मूवी रिव्यू: ‘द भूतनी’: कमजोर स्क्रिप्ट, घिसे-पिटे डर, और फीकी कॉमेडी – संजय दत्त की फिल्म डराने के बजाय बोर करती है

    'द भूतनी' की कहानी एक भूतनी की आत्मा और एक विच हंटर के इर्द-गिर्द घूमती है। हालांकि यह एक दिलचस्प विचार प्रतीत होता है, लेकिन पटकथा में गहराई की कमी और संवादों की अपर्याप्तता ने फिल्म को प्रभावित किया है

    मूवी रिव्यू: ‘द भूतनी’: कमजोर स्क्रिप्ट, घिसे-पिटे डर, और फीकी कॉमेडी – संजय दत्त की फिल्म डराने के बजाय बोर करती है
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    मूवी रिव्यू:
    ‘द भूतनी’: कमजोर स्क्रिप्ट, घिसे-पिटे डर, और फीकी कॉमेडी – संजय दत्त की फिल्म डराने के बजाय बोर करती है


    ऐक्टर: संजय दत्त,मौनी रॉय,पलक तिवारी,सनी सिंह
    डायरेक्टर : सिद्धांत सचदेव
    श्रेणी: Hindi, Horror, Comedy, Romance
    अवधि: 2 Hrs 10 Min
    रेटिंग: 2 स्टार

    कहानी: कमजोर पटकथा और अव्यक्त भावनाएँ
    'द भूतनी' की कहानी एक भूतनी की आत्मा और एक विच हंटर के इर्द-गिर्द घूमती है। हालांकि यह एक दिलचस्प विचार प्रतीत होता है, लेकिन पटकथा में गहराई की कमी और संवादों की अपर्याप्तता ने फिल्म को प्रभावित किया है। कई समीक्षकों ने इसे 'स्त्री' और 'भूल भुलैया' जैसी सफल हॉरर-कॉमेडी फिल्मों से तुलना की है, लेकिन 'द भूतनी' उनसे काफी पीछे रही।

     अभिनय: अपेक्षाएँ पूरी नहीं
    मौनी रॉय: नेगेटिव किरदार में मौनी रॉय की उपस्थिति को लेकर दर्शकों में उत्साह था, लेकिन उनकी अभिनय क्षमता ने उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।​

    संजय दत्त: विच हंटर के रूप में संजय दत्त का लुक आकर्षक था, लेकिन उनके अभिनय में वह गहराई और प्रभावशीलता नहीं थी जो उनके पिछले किरदारों में देखने को मिली थी।​

    पलक तिवारी और सनी सिंह: इन दोनों के अभिनय में भी कोई विशेषता नहीं थी, जिससे फिल्म की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।​

    🎶 संगीत: प्रभावहीन और अप्रभावी
    फिल्म का संगीत भी दर्शकों को प्रभावित करने में असफल रहा। पार्श्व संगीत और गीतों की गुणवत्ता अपेक्षाएँ पूरी नहीं कर पाई, जिससे फिल्म के भावनात्मक और डरावने क्षण कमजोर पड़ गए।​

    कैसी हैं कहानी ?
    डरावनी कहानियों के नाम पर हमारे सामने परोसी गई इस फिल्म में डर कम और कॉमेडी ज्यादा है और इसलिए ‘द भूतनी’ एक अधपकी फिल्म लगती है. ‘स्त्री’, ‘मुंजा’ जैसी फिल्मों के मुकाबले इस फिल्म में हॉरर के नाम पर मौनी रॉय की चीखें ही सुनाई देती हैं. उन्हें देखकर बिल्कुल भी मजा नहीं आता. फिल्म की कॉमेडी और संजय दत्त के एक्शन ने ही इसे बचा लिया है. ये फिल्म उन पुरानी फिल्मों की तरह है कि जिसे दिमाग घर पर छोड़कर एंजॉय किया जा सकता है. हालांकि फिल्म के निर्देशक सिद्धांत कुमार सचदेव उनके एक्शन के पीछे की वजह भी बताते हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि इस वजह में भी कोई खास लॉजिक नजर नहीं आता. फर्स्ट हाफ में फिल्म जितना बोर करती है, उतना ही सेकंड हाफ में इसे देखने में मजा आ जाता है...‘कॉमेडी सर्कस’ के लिए लिखने वाले वंकुश ने इस फिल्म के लिए भी कमाल के कॉमेडी डायलॉग लिखे हैं. लेकिन फर्स्ट हाफ में कहानी इतनी बोर कर देती है कि अच्छी कॉमेडी भी बेअसर लगने लगती है. कहानी का प्लॉट अच्छा है, लेकिन मुद्दे की बात पर आने तक निर्देशक ने शुरुआत के 20 मिनट बर्बाद किए हैं. फिल्म में संजय दत्त की एंट्री भी देर से होती है...‘द भूतनी‘ वन टाइम वॉच वाली फिल्म है. ऐसी कई फिल्में पहले भी बनी हैं और हमने इन्हें खूब एंजॉय भी किया है. लेकिन अब ऑडियंस अपना दिमाग घर पर रखकर नहीं आतीं. कोरोना के बाद ओटीटी पर इतना कंटेंट मौजूद है कि ‘द भूतनी’ जैसी फिल्में बड़ी ही आसानी से घर पर देखी जा सकती है. इस फिल्म में ‘मडगांव एक्सप्रेस’ की तरह ‘स्टार्ट टू एंड’ वाली कॉमेडी भी नहीं है और फिल्म के निर्देशक ने ‘स्त्री’, ‘भेड़िया‘ की तरह इस फिल्म के जरिए कोई स्ट्रॉन्ग मैसेज भी नहीं दिया है. लेकिन अगर आप संजय दत्त के फैन हो, तो आप इस फिल्म को खूब एंजॉय करेंगे. गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को इसे जरूर दिखाया जा सकता है, क्योंकि इसमें दिखाया गया हॉरर उनके लिए बिलकुल सही है. बाकी ‘बाबा’ के चाहने वालों के लिए यही कहना चाहेंगे कि बाबा थिएटर में आ चुके हैं, उनका स्वागत करना तो बनता है.


    निष्कर्ष
    कुल मिलाकर, 'द भूतनी' एक कमजोर पटकथा, औसत अभिनय और प्रभावहीन संगीत के साथ प्रस्तुत की गई है। यदि आप हॉरर-कॉमेडी शैली की फिल्में पसंद करते हैं, तो 'स्त्री' और 'भूल भुलैया' जैसी फिल्मों को प्राथमिकता देना बेहतर होगा।​

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