जब पूरी दुनिया टैरिफ वॉर, रूस-यूक्रेन संघर्ष और आर्थिक अस्थिरता जैसी चुनौतियों से जूझ रही है, तब भारत के लिए इन वैश्विक हालात एक आर्थिक राहत बनकर उभर रहे हैं. ग्लोबल रेटिंग एजेंसी इक्रा की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत को अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा कीमतों में नरमी के कारण चालू वित्तवर्ष में कच्चे तेल और एलएनजी के आयात पर लगभग 1.8 लाख करोड़ रुपये तक की संभावित बचत हो सकती है.
तेल के दाम में गिरावट
रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक मांग में सुस्ती के चलते ब्रेंट क्रूड की कीमतें गिरकर 60 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई हैं. महामारी के दौर में यह कीमत 30 डॉलर तक जा पहुंची थी, और अब फिर से वही रुझान दिखाई दे रहा है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, आने वाले समय में भी क्रूड की कीमतें नरम बनी रह सकती हैं, जिससे तेल आयातक देशों को फायदा होगा.
भारत की ऊर्जा जरूरतें और खर्च
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक है और अपनी कुल जरूरत का 85% से अधिक तेल आयात करता है. वित्तवर्ष 2024-25 में भारत ने 242.4 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया, जो कुल आयात बिल का बड़ा हिस्सा है. एलएनजी की बात करें तो, भारत अपनी आवश्यकता का लगभग आधा घरेलू उत्पादन से और बाकी आयात के जरिए पूरा करता है. बीते साल 15.2 अरब डॉलर का एलएनजी आयात किया गया था.
व्यापार घाटे पर असर
भारत का 2024-25 में कुल व्यापार घाटा 94.26 अरब डॉलर रहा, जहां कुल निर्यात 820.93 अरब डॉलर और कुल आयात 915.19 अरब डॉलर रहा. इस घाटे में कच्चे तेल की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही, जो भारत के आयात बिल का 25% से भी अधिक है.
2025-26 के लिए अनुमान
इक्रा ने अनुमान लगाया है कि अगले वित्तवर्ष में भी कच्चे तेल की औसत कीमत 60-70 डॉलर प्रति बैरल के बीच रह सकती है. इस स्तर पर तेल कंपनियों की आय लगभग 25,000 करोड़ रुपये रह सकती है. रिपोर्ट के अनुसार, एलएनजी पर भी करीब 6,000 करोड़ रुपये की बचत संभव है.
ये भी पढ़ें: भारत ने उड़ाए पाक के चीथड़े; ऑपरेशन सिंदूर से बिलबिलाए शहबाज, बोले - सिर्फ हमला नहीं किया, मजाक भी उड़ाया