दिल्ली की जंग हारने के बाद अब बिहार पर है केजरीवाल की नजर, तेजस्वी पर फेंक सकते हैं सियासी तीर

    दिल्ली में सियासी मैदान हारने के बाद अब आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख अरविंद केजरीवाल की नजर बिहार की राजनीति पर टिकी है. जहां एक तरफ 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर राज्य की राजनीतिक सरगर्मी तेज होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर AAP बिहार में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए कमर कस चुकी है.

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    File Image Source ANI

    Bihar Assembly Elections 2025: दिल्ली में सियासी मैदान हारने के बाद अब आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख अरविंद केजरीवाल की नजर बिहार की राजनीति पर टिकी है. जहां एक तरफ 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर राज्य की राजनीतिक सरगर्मी तेज होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर AAP बिहार में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए कमर कस चुकी है. पार्टी ने राज्य में 7 चरणों में पदयात्रा करने की योजना बनाई है, जिसकी शुरुआत 31 मई से होगी. यह रणनीति सीधे तौर पर बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर पैर जमाने की कोशिश मानी जा रही है.

    महागठबंधन से नाता तोड़ेंगे केजरीवाल

    दिलचस्प बात यह है कि AAP, जो हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनावों में पराजय का सामना कर चुकी है, अब बिहार में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में है. जबकि लोकसभा चुनाव में पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी, विधानसभा में वह सभी 243 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की योजना बना रही है.

    विपक्ष के वोट बैंक पर केजरीवाल की नजर

    केजरीवाल जनसंपर्क यात्रा के नाम से शुरू हो रही यह पदयात्रा सबसे पहले मुस्लिम बहुल किशनगंज जिले से 2 जून को निकाली जाएगी. यह वही इलाका है जहां पहले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 के चुनाव में पांच सीटें जीतकर महागठबंधन को बड़ा झटका दिया था. अब केजरीवाल की नजर भी सीमांचल के उसी वोट बैंक पर है, जो पारंपरिक रूप से आरजेडी और कांग्रेस का मजबूत आधार रहा है.

    AAP की रणनीति न सिर्फ राजनीतिक उपस्थिति बनाए रखने की है, बल्कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाए रखने की भी है. दिल्ली में सरकार गंवाने के बाद अब पार्टी को अन्य राज्यों में भी जीत की ज़रूरत है, ताकि राष्ट्रीय पहचान कायम रहे.

    केजरीवाल के दांव से विपक्ष को होगा घाटा

    हालांकि इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अरविंद केजरीवाल खुद बिहार की पदयात्रा में शामिल होंगे? अभी पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन जानकार मानते हैं कि केजरीवाल की मौजूदगी के बिना यह अभियान सीमित प्रभाव ही डाल पाएगा. बहरहाल, बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर ‘आप’ की यह नई पारी किस करवट बैठेगी, यह आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन इतना तय है कि इस कदम से महागठबंधन के वोट बैंक में हलचल जरूर मचने वाली है.

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