वाशिंगटनः अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव कोई नई बात नहीं, लेकिन ट्रंप प्रशासन के दौरान इसका जो चेहरा सामने आया, उसने भारत जैसे रणनीतिक साझेदारों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दीं. कभी आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाने वाले अमेरिका ने अब जिहादी संगठनों और उनके समर्थक देशों के साथ सहजता से बातचीत शुरू कर दी है. इतना ही नहीं, डोनाल्ड ट्रंप बार-बार कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे में मध्यस्थता की पेशकश कर भारत की कूटनीतिक नींव को चुनौती दे रहे हैं.
कश्मीर पर ट्रंप की ‘मध्यस्थता’ की ज़िद
भारत हमेशा से जम्मू-कश्मीर को एक द्विपक्षीय मुद्दा मानता रहा है और किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का सख्त विरोध करता है. बावजूद इसके, ट्रंप प्रशासन ने बार-बार इस मामले में ‘मध्यस्थ’ बनने की पेशकश कर भारत की लाल रेखा लांघने की कोशिश की. यह रवैया भारत की विदेश नीति को अस्थिर करने वाला है, खासकर तब, जब अमेरिका के इस नए रुख से पाकिस्तान और आतंक के खिलाफ वैश्विक मोर्चे पर भारत की स्थिति कमजोर होती नजर आ रही है.
पाकिस्तान के प्रति ट्रंप की नरमी
डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारत के लिए असहज सवाल लेकर आया है. पाकिस्तान को “शानदार लोग” कहकर संबोधित करना और उसके नेताओं की ‘राजनीतिक समझदारी’ की सराहना करना उस अमेरिका की तस्वीर नहीं दिखाता, जिसने कभी आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी थी. ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से कर दोनों को एक तराजू पर तौलने की कोशिश की, जो भारत के लिए चिंताजनक संकेत है.
जिहादी ताकतों से सौदेबाज़ी: अमेरिका की नई ‘रणनीति’?
डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका अब उन ताकतों से सीधे संवाद करने लगा है जिन्हें वह कभी वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा मानता था. चाहे यमन के हूती विद्रोही हों या सीरिया के इस्लामी आतंकवादी गुट—अमेरिका अब उन्हें बातचीत के लिए उपयुक्त मान रहा है. इससे पहले, अफगानिस्तान में तालिबान के साथ हुई डील के ज़रिए ट्रंप प्रशासन ने इसी राह की नींव रखी थी. अब यही नीति पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया में अमेरिकी भूमिका को पूरी तरह बदल रही है.
भारत के लिए क्यों बढ़ी रणनीतिक अनिश्चितता
भारत लंबे समय से अमेरिका के साथ रक्षा और रणनीतिक साझेदारी बढ़ाता रहा है, लेकिन अब जब अमेरिका आतंकवादियों और उनके समर्थकों को बातचीत की टेबल पर लाने की कोशिश कर रहा है, भारत को अपनी विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति को लेकर पुनर्मूल्यांकन करना पड़ सकता है. कश्मीर को बार-बार वैश्विक मंच पर लाना और पाकिस्तान