नई दिल्ली: जब एक राष्ट्र के नागरिक अपने सामूहिक व्यवहार से विदेश नीति को प्रभावित करने लगें, तो यह संकेत होता है कि वैश्विक राजनीति अब सिर्फ सरकारों तक सीमित नहीं रही. भारत और तुर्की के बीच हालिया तनाव इसी बदलाव का एक नया अध्याय बन सकता है. पाकिस्तान समर्थित बयानों और तुर्की की मीडिया द्वारा चलाए गए प्रोपेगेंडा के बाद, भारतीयों में असंतोष गहराता जा रहा है. इसके नतीजे में तुर्की को भारत के शक्तिशाली पर्यटन बाजार से झटका लगने की आशंका है.
लेकिन सवाल यह है कि क्या तुर्की भी मालदीव जैसी ही स्थिति का शिकार होगा? या यह असर और भी व्यापक हो सकता है?
भारतीय पर्यटक: वैश्विक टूरिज्म का उभरता नेतृत्व
भारतीयों को लंबे समय तक केवल बजट ट्रैवलर समझा जाता था, लेकिन आज भारतीय पर्यटक वैश्विक पर्यटन उद्योग का एक मजबूत आर्थिक स्तंभ बन चुके हैं. वर्ष 2023 में भारतीय पर्यटकों ने विदेश यात्राओं पर अनुमानित 18 अरब डॉलर से अधिक खर्च किया था. यही कारण है कि भारत जैसे विशाल और खर्चीले पर्यटक वर्ग की नाराजगी किसी भी देश के पर्यटन क्षेत्र में भूकंप जैसे प्रभाव डाल सकती है.
तुर्की की लोकप्रियता और 2025 का संकट
पिछले पांच वर्षों में तुर्की ने भारत में तेजी से लोकप्रियता हासिल की है – खासकर हनीमून, फैमिली ट्रैवल और डेस्टिनेशन वेडिंग्स के रूप में. साल 2023 में जहां करीब 2.74 लाख भारतीय पर्यटक तुर्की गये, वहीं 2024 में यह संख्या 3.5 लाख तक पहुंच गई. पर्यटन क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि तुर्की सरकार ने 2025 में भारतीय टूरिज्म से लगभग 300 मिलियन डॉलर की आय की उम्मीद जताई थी.
लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. तुर्की की राजनीतिक स्थिति और भारत विरोधी रुख के चलते, भारत के प्रमुख ट्रैवल ऑपरेटर्स बुकिंग कैंसिल कर रहे हैं. कुछ ने तुर्की के पैकेज अपने प्लेटफॉर्म से हटा भी दिए हैं. यदि यह बहिष्कार स्थायी हुआ, तो तुर्की को 150–200 मिलियन डॉलर की सीधी आय का नुकसान हो सकता है.
डेस्टिनेशन वेडिंग्स: आर्थिक पावरहाउस
भारतीय डेस्टिनेशन वेडिंग्स पूरी दुनिया में अपनी भव्यता और खर्च के लिए जानी जाती हैं. तुर्की के शहर जैसे इंस्तांबुल, एंटाल्या, बोडरम, और कपाडोसिया – इन शादियों के लोकप्रिय स्थल बन चुके हैं. एक औसत भारतीय डेस्टिनेशन वेडिंग का खर्च 5 से 15 करोड़ रुपये तक हो सकता है.
हर साल 50 से अधिक भारतीय परिवार तुर्की में शादियां करते हैं, जिससे तुर्की को 500 से 1000 करोड़ रुपये तक की कमाई होती है. वेडिंग इंडस्ट्री, होटल, ट्रांसपोर्ट, फोटोग्राफर, इवेंट प्लानर जैसे अनगिनत सेक्टर इससे प्रभावित होते हैं. यदि भारत का बहिष्कार लंबे समय तक जारी रहा, तो सिर्फ वेडिंग इंडस्ट्री में ही 1000 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है.
व्यापार में भी आ सकता है भूचाल
भारतीय पर्यटकों का बहिष्कार सिर्फ टूरिज्म तक सीमित नहीं है. अब इसके प्रभाव व्यापारिक संबंधों पर भी दिखने लगे हैं. भारतीय बाजारों से अचानक तुर्की के सेब गायब हो गए हैं. व्यापारी अब ईरान, अमेरिका और न्यूजीलैंड से सेब मंगाने लगे हैं. हर साल तुर्की से भारत में 1.6 लाख टन सेब आयात होते थे, लेकिन अब भारतीय ग्राहक इन्हें खरीदने से परहेज कर रहे हैं.
वहीं सूत्रों के मुताबिक, भारत सरकार तुर्की से दालों, तिलहनों और स्टील के व्यापार को लेकर भी पुनर्विचार कर रही है. भारत और तुर्की के बीच व्यापार को 20 अरब डॉलर तक पहुंचाने की योजना थी, लेकिन सरकारी स्तर पर अब नीतिगत बदलाव की चर्चा तेज हो गई है.
आर्थिक बहिष्कार विचारधारा का विरोध
मालदीव प्रकरण के दौरान देखा गया था कि किस तरह भारतीयों के बहिष्कार ने एक छोटे से द्वीपीय राष्ट्र को नीति बदलने पर मजबूर कर दिया. मालदीव की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान 28% से अधिक है और भारत उसके लिए सबसे बड़ा टूरिज्म मार्केट रहा है.
अब तुर्की भी उसी मोड़ पर खड़ा है. हालांकि उसकी अर्थव्यवस्था बड़ी है, लेकिन टूरिज्म का उसमें 10% से अधिक योगदान है. भारत का बहिष्कार सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं पहुंचाएगा, बल्कि यह एक कड़ा राजनीतिक संदेश भी देगा – “आतंकवाद को समर्थन करने वालों से भारत के रिश्ते नहीं हो सकते.”
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