नई दिल्ली : इस अटकल पर विराम लगता दिख रहा है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव एक बार फिर से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्होंने 2014 में भी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा था. सपा की आज जारी दो नामों की लिस्ट में अखिलेश ने इस बार कन्नौज लोकसभा सीट से अपने भतीजे तेज प्रताप सिंह यादव को टिकट दिया है. यहां से वह चुनाव लड़ते रहे हैं. इससे पहले वहां से डिंपल यादव भी चुनाव लड़ चुकी हैं. वह अपनी एक और पारंपरिक सीट आजमगढ़ से अपने भाई और सपा के बड़े नेता धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है.
भाजपा ने अखिलेश के इस फैसले पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली है. हालांकि अभी भी पूरी तरह यह नहीं कहा जा सकता है कि अखिलेश लोकसभा चुनाव 2024 लड़ेंगे या नहीं क्योंकि यूपी में सभी 7 चरणों में चुनाव होंगे और अभी 6 चरण बाकी हैं लिहाजा आखिरी समय में भी वह किसी सीट से मैदान में उतर सकते हैं. हालांकि यूपी कुल 80 पर उनके ज्यदातार उम्मीदवार घोषित हो चुके हैं.
गौरतलब है कि आज पार्टी ने दो उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की है जिसमें तेज प्रताप सिंह यादव को कन्नौज से तो सनातन पाण्डेय को बलिया सीट पर बीजेपी उम्मीदवार नीरज शेखर के खिलाफ उतारा है.
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) April 22, 2024
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भाजपा ने अखिलेश यादव पर साधा निशाना, कहा- अखिलेश भाग रहे हैं
भाजपा के उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्य मंत्री मोहसिन रजा ने अखिलेश पर निशाना साधते हुए कहा, "आज एक और लिस्ट आई है पीडीए या यूं कह लें कि समाजवादी पार्टी की. आज तो उन्होंने साफ कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया ने अपनी हार स्वीकार करते हुए कन्नौज से भी अपने परिवार को किसी सदस्य को टिकट दे दिया है, अपने लिए उनको कोई स्थान नहीं मिल पा रहा है. जाहिर वह अपनी पार्टी के मुखिया हैं वे इतनी बड़ी हार कैसे स्वीकार कर पाएंगे, उनके सारे कार्यकर्ता उनकी हार कैसे स्वीकार कर पाएंगे. इसलिए उन्होंने साफ कर दिया है कि वह उत्तर प्रदेश में शायद चुनाव नहीं लड़ेंगे, क्योंकि उन्हें हर तरफ हार सता रही है."
सपा, कांग्रेस के शहज़ादे हार के डर से चुनाव के मैदान से भागते नज़र आ रहे हैं@PTI_News @ANI @aajtak @ZeeNews @NewsNationTV @News18UP pic.twitter.com/33ApUX9jem
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हर सीट पर अखिलेश यादव का नेतृत्व- सपा प्रवक्ता
पूर्व सीएम अखिलेश यादव के लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर सपा प्रवक्ता घनश्याम तिवारी ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, "कन्नौज उत्तर प्रदेश की उन अनेक सीटों में से है जहां का हर परिवार खुद स्वर्गीय मुलायम सिंह जी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी को परिवार का हिस्सा मानता है. आम लोगों के बीच कन्नौज से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अखिलेश जी का प्रतिबिंब हैं, भाजपा को आरोप लगाने की बीमारी है. जबसे जनता ने इन्हे हराने का उद्घोष किया है बीमारी और बढ़ गई है. अखिलेश यादव जी ने 80 हराओ का नारा दिया है, जनता तैयार बैठी है. हर सीट पर अखिलेश जी का नेतृत्व दिख रहा है."
अखिलेश यादव 2012 से 2017 तक रहे हैं यूपी के मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव ने 2012 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी उन्होंने विपक्षी पार्टी को बड़ी मात देकर सत्ता हासिल की थी. 5 सालों में उन्होंने अपनी विकास पुरुष की छवि गढ़ी थी, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह मोदी लहर में सत्ता से बाहर हो गए थे. हालांकि वह आजमगढ़ से अपनी सीट जीतने में सफल रहे थे. वह तीन बार के सांसद रह चुके हैं.
2022 में वह मैनपुरी की करहल सीट पर चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने थे. उन्होंने बीजेपी के कैबिनेट मंत्री सत्यपाल बघेल को हराया था. इसके बाद उन्होंने आजमगढ़ से इस्तीफा दे दिया था. वहां से उपचुनाव में अपने भाई और दिग्गज नेता धर्मेंद्र यादव को मैदान उतारा था, लेकिन वह भाजपा नेता और भोजपुरी गायक दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' से चुनाव हार गए थे.
