पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और वहां मौजूद आतंकी ठिकानों पर तीव्र कार्रवाई की. ब्रह्मोस मिसाइलों के प्रहार ने पाकिस्तान को इतना दहला दिया कि प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और उनके कमांडर फील्ड मार्शल आसिम मुनीर युद्धविराम के लिए ताबड़तोड़ गुहार लगाने लगे. भारत ने हालांकि अपनी शर्तों पर ही युद्धविराम के लिए सहमति दी.
इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की बराबरी करने के लिए रॉकेट फोर्स गठित करने का ऐलान कर चुका है. हालांकि इस नई पहल के ढांचे और रणनीतियों को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन विशेषज्ञों का सवाल है कि आर्थिक तंगी और कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान अपनी जनता को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं दे पा रहा, तो रॉकेट फोर्स के लिए आवश्यक हजारों करोड़ रुपये कहां से लाएगा.
भारत की सैन्य और आर्थिक बढ़त
भारत की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान से लगभग 10 गुना बड़ी है. भारतीय सेना की क्षमता में आधुनिक हथियार शामिल हैं—राफेल, Su-30MKI, ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल, अग्नि-5 ICBM और हाइपरसोनिक मिसाइलें. पाकिस्तान फिलहाल इस स्तर तक पहुंचने में असमर्थ है.
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का नया रॉकेट फोर्स अपनी पारंपरिक एयर पावर में गिरावट और भारत के मुकाबले लड़ाकू विमानों की संख्या कम होने के कारण संतुलन बनाने का प्रयास है. भारतीय वायुसेना के पास लगभग 600 लड़ाकू जेट हैं, जबकि पाकिस्तान के पास लगभग 350 जेट हैं. भारत ने हाल के वर्षों में राफेल जैसे आधुनिक विमानों के जरिए बढ़त बनाई है, जबकि पाकिस्तान मुख्य रूप से JF-17 और पुराने F-16 पर निर्भर है.
रॉकेट फोर्स भारत के लिए खतरा या रणनीतिक संकेत?
मिलिट्री विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की यह पहल भारत के लिए प्रत्यक्ष खतरा नहीं है. यह अधिकतर टैक्टिकल मिसाइलों और शॉर्ट-रेंज स्ट्राइक क्षमता के जरिए मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ाने की कोशिश है. चीन के साथ पाकिस्तान की नजदीकी और उसकी रक्षा तकनीक पर निर्भरता भी भारत की चिंता का विषय बनी हुई है.
अमेरिका की भूमिका
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अमेरिका पाकिस्तान को रॉकेट फोर्स प्रोजेक्ट में किसी तकनीकी मदद देगा. हाल के सालों में वाशिंगटन ने पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग सीमित किया है और भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को प्राथमिकता दी है. हालांकि कुछ विश्लेषक मानते हैं कि चीन पहले से ही पाकिस्तान को मिसाइल और रॉकेट सिस्टम में मदद कर रहा है और भविष्य में अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका भी सहयोग कर सकता है.
क्षेत्रीय संतुलन पर असर
विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान का यह नया कदम अधिकतर मनोवैज्ञानिक दबाव और रणनीतिक संकेत के तौर पर देखा जा सकता है. भारत पहले से ही ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक और बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता रखता है. ऐसे में पाकिस्तान की रॉकेट फोर्स फिलहाल अधिक कैच-अप गेम प्रतीत होती है, न कि क्षेत्रीय ताकत का संतुलन बदलने वाली पहल.
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