Kaliningrad Issue: बीते कुछ दिनों में रूस का एक छोटा-सा भूभाग, कलिनिनग्राद अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में छाया हुआ है. कारण है अमेरिका और नाटो की ओर से दिए गए उकसाऊ बयान और उस पर रूस की तीखी प्रतिक्रिया. एक ऐसा क्षेत्र जो आकार में छोटा है, लेकिन रणनीतिक दृष्टि से बेहद बड़ा और महत्वपूर्ण. यह केवल रूस का एक हिस्सा नहीं है, बल्कि एक संभावित संघर्ष का केंद्र बिंदु बन चुका है, जो अगर भड़का, तो दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जा सकता है.
कहां से शुरू हुआ विवाद?
इस पूरे विवाद की जड़ें जर्मनी के विस्बाडेन में हुए एक कार्यक्रम से जुड़ी हैं. यहां अमेरिकी सेना और नाटो सहयोगियों ने एक नई सैन्य पहल, ईस्टर्न फ्लैंक डिटरेंस लाइन की शुरुआत की. इस पहल का मकसद है, रूस की बढ़ती गतिविधियों का मुकाबला करना.
इसी कार्यक्रम के दौरान अमेरिकी सेना के यूरोप और अफ्रीका कमांडर, जनरल क्रिस्टोफर डोनह्यू ने बयान दिया कि नाटो सेनाएं जरूरत पड़ने पर कलिनिनग्राद पर कब्जा कर सकती हैं. यह बात रूस को नागवार गुजरी और उसने स्पष्ट चेतावनी दे दी कि यदि कलिनिनग्राद पर हमला हुआ, तो यह सीधे तीसरे विश्व युद्ध की वजह बन सकता है. रूस ने कहा है कि वह हर कीमत पर इस क्षेत्र की रक्षा करेगा.
कलिनिनग्राद क्यों है इतना खास?
कलिनिनग्राद ओब्लास्ट, जो रूस की मुख्य भूमि से कटा हुआ है, पोलैंड और लिथुआनिया के बीच स्थित एक रूसी एक्सक्लेव है. यह क्षेत्र रूस के लिए कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
रणनीतिक स्थिति: यह बाल्टिक सागर तक रूस की पहुंच को सुनिश्चित करता है.
सैन्य आधार: रूस के बाल्टिक फ्लीट का मुख्यालय यहीं है.
नाटो की टेंशन: कलिनिनग्राद से रूस, सुवाल्की गैप (एक 60 मील चौड़ी पट्टी) पर नियंत्रण पाकर बाल्टिक देशों और बाकी नाटो सदस्य देशों के बीच संपर्क तोड़ सकता है.
इतिहास और विरासत: यह क्षेत्र पहले जर्मनी का कोनिग्सबर्ग हुआ करता था और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ को सौंपा गया. 1946 में इसका नाम बदलकर 'कलिनिनग्राद' कर दिया गया.
एक छोटा क्षेत्र, लेकिन बड़ी लड़ाई का कारण
सिर्फ 15,100 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ यह इलाका आज यूरोप के सबसे सैन्यीकृत क्षेत्रों में गिना जाता है. यह रूस की रणनीतिक शक्ति का प्रतीक बन चुका है. पश्चिम को डर है कि रूस इस क्षेत्र का इस्तेमाल यूरोप पर दबाव बनाने या यहां तक कि हमले के लिए भी कर सकता है.
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