भारत की ड्रोन और एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी ने दुनिया को किया हैरान, NATO के कई देशों ने दिखाई दिलचस्पी

भारतीय कंपनियों के ड्रोन और एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी ने न केवल भारत, बल्कि दुनिया के कई देशों को प्रभावित किया. विशेष रूप से मध्य-पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया, कोकेशियान और अफ्रीकी देशों ने भारतीय ड्रोन टेक्नोलॉजी में गहरी रुचि दिखाई है.

India's drone and anti-drone technology surprised the world many NATO countries showed interest
प्रतिकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

नई दिल्ली: हाल ही में बेंगलुरु में आयोजित एयरो इंडिया 2025 ने भारतीय रक्षा तकनीकी क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान दिलाई. इस प्रदर्शनी के दौरान भारतीय कंपनियों के ड्रोन और एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी ने न केवल भारत, बल्कि दुनिया के कई देशों को प्रभावित किया. विशेष रूप से मध्य-पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया, कोकेशियान और अफ्रीकी देशों ने भारतीय ड्रोन टेक्नोलॉजी में गहरी रुचि दिखाई है. 

इस एयर शो ने भारतीय डिफेंस इंडस्ट्री के लिए कई देशों के दरवाजे खोले हैं. भारत सरकार ने इस दिशा में एक बड़ी छलांग लगाई है, और इसके साथ ही 5 अरब डॉलर के हथियार निर्यात लक्ष्य की योजना भी बनाई है.

भारत के लिए वैश्विक बाजार में अवसर

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय रक्षा कंपनियां NATO देशों के बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने की योजना बना रही हैं. इन कंपनियों के उपकरणों में दुनियाभर के देशों ने रुचि दिखाई है, खासकर ड्रोन और एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी में. 

एयर शो में भारत के ड्रोन और एंटी-ड्रोन सिस्टम्स का प्रदर्शन इस तरह हुआ कि न केवल भारतीय कंपनियों ने अपनी तकनीकी क्षमताओं को प्रस्तुत किया, बल्कि दुनिया के अन्य देशों को भी इस दिशा में निवेश करने का मौका मिला. पिछले कुछ वर्षों में भारतीय रक्षा सेवाओं ने करीब 2500 मिलिट्री ड्रोन खरीदने के लिए लगभग 3000 करोड़ रुपये का निवेश किया है. अब भारत की ड्रोन इंडस्ट्री अगले दशक में अरबों डॉलर की ओर अग्रसर होने के लिए तैयार है.

ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग में भारत का प्रमुख स्थान

वर्तमान में भारत में करीब 300 ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां कार्यरत हैं, जो कृषि से लेकर रक्षा क्षेत्र तक के लिए ड्रोन विकसित कर रही हैं. भारत ने 2030 तक एक प्रमुख वैश्विक ड्रोन लीडर बनने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है. यह लक्ष्य न केवल भारत की टेक्नोलॉजी में वृद्धि को दर्शाता है, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में भी सक्षम बनाता है.

जेन टेक्नोलॉजी का वैश्विक विस्तार

भारत की जेन टेक्नोलॉजी जैसी कंपनियां विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ रही हैं. आर्मेनिया ने अपनी सेना की क्षमता को बढ़ाने के लिए जेन टेक्नोलॉजी के एंटी-ड्रोन सिस्टम को चुना है. भारतीय वायु सेना ने 2021 में इसी तरह के एंटी-ड्रोन सिस्टम को खरीदा, और भारतीय सेना ने C-UAS की 20 इकाइयों का ऑर्डर दिया था, जिसकी कीमत 2.27 अरब रुपये थी. 

अब, भारतीय कंपनियां संयुक्त राज्य अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं, ताकि नाटो देशों के बाजार में अपनी उपस्थिति मजबूत कर सकें. 

भारत का रक्षा क्षेत्र एक नई शक्ति

भारत की ड्रोन और एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी ने न केवल देश के रक्षा क्षेत्र को सशक्त किया है, बल्कि यह देश की वैश्विक स्थिति को भी बेहतर बना रही है. भारत अब वैश्विक रक्षा बाजार में एक अग्रणी भूमिका निभाने की ओर बढ़ रहा है. इससे न केवल भारतीय रक्षा उद्योग को मजबूती मिलेगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारत की तकनीकी श्रेष्ठता को स्वीकार किया जाएगा.

ये भी पढ़ें- भारत-पाकिस्तान मैच से पहले विराट कोहली ने की खास तैयारी, 90 मिनट पहले प्रैक्टिस पर पहुंचे