सिर्फ 48 घंटों का समय और बैकफुट पर आया अमेरिका, मिसाइल के आगे फीकी पड़ गई पनडुब्बी; फिर बदले ट्रंप के मिजाज

    रूस और यूक्रेन का जंग अब सिर्फ दोनों देशों की लड़ाई नहीं रह गई है, बल्कि धीरे-धीरे यह सीधे रूस बनाम अमेरिका के रूप में सामने आ रही है. दोनों महाशक्तियों के बीच अब जुबानी जंग से आगे बढ़कर कड़े सैन्य और रणनीतिक कदमों का दौर शुरू हो गया है.

    America warns russia with submarine putin move with missile
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    रूस और यूक्रेन का जंग अब सिर्फ दोनों देशों की लड़ाई नहीं रह गई है, बल्कि धीरे-धीरे यह सीधे रूस बनाम अमेरिका के रूप में सामने आ रही है. दोनों महाशक्तियों के बीच अब जुबानी जंग से आगे बढ़कर कड़े सैन्य और रणनीतिक कदमों का दौर शुरू हो गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनियों के बाद रूस ने सीधा जवाब देते हुए नई मिसाइल नीति का एलान कर दिया है. और खास बात यह है कि अब यह तनाव सिर्फ बयानों तक सीमित नहीं, बल्कि जमीन पर सैन्य हलचल भी साफ दिखने लगी है.

    डोनाल्ड ट्रंप के निर्देश पर अमेरिका ने हाल ही में दो न्यूक्लियर पनडुब्बियों को रणनीतिक इलाकों में तैनात किया. यह कदम रूस के खिलाफ स्पष्ट संदेश माना गया. लेकिन रूस ने भी चुप बैठने की बजाय जवाबी कार्रवाई की है. 

    पनडुब्बियों के जवाब में मिसाइलों की तैयारी

    रूस ने एलान किया है कि वह अब "INF संधि" यानी Intermediate-Range Nuclear Forces Treaty को मानने को बाध्य नहीं रहेगा और छोटी व मध्यम दूरी की परमाणु मिसाइलों की तैनाती दोबारा शुरू करेगा. रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने कहा कि नाटो देशों की उकसाने वाली नीतियों के कारण रूस अब संयम नहीं बरतेगा. उन्होंने चेतावनी दी कि आने वाले दिनों में रूस और सख्त कदम उठा सकता है.

    अमेरिका को चेतावनी, संधियों की अब नहीं पाबंदी

    रूसी विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि अब वह स्वैच्छिक रूप से लगाए गए परमाणु प्रतिबंधों का पालन नहीं करेगा. INF संधि से हटने का मतलब है कि रूस अब खुलकर मिसाइलें तैनात कर सकता है. क्रेमलिन का आरोप है कि अमेरिका पहले ही यूरोप और एशिया में अपने मिसाइल सिस्टम को सक्रिय कर चुका है, ऐसे में रूस के पास भी अपनी सुरक्षा को लेकर कदम उठाना जरूरी हो गया है.

    INF संधि क्या है, और क्यों है अहम?

    INF संधि अमेरिका और सोवियत संघ के बीच 1987 में साइन हुई थी. इसका मकसद 500 से 5500 किलोमीटर रेंज वाली जमीनी मिसाइलों को खत्म करना था. इस समझौते के तहत दोनों देशों ने 2600 से अधिक मिसाइलों को नष्ट किया था. यह शीत युद्ध के दौर की सबसे बड़ी रणनीतिक सफलताओं में एक माना गया था. लेकिन अब रूस का इससे अलग होना परमाणु खतरे को एक बार फिर बढ़ा सकता है.

    ट्रंप की चेतावनी पर कूटनीति की ओर रुख

    इस सख्त माहौल के बीच एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब डोनाल्ड ट्रंप ने अपने मिडिल ईस्ट दूत स्टीव विटकॉफ को रूस भेजने का फैसला किया. उन्होंने मीडिया से बातचीत में इसकी पुष्टि की. क्रेमलिन की तरफ से भी कहा गया कि विटकॉफ अगले कुछ दिनों में रूस पहुंचेंगे और अमेरिका की ओर से बातचीत का रास्ता तलाशेंगे. यह पहल उस समय की जा रही है जब ट्रंप और मेदवेदेव के बीच सोशल मीडिया पर तीखी बहस हो चुकी है. ट्रंप की "समझौते की समय सीमा" तय करने की कोशिश को मेदवेदेव ने युद्ध का निमंत्रण बताया था, जिससे दोनों नेताओं के बीच टकराव और बढ़ गया.

    अमेरिका-रूस तनाव की आंच भारत तक

    इस पूरे प्रकरण में भारत का नाम भी चर्चा में आ गया है. ट्रंप ने कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में अप्रत्यक्ष रूप से भारत को भी निशाने पर लिया है, जिससे यह साफ हो गया है कि यह लड़ाई अब सिर्फ अमेरिका और रूस के बीच सीमित नहीं है. भू-राजनीतिक समीकरणों में भारत की भूमिका भी ट्रंप की रणनीति का हिस्सा बन सकती है.

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