नई दिल्ली में एक खास मौके पर भारतीय सेना के इतिहास से जुड़ा एक अहम दस्तावेज सामने आया. सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने बीते दिन एक पुस्तक का विमोचन किया ‘ऑपरेशन सिंदूर: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडिया की डीप स्ट्राइक इनसाइड पाकिस्तान’, जिसे पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल के. जे. एस. ढिल्लों ने लिखा है.
यह किताब सिर्फ एक सैन्य अभियान की कहानी नहीं है, बल्कि भारतीय सेना की रणनीतिक क्षमता, साहस और राष्ट्र के प्रति समर्पण की एक जीवंत झलक है.
सेना प्रमुख ने कहा ऑपरेशन अभी खत्म नहीं हुआ
पुस्तक विमोचन के मौके पर बोलते हुए सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने साफ कहा कि ऑपरेशन सिंदूर अब भी जारी है. यह सिर्फ एक सीमित अवधि की कार्रवाई नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया है जो भारत की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए आगे भी चलती रहेगी. उन्होंने कहा कि इस अभियान के दौरान भारतीय सेना ने जिस तरह से योजनाबद्ध और संगठित ढंग से कार्य किया, वह किसी भी सैन्य अभियान का आदर्श उदाहरण है. “सेना एक लयबद्ध लहर की तरह आगे बढ़ी थी,” उन्होंने गर्व से कहा.
10 मई को नहीं थमा था संघर्ष
अपने संबोधन में जनरल द्विवेदी ने इस भ्रम को भी दूर किया कि युद्ध 10 मई को खत्म हो गया था. उन्होंने कहा, “आपमें से कई को लगता होगा कि 10 मई को संघर्ष समाप्त हो गया, लेकिन ऐसा नहीं था. यह आगे भी चला क्योंकि कई निर्णय लिए जाने थे, और उस स्तर पर कुछ बातें साझा करना मेरे लिए संभव नहीं है.” दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत 7 मई की सुबह हुई थी. इसका उद्देश्य था. 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब देना, जिसमें भारतीय जवान शहीद हुए थे. इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में मौजूद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया और उन्हें तबाह किया.
चार दिनों तक चला था भीषण संघर्ष
इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की सेना ने जवाबी हमला किया, लेकिन भारतीय सेना ने उसी तीव्रता से पलटवार किया. करीब चार दिनों तक यह संघर्ष चला, जिसके बाद 10 मई की शाम को दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी और सैन्य कार्रवाई को विराम दिया गया.
किताब में झांकने को मिलेंगे वो पहलू, जो आमतौर पर छिपे रह जाते हैं
जनरल द्विवेदी ने लेखक लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने इस पुस्तक में उन पहलुओं को शामिल किया है, जिन्हें आमतौर पर सार्वजनिक नहीं किया जाता. सेना की आंतरिक कार्यशैली, संघर्ष के पीछे की रणनीति और सैनिकों के मनोबल की बारीकियों को उजागर करना आसान नहीं था और यही इस किताब को खास बनाता है. उन्होंने कहा, “हम नियंत्रण रेखा पर संघर्ष के इतने आदी हो चुके हैं कि कभी-कभी इसकी भावनात्मक और रणनीतिक गहराई को समझ नहीं पाते. यह किताब उसी गहराई को सामने लाती है.”
लेखक का परिचय: आतंकवाद के खिलाफ जमीनी अनुभव
इस किताब के लेखक लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) कंवल जीत सिंह ढिल्लों भारतीय सेना के एक अनुभवी अधिकारी रहे हैं. उन्होंने कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में आतंकवाद विरोधी अभियानों का नेतृत्व किया है. उनकी गहरी समझ और अनुभव ने इस किताब को एक दस्तावेजी प्रमाण बना दिया है — जिसमें भारत की सैन्य नीतियों और रणनीति की झलक मिलती है.
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