Bharat 24 Conclave Green Energy Summit: 'अब भारत को भारत की नज़र से देखने का समय आ गया है'- स्वामी चिदानंद सरस्वती

    भारत 24 के ग्रीन एनर्जी समिट - विकसित भारत कार्यक्रम में कई मानवीय और पर्यावरण संगठनों के संस्थापक और हिंदू धर्मगुरू ने कार्यक्रम में शिरकत की.

    Bharat 24

    Bharat 24 Conclave Green Energy Summit: भारत 24 के ग्रीन एनर्जी समिट - विकसित भारत कार्यक्रम में कई मानवीय और पर्यावरण संगठनों के संस्थापक और हिंदू धर्मगुरू ने कार्यक्रम में शिरकत की. कार्यक्रम में स्वामी जी से एक विशेष बातचीत की गई, जिसमें उन्होंने अपने प्रभावशाली विचारों और सेवाभावी दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध स्वामी जी ने महाकुंभ के अनुभव, भारत की असली पहचान, वृक्षारोपण अभियान, युवाओं की ऊर्जा और भारत के भविष्य को लेकर बेबाक बातें रखीं।

    सवाल: स्वामी जी, आपने महाकुंभ का अनुभव किया, आपकी दृष्टि में महाकुंभ क्या है?

    जवाब: महाकुंभ कोई साधारण आयोजन नहीं है, यह भारत की आत्मा का उत्सव है।
    वहां मैंने एक अद्भुत दृश्य देखा—राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी से लेकर गांव की रामो देवी तक, हर व्यक्ति ने समान श्रद्धा के साथ स्नान किया।

    महाकुंभ में 67 करोड़ लोग पहुंचे—यह संख्या देश के आम चुनावों में मतदान करने वालों से भी अधिक है। मतदान से बढ़कर यह एक “मनदान” था—भारत के प्रति, सनातन के प्रति श्रद्धा का भाव।

    सबसे प्रेरणादायक बात यह रही कि 85% लोग युवा थे। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत न बंटा है, न टूटता है। यह एकजुट है, और सनातन परंपरा में बंधा हुआ है।

    सवाल: आपने कहा कि “भारत को भारत की नज़र से देखने का समय आ गया है।” इसका क्या आशय है?

    जवाब: बहुत सालों तक हम भारत को विदेशी चश्मे से देखते रहे। हमें लगा कि बाहर जैसा हो, वैसा भारत बने। लेकिन अब समय है कि भारत को उसकी अपनी दृष्टि से देखा जाए—उसकी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सेवामूलक दृष्टि से।

    मैं 46 साल पहले अमेरिका गया था। वहां लगा—क्यों हमारे पास ऐसा कोई मंच नहीं जो भारत को उसकी असल पहचान के साथ प्रस्तुत करे. आज भारत 24 जैसे चैनल इस ज़रूरत को पूरा कर रहे हैं—भारत को भारत की तरह दिखा रहे हैं।

    अब लोग सिर्फ हनुमान चालीसा नहीं, “हिंदुस्तान चालीसा” पढ़ रहे हैं—विकसित भारत की जय बोल रहे हैं। ये भारत का जागरण है।

    सवाल: आपने वृक्षारोपण के लिए “एक पेड़ मां के नाम” अभियान की शुरुआत की। इसका विचार कैसे आया?

    जवाब: पेड़ लगाना पर्यावरण की सेवा है, लेकिन जब आप उस पेड़ को मां के नाम से जोड़ते हैं, तो वह भावनात्मक जुड़ाव बन जाता है। लोग पेड़ लगाते हैं और भूल जाते हैं। लेकिन मां के नाम पर लगाया पेड़ कोई नहीं भूलता। वह श्रद्धा और संवेदना का प्रतीक बन जाता है।

    हमारा संदेश है—“The nature of the future is the future of our nature.” अगर हमें भविष्य बचाना है, तो हमें अपने जन्मदिन, वर्षगांठ, त्योहारों को ग्रीन सेलिब्रेशन में बदलना होगा। पेड़ लगाओ, उसे बचाओ—और हर पेड़ में मां को देखो।

    सवाल: भारत के वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने कहा था कि पेड़ों में प्राण हैं। क्या आप भी यही मानते हैं?

    जवाब: बिलकुल। "पेड़ है तो प्राण है।" जगदीश चंद्र बसु ने तो यह सिद्ध कर दिया था कि पेड़ों में संवेदना है, जीवन है  और हम कहते हैं—हर प्राण में भारत है और हर भारतवासी में प्रकृति है। अगर हमें भारत को प्राणवान बनाना है, तो आज पेड़ नहीं, “पेड़ बांटना” शुरू करना होगा।

    सवाल: आपने युवाओं के लिए कई कार्य किए हैं। क्या आज के युवा भारत को बदलने की ताकत रखते हैं?

    जवाब: युवा सिर्फ भारत का भविष्य नहीं हैं, वे भारत की शक्ति हैं। जब उन्हें सही दिशा मिलती है, तो वे सिर्फ खुद सफल नहीं होते, बल्कि दूसरों को भी आगे बढ़ाते हैं।

    हमने नेतृत्व शिविर, पानी बचाओ अभियान, बेटी बचाओ, स्वच्छ भारत, हर घर जल और वृक्षारोपण जैसे कई मिशनों में युवाओं की बड़ी भागीदारी देखी है। भारत को युवा ऊर्जा से ही विश्वगुरु बनाया जा सकता है।

    सवाल: आप समाज के हर वर्ग के लिए काम कर रहे हैं—चाहे महिलाएं हों, बच्चे हों या पर्यावरण। आपकी प्रेरणा क्या है?

    जवाब:  मेरी प्रेरणा है—“जहां पीड़ा है, वहां समाधान हो।” भारत सेवा की भूमि है। जब आप सेवा करते हैं, तो आपको भारत की आत्मा का अनुभव होता है।

    विधवाओं के लिए सम्मान, युवाओं को शिक्षा और नेतृत्व, गांवों में स्वच्छता, और नदियों के पुनर्जीवन तक हम काम कर रहे हैं। सेवा ही मेरा धर्म है, और भारत की हर सांस, हर धड़कन, मेरा परिवार है।