आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की तेजी से प्रगति ने दुनिया के सामने एक नया सवाल खड़ा कर दिया है — क्या भविष्य में इंसान भी एआई से लैस होंगे? क्या तकनीक सिर्फ हमारे काम करने के तरीके को ही नहीं, बल्कि हमारी ज़िंदगी और पहचान को पूरी तरह बदल देगी? इस विषय पर कई बड़े दावे हो रहे हैं, जिनमें सबसे चर्चा में एक अरबपति और वैज्ञानिक हरबर्ट सिम का है. उनका मानना है कि आने वाले पांच सालों में ऐसे इंसान पैदा होंगे जो एआई के साथ जीएंगे और मानवता के मानक पूरी तरह बदल जाएंगे.
हरबर्ट सिम का भविष्य का विजन
लंदन की न्यूरोचिप डॉट कॉम कंपनी के संस्थापक हरबर्ट सिम इस क्षेत्र के अग्रणी विशेषज्ञ हैं. 38 साल के इस फ्यूचरिस्ट ने अपनी रिसर्च में एआई और मानव मस्तिष्क के बीच एक पुल बनाने की दिशा में काम किया है. उन्होंने एक ऐसा हेलमेट विकसित किया है जो ब्रेन वेव्स को पढ़कर कंप्यूटर पर प्रोजेक्ट करता है, जिससे इंसान की सोच को तकनीक से जोड़ा जा सके.
हरबर्ट का दावा है कि आने वाले समय में हमें सर्जरी या मस्तिष्क में चिप्स लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह तकनीक लोगों की जीवनशैली को बेहतर बनाएगी और बीमारियों से लड़ने में मदद करेगी. उनका कहना है कि ट्रांसह्यूमनिज्म — यानी तकनीक के जरिए मानव क्षमताओं का विस्तार — मानवता को एक नई दिशा देगा.
तकनीक से बदलती मानवता की परिभाषा
हरबर्ट के अनुसार, यह सिर्फ विज्ञान नहीं बल्कि मानव जीवन का एक नया मोड़ है. ट्रांसह्यूमनिज्म से इंसान अपनी उम्र बढ़ा सकता है, यहां तक कि 500 साल तक जीवित रहना भी संभव हो सकता है. यह तकनीक न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक क्षमताओं को भी विकसित करेगी. इससे इंसानों की सोचने-समझने की क्षमता और उनके अनुभवों का स्तर भी ऊंचा होगा.
यहां तक कि हरबर्ट यह भी मानते हैं कि आने वाले समय में नई प्रजातियां भी जन्म लेंगी, जो वर्तमान इंसानों से कहीं अधिक उन्नत होंगी. वे बताते हैं कि हमारे लोककथाओं और मिथकों में ड्रैगन और विभिन्न विचित्र प्राणियों की कल्पना इसलिए बनी क्योंकि भविष्य में इस तरह की नई और उन्नत प्रजातियां आ सकती हैं.
जापान में स्टेम सेल और हाइब्रिड तकनीक का प्रयोग
टेक्नोलॉजी के इस दौर में केवल कल्पनाओं तक सीमित नहीं रहना है. जापान जैसी अग्रणी देशों ने पहले ही स्टेम सेल रिसर्च और हाइब्रिड मानव-प्राणी प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है. 2019 में जापानी सरकार ने इस रिसर्च को आधिकारिक मंजूरी भी दे दी थी. ये प्रयोग इंसानों और जानवरों के बीच जैविक हाइब्रिड बनाने के लिए हो रहे हैं, जो मानवता के स्वरूप को पूरी तरह बदल सकते हैं.
क्या मानवता बच पाएगी?
हरबर्ट का मानना है कि अगर यह तकनीक सही तरीके से अपनाई गई तो मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा. लेकिन वे यह भी कहते हैं कि अगर हम पुराने तौर-तरीकों को ही अपनाए रहेंगे तो धीरे-धीरे मानवता की सीमाएं खत्म हो जाएंगी. यह समय हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम एक नई, तकनीकी मानवता को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं या नहीं.
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