जब देश पर हमला होता है, तो सिर्फ सेना ही नहीं, आम जनता और व्यापारी वर्ग भी दुश्मनों को जवाब देने के लिए खड़े हो जाते हैं. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत में ग़ुस्से की लहर थी, लेकिन इस बार जवाब सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी दिया गया है. इस हमले के बाद अब यह साफ होता जा रहा है कि कौन से देश भारत के साथ हैं और कौन पाकिस्तान जैसे आतंक के समर्थकों का पक्ष ले रहे हैं.
इस सूची में चीन के साथ अब एक और नाम तेजी से उभरकर सामने आया है — तुर्किये. तुर्किये ने भारत के दर्द को नज़रअंदाज़ करते हुए पाकिस्तान का परोक्ष समर्थन किया, और यही बात अब देश के कारोबारियों को चुभने लगी है.
तुर्किये का विरोध तेज़
पहले जेएनयू, जामिया और अन्य प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों ने तुर्किये के साथ हुए अकादमिक समझौतों को रद्द कर एक स्पष्ट संदेश दिया. अब इसी राह पर चलते हुए देश के मार्बल कारोबारियों ने तुर्किये को बड़ा आर्थिक झटका देने की तैयारी कर ली है. दिल्ली, किशनगढ़, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ और सिलवासा जैसे पांच प्रमुख मार्बल हब के व्यापारियों ने एकजुट होकर तुर्किये से मार्बल आयात न करने का फैसला किया है.
‘भारत विरोधियों से न कोई रिश्ता, न कोई व्यापार’
दिल्ली मार्बल डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण कुमार गोयल ने दो टूक कहा कि भारत विरोधियों का साथ देने वालों को हमारे देश के व्यापारियों से कोई समर्थन नहीं मिलेगा. यह केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि देशभक्ति से प्रेरित सामूहिक रुख है.
तुर्किये को करोड़ों का नुकसान तय
भारत हर साल लगभग 14 लाख मीट्रिक टन मार्बल आयात करता है, जिसमें करीब 70% हिस्सा तुर्किये से आता है. यह आंकड़ा सीधे-सीधे 2,000 से 2,500 करोड़ रुपए के व्यापार को दर्शाता है. अब जब तुर्किये को बहिष्कृत करने की योजना पर अमल शुरू हो चुका है, तो यह पूरी रकम तुर्किये के हाथ से फिसल सकती है.
विकल्प तैयार, व्यापार जारी रहेगा
कारोबारी वर्ग भी पूरी तैयारी में है. तुर्किये की जगह अब इटली, स्पेन, वियतनाम, क्रोशिया, ग्रीस और नामीबिया जैसे देशों से मार्बल आयात करने की योजना बनाई जा रही है. ये सभी देश पहले भी भारत को मार्बल निर्यात करते रहे हैं. अब इनसे संबंधों को और सशक्त करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.
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