नोएडा डे केयर की घटना ने उठाए बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल, इन बातों का रखें ध्यान

    Day Care Centers: देश की आत्मा को झकझोर देने वाली एक घटना ने हर माता-पिता के मन में डर और चिंता पैदा कर दी है. नोएडा के एक डे-केयर सेंटर में महज 15 महीने की मासूम बच्ची के साथ की गई निर्दय मारपीट ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि हम अपने बच्चों को जिन हाथों में सौंपते हैं, क्या वो सच में भरोसे के लायक हैं?

    Noida day care incident raises questions safety of children keep these things in mind
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    Day Care Centers: देश की आत्मा को झकझोर देने वाली एक घटना ने हर माता-पिता के मन में डर और चिंता पैदा कर दी है. नोएडा के एक डे-केयर सेंटर में महज 15 महीने की मासूम बच्ची के साथ की गई निर्दय मारपीट ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि हम अपने बच्चों को जिन हाथों में सौंपते हैं, क्या वो सच में भरोसे के लायक हैं?

    सीसीटीवी फुटेज में जिस बेरहमी से एक मेड बच्ची को थप्पड़ मारते, जमीन पर पटकते, दांत से काटते और पेंसिल से उसके मुंह में वार करते हुए दिख रही है, वह किसी भी इंसान को विचलित करने के लिए काफी है. घटना सामने आने के बाद बच्ची के माता-पिता की शिकायत पर डे-केयर संचालिका और मेड के खिलाफ FIR दर्ज की गई है.

    "डिस्प्लेसमेंट और बचपन का ट्रॉमा हो सकती है वजह"

    मनोविज्ञान एक्सपर्ट डॉ. मनोश्री गुप्ता के अनुसार, इस तरह की हिंसा अक्सर एक गहरे मानसिक विकार या अतीत के दबे हुए दर्द का परिणाम होती है. उन्होंने बताया कि जिन लोगों ने खुद बचपन में शारीरिक या मानसिक हिंसा झेली होती है, उनके भीतर एक दबा हुआ आक्रोश पनपता है, जो किसी कमजोर या असहाय पर निकलता है, जैसे कि इस मामले में एक मासूम बच्ची पर. यह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक पतन का भी चिंताजनक संकेत है.

    पेरेंट्स कैसे रखें अलर्ट? 

    एक्सपर्ट ने सलाह दी कि माता-पिता को अपने बच्चे के व्यवहार में छोटे-छोटे बदलावों पर नजर रखनी चाहिए, जैसे:

    बच्चा अचानक शांत, डरा-सहमा रहने लगे

    डे-केयर जाने से मना करे या जिद करे

    नींद, भूख या खेलने की आदत में बदलाव

    माता-पिता से चिपक कर रहना या रोना

    ये संकेत दर्शा सकते हैं कि बच्चा भावनात्मक या शारीरिक आघात से गुज़र रहा है.

    पहले तीन साल...

    डॉ. मनोश्री के अनुसार, जीवन के पहले तीन साल किसी भी बच्चे के लिए मानसिक विकास का सबसे नाजुक और महत्वपूर्ण दौर होते हैं. इस उम्र में अगर उन्हें हिंसा, डर या उपेक्षा का सामना करना पड़े, तो उसका असर जीवनभर रह सकता है.

    डे-केयर के लिए सरकार बनाए सख्त नियम

    घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए एक्सपर्ट ने सरकार से मांग की है कि अनिवार्य लाइसेंसिंग और रेगुलर इंस्पेक्शन की व्यवस्था हो. केवल प्रशिक्षित और प्रमाणित स्टाफ को ही बच्चों की देखरेख की अनुमति हो. CCTV निगरानी अनिवार्य हो और रिकॉर्डिंग संरक्षित रखी जाए. नियम तोड़ने पर कड़ा जुर्माना और लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई हो

    सतर्क रहें, सवाल पूछें, बच्चे से जुड़ाव रखें

    किसी भी डे-केयर को चुनने से पहले उसकी प्रतिष्ठा, सुविधा और सुरक्षा व्यवस्था की जांच करें. वहां पहले से आने वाले पेरेंट्स से फीडबैक लें. बच्चों से रोजाना बातचीत करें और उनके व्यवहार को समझने की कोशिश करें. समय-समय पर अनघोषित विजिट करें. साथ ही डे-केयर की निगरानी खुद भी रखें.

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