UNSC ने हस्तक्षेप न किया होता, तो लाहौर भी भारत का हिस्सा होता... जानें 1965 में कैसे बचा पाकिस्तान

    भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में लड़ा गया युद्ध दक्षिण एशिया के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है. यह केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति की दिशा तय करने वाला मोड़ भी था.

    Had the UNSC not intervened Lahore would also have been a part of India
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- Internet

    नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में लड़ा गया युद्ध दक्षिण एशिया के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है. यह केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति की दिशा तय करने वाला मोड़ भी था. इस युद्ध के दौरान भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच चुकी थी और पाकिस्तान पर निर्णायक बढ़त बना चुकी थी. यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने हस्तक्षेप न किया होता, तो इतिहास कुछ और होता.

    युद्ध की शुरुआत और पृष्ठभूमि

    इस संघर्ष की नींव अगस्त 1965 में पाकिस्तान द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत रखी गई थी. इस गुप्त योजना के तहत पाकिस्तानी सैनिकों को नागरिकों के भेष में जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करने के लिए भेजा गया, ताकि वहां अस्थिरता पैदा की जा सके और स्थानीय समर्थन जुटाकर भारत के खिलाफ विद्रोह खड़ा किया जा सके.

    हालांकि, भारत ने इस घुसपैठ को विफल कर दिया और जवाब में 6 सितंबर को पश्चिमी सीमा पर निर्णायक सैन्य कार्रवाई शुरू की. भारतीय सेना ने लाहौर की ओर बढ़ते हुए कई सामरिक क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल किया.

    हाजी पीर दर्रे पर कब्जा

    भारत ने युद्ध के दौरान कई अहम रणनीतिक मोर्चों पर सफलता पाई, जिनमें हाजी पीर दर्रा विशेष रूप से उल्लेखनीय है. यह दर्रा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से भारत में घुसपैठ का प्रमुख रास्ता था. भारतीय सेना ने इस मार्ग को नियंत्रित कर पाकिस्तान की रणनीतिक क्षमता को गहरा झटका दिया.

    इस सैन्य बढ़त के साथ-साथ भारतीय सेना लाहौर के बाहरी इलाके तक पहुंच चुकी थी. कई मोर्चों पर पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा और उसकी आंतरिक व्यवस्था पर दबाव बढ़ गया.

    संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप और समझौता

    जैसे-जैसे युद्ध तीव्र होता गया, अंतरराष्ट्रीय समुदाय विशेषकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने हस्तक्षेप करना शुरू किया. 23 सितंबर 1965 को युद्धविराम की घोषणा हुई. इसके बाद, ताशकंद समझौते के तहत भारत ने अपनी सैन्य सफलता के बावजूद कई क्षेत्र वापस कर दिए, जिनमें हाजी पीर दर्रा भी शामिल था.

    यह निर्णय तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद (अब उज़्बेकिस्तान में) में हुए समझौते का परिणाम था.

    क्या लाहौर भारत का हो सकता था?

    इतिहासकारों का मानना है कि अगर युद्धविराम कुछ और दिन टल गया होता, तो भारतीय सेना लाहौर पर पूरी तरह कब्जा कर सकती थी. उस समय लाहौर की रक्षा की स्थिति कमजोर थी और भारतीय सेना पूर्ण नियंत्रण से महज़ कुछ किलोमीटर दूर थी.

    हालांकि, भारत ने अपनी सैन्य सफलता के बावजूद कूटनीतिक संतुलन बनाए रखते हुए युद्ध को वहीं विराम दिया, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित हो सके.

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