असम में हथियार लाइसेंस नीति को लेकर एक बार फिर सियासी बहस तेज हो गई है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में अपने बयान में स्पष्ट किया कि संवेदनशील और अल्पसंख्यक-बहुल इलाकों में रहने वाले मूल निवासी हिंदुओं को आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने का अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने दक्षिण सलमारा, मनकाचर और भागबर जैसे जिलों का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे इलाकों में कई बार हालात स्थानीय लोगों के लिए असुरक्षित हो जाते हैं, इसलिए कानूनी प्रक्रिया के तहत उन्हें लाइसेंस जारी करना आवश्यक है.
सीएम के मुताबिक, इन क्षेत्रों में कुछ गांव ऐसे हैं, जहां हजारों की आबादी में सनातन धर्म के लोग संख्या में बेहद कम हैं. मई 2025 में राज्य मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पारित कर इन संवेदनशील जिलों के मूल निवासियों को हथियार लाइसेंस देने की मंजूरी दी थी. सरकार का तर्क है कि यह कदम लोगों की सुरक्षा और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उठाया गया है, न कि समाज को सैन्यीकृत करने के लिए.
लाइसेंस पाने का क्या है प्रोसेस?
भारत में हथियार लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया काफ़ी सख्त है. यह 1959 के शस्त्र अधिनियम के तहत आता है और आम नागरिक को केवल नॉन-प्रोहिबिटेड बोर (एनपीबी) हथियार रखने की अनुमति मिलती है. लाइसेंस पाने के लिए आवेदक को यह साबित करना होता है कि उसकी जान को गंभीर खतरा है, जिसके लिए प्रायः एफआईआर दर्ज कराना एक प्रमुख कदम है. आवेदन के बाद पुलिस द्वारा पते और आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच की जाती है, फिर जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा इंटरव्यू लिया जाता है. इस इंटरव्यू में यह आकलन किया जाता है कि आवेदक को हथियार की आवश्यकता क्यों है और वह मानसिक एवं शारीरिक रूप से सक्षम है या नहीं. सभी चरण पूरे होने और सुरक्षा एजेंसियों की मंजूरी के बाद ही लाइसेंस जारी किया जाता है.
खुद को सुरक्षित रख पाएंगे लोग
असम की इस नई नीति के समर्थकों का कहना है कि इससे स्थानीय लोग हमलों और गैरकानूनी गतिविधियों से खुद को सुरक्षित रख सकेंगे, हालांकि विपक्ष इसके विरोध में है. इस फैसले पर उनका कहना है कि लाइसेंस मिलने के बाद हथियारों का दुरुपयोग भी हो सकता है. वहीं इस बीच, राज्य सरकार का कहना है कि यह योजना दशकों से लंबित मांग को पूरा करने का प्रयास है और अगर पहले यह कदम उठाया जाता, तो कई मूल निवासी अपनी जमीन और घर छोड़कर पलायन करने को मजबूर नहीं होते.
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