाग में चल रही बातों को कंप्यूटर तक पहुंचा सकेगी. इसे ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) कहा जाता है. खास बात यह है कि इस तकनीक से लकवाग्रस्त या बोलने में असमर्थ लोगों की जिंदगी में नई उम्मीद जगी है.

    ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस क्या है?

    BCI तकनीक मस्तिष्क के न्यूरॉन्स से निकलने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स को कैप्चर कर उन्हें कंप्यूटर द्वारा समझने और कमांड में बदलने का काम करती है. यानी आप जो सोचेंगे, वही कंप्यूटर समझकर आपके लिए काम करेगा. जैसे अगर आप सोच रहे हैं कि टीवी चालू करना है, तो कंप्यूटर बिना आपके मुंह से कुछ बोले, उसे ऑन कर देगा.

    स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की नई खोज

    हाल ही में स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिकों ने यह साबित किया है कि बिना किसी आवाज या हाव-भाव के, सिर में इलेक्ट्रोड लगाए बिना भी आपके दिमाग की बात सीधे कंप्यूटर पर डिकोड की जा सकती है. इस प्रक्रिया में मस्तिष्क की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जाता है और फिर कंप्यूटर उसे समझकर आपको आवाज़ देता है. यह तकनीक खासकर उन लोगों के लिए वरदान साबित होगी, जो बोल या लिख नहीं सकते.

    तकनीक कैसे काम करती है?

    यह तकनीक आपके सिर पर लगे छोटे-छोटे इलेक्ट्रोड से काम करती है, जो EEG (इलेक्ट्रोएंसेफलोग्राफी) के जरिए मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि को कैप्चर करता है. ये सिग्नल इतने छोटे और जटिल होते हैं कि इन्हें साफ़ और समझने योग्य बनाने के लिए कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग होता है. इसके बाद ये प्रोग्राम सिग्नल्स को ‘कमांड’ में बदल देते हैं, जो स्मार्ट डिवाइस या कंप्यूटर को एक्टिवेट कर देते हैं.

    रोजमर्रा की जिंदगी में इसका प्रभाव

    कल्पना कीजिए कि आप बिना हाथ या आवाज़ के, केवल सोचकर अपने घर के स्मार्ट उपकरणों को नियंत्रित कर सकते हैं. यह तकनीक व्हीलचेयर, रोबोट आर्म, मोबाइल और कंप्यूटर को दिमाग की ताकत से नियंत्रित करने का रास्ता खोल रही है. यह विकलांगों के लिए खासकर जीवन में क्रांति ला सकती है.

    एलन मस्क और न्यूरालिंक का योगदान

    एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक इस तकनीक को और भी प्रभावशाली बनाने पर काम कर रही है. वे मस्तिष्क में प्रत्यारोपित किए जाने वाले छोटे चिप्स के जरिए दिमागी सिग्नल्स को बेहतर तरीके से कैप्चर कर सटीक कमांड देने की योजना बना रहे हैं. इस तकनीक से भविष्य में न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को बड़ी राहत मिल सकती है.

    भविष्य में ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस

    आने वाले वर्षों में यह तकनीक और भी सरल और सुलभ होगी. हम अपने विचारों से कार चलाने, एयर कंडीशनर चालू करने और स्मार्टफोन ऑपरेट करने जैसे काम कर पाएंगे. साथ ही यह तकनीक मानसिक स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल में भी मददगार होगी.

    चुनौतियां और सुरक्षा के सवाल

    हालांकि यह तकनीक बेहद उन्नत है, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियां भी हैं. मस्तिष्क की गतिविधियों को समझना अभी भी पूरी तरह आसान नहीं है, और गलत सिग्नल गलत कमांड दे सकते हैं. इसके अलावा, निजी सोच कंप्यूटर तक पहुंचने के कारण प्राइवेसी का बड़ा सवाल खड़ा होता है. लंबे समय तक चिप्स के उपयोग से स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिकों ने इस चिंता को ध्यान में रखते हुए एक पासवर्ड सुरक्षा सिस्टम भी विकसित किया है, जो केवल तभी आपके दिमाग के संकेतों को डिकोड करता है जब आप पहले से तय पासवर्ड के बारे में सोच रहे हों.

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