लोकसभा के चुनावी मैदान में दूसरी बार नहीं उतर रहे सपा प्रमुख अखिलेश
अखिलेश यादव इससे पहले भी लोकसभा 2014 का चुनाव नहीं लड़ा था. लेकिन 2019 में आजमगढ़ से चुनावी मैदान में उतरे थे और भाजपा के दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' को चुनाव हराया था. उन्होंने निरहुआ को 2 लाख 59 हजार वोटों से मात दी थी. अखिलेश को निरहुआ के खिलाफ 6,81578 वोट मिले थे.
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कन्नौज से डिंपल 2014 का चुनाव जीती थीं, लेकिन 2019 का चुनाव हार गई थीं
लोकसभा के दो चुनाव में कन्नौज सीट पर मुकाबला बहुत करीबी रहा था. 2014 में जहां डिंपल यादव ने भाजपा के सुब्रत पाठक को हराया था, वहीं वह उन्हीं से 2019 का चुनाव हार गई थीं. 2014 में डिंपल यादव को जहां 4,89164 वोट मिले थे, वहीं सुब्रत पाठक को 4,69257 वोट मिले थे, यह मुकाबला काफी करीबी रहा था. वहीं 2019 में डिंपल यादव सुब्रत पाठक से चुनाव हर गई थीं. उन्हें 5,50734 वोट मिले थे जबकि सुब्रत पाठक को 5,63087 वोट मिले थे.
कन्नौज से मैदान में उतरने वाले कौन हैं तेज प्रताप सिंह यादव
समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव के उत्तर प्रदेश के कन्नौज से तेज प्रताप सिंह यादव को मैदान में उतारा है. मैनपुरी से पूर्व सांसद और अखिलेश यादव के भतीजे तेज प्रताप यादव राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के दामाद भी हैं. उनकी शादी लालू की बेटी राज लक्ष्मी यादव से हुई है.
तेज प्रताप दिवंगत सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के भाई रणवीर सिंह के पोते हैं. वह 2014 से 2019 तक मैनपुरी से सांसद रहे हैं. तेज प्रताप के अलावा यादव परिवार के सदस्य मैनपुरी, आजमगढ़, बदांयू और फिरोजाबाद लोकसभा सीटों से भी चुनाव लड़ रहे हैं.
कन्नौज सीट का प्रतिनिधित्व कभी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव किया करते थे.
सनातन पाण्डेय 2019 में बीजेपी उम्मीदवार से हार चुके हैं चुनाव
सनातन पाण्डेय इससे पहले भी 2019 में यहां से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन बीजेपी के वीरेंद्र सिंह मस्त से हार गए थे.
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर के बेटे नीरज शेखर 2007 से 2014 तक लोकसभा सांसद रहे, जो बलिया से सपा का प्रतिनिधित्व करते थे, यह पहले उनके पिता का निर्वाचन क्षेत्र था.
2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें सपा ने मैदान में नहीं उतारा, जिसके बाद उन्होंने सपा छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए, जिसने उन्हें संसद के उच्च सदन में भेज दिया.
बलिया लोकसभा क्षेत्र में 1 जून को मतदान होगा.
2019 के लोकसभ चुनाव में सपा का हाल हुआ था बुरा
2019 के आम चुनावों में, भाजपा विजयी हुई, उसने 80 में से 62 सीटें हासिल कीं, इसके अलावा उसकी सहयोगी अपना दल (एस) को दो सीटें मिली थीं. मायावती की बसपा 10 सीटें हासिल करने में सफल रही, जबकि अखिलेश यादव की सपा को पांच सीटें मिलीं. इसके विपरीत, कांग्रेस पार्टी को केवल एक सीट हासिल हुई.
अखिलेश ने सत्ताधारी दल पर साधा निशाना, बताया संविधान विरोधी
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ''बीजेपी में सर्वोच्च पदों पर बैठे लोग चुनावी रैलियों में बेतुकी बातें कहकर कांग्रेस के खिलाफ जो झूठ फैला रहे हैं, उससे बीजेपी का झूठ ही सामने आ रहा है. एक तरफ तो वे दावा कर रहे हैं कि वे 400 सीटें जीतेंगे, विपक्ष जीत गया तो क्या होगा कहकर जनता को डरा कर चुनाव में कुछ वोट हासिल करना चाहते हैं...सच तो यह है कि मध्यम वर्ग, जिसके पास एक या दो जोड़ी गहने हैं वे भी भाजपा के खिलाफ वोट कर रहे हैं क्योंकि मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग भी बेरोजगारी और महंगाई से प्रभावित हैं."
''किसी खास समुदाय का नाम लेकर उसके बारे में गलत बातें कहना दुनिया भर में फैले उस समुदाय का अपमान है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इससे देश की धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक पहचान को ठेस पहुंची है. यह बेहद आपत्तिजनक बयान है, जिसे माफ नहीं किया जा सकता ....केवल वे लोग ही ऐसी असंवैधानिक भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं जिनका इरादा संविधान को नष्ट करने का है.''
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