Ajit Doval In Russia: दुनिया की बदलती भू-राजनीतिक तस्वीर में भारत अब संतुलनकारी नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभा रहा है. रूस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी एक बार फिर वैश्विक मंच पर चर्चा का विषय बन गई है. इसी क्रम में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल की मास्को यात्रा ने यह साफ कर दिया है कि नई दिल्ली अब अपने हितों को लेकर ज्यादा मुखर और स्पष्ट रुख अपनाने को तैयार है, चाहे वॉशिंगटन को यह पसंद आए या नहीं.
हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा ने इस मामले को और भी संवेदनशील बना दिया है. माना जा रहा है कि यह कदम रूस से सस्ते तेल की खरीदारी के चलते उठाया गया है. इस पृष्ठभूमि में NSA डोभाल की रूस यात्रा और पुतिन से हुई मुलाकातें सिर्फ कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि अमेरिका को एक परोक्ष संदेश हैं कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी का दबाव नहीं मानेगा.
मास्को में डोभाल की रणनीतिक कूटनीति
NSA अजीत डोभाल ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से विस्तृत चर्चा की और संकेत दिया कि पुतिन जल्द भारत यात्रा पर आ सकते हैं. इसके अलावा उन्होंने रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव और सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगू से भी बातचीत की. इन बैठकों में मुख्य रूप से सैन्य-तकनीकी सहयोग, ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक परियोजनाओं की समीक्षा की गई. रूसी अधिकारियों के अनुसार, दोनों देशों के बीच की दोस्ती "समय की कसौटी पर खरी" साबित हुई है और भविष्य में यह साझेदारी और भी मजबूत होने जा रही है.
पुतिन और मोदी के बीच टेलीफोन पर बातचीत
NSA डोभाल की मास्को यात्रा से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच फोन पर बातचीत हुई. पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर जानकारी दी कि दोनों नेताओं ने यूक्रेन संकट, द्विपक्षीय संबंधों और आगामी योजनाओं पर चर्चा की. साथ ही पीएम मोदी ने पुतिन को भारत आने का निमंत्रण भी दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है.
भारत का कूटनीतिक संदेश साफ है
डोभाल की रूस यात्रा, पुतिन-मोदी बातचीत, और साथ ही ब्राजील व चीन जैसे देशों के साथ भारत की तेज़ होती राजनयिक गतिविधियां, ये सब मिलकर एक व्यापक संदेश देती हैं: भारत अब बहुध्रुवीय दुनिया में अपनी भूमिका को लेकर अधिक आत्मविश्वासी है और किसी भी वैश्विक दबाव के सामने झुकने को तैयार नहीं.
जहां एक ओर अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर अतिरिक्त टैरिफ थोपकर अप्रत्यक्ष दबाव डालने की कोशिश की, वहीं भारत ने अपने कूटनीतिक कदमों से यह स्पष्ट कर दिया है कि उसकी विदेश नीति "राष्ट्रीय हित" को सर्वोपरि मानती है, चाहे वह ऊर्जा सुरक्षा हो, रक्षा सहयोग हो या वैश्विक मंचों पर रणनीतिक संतुलन.
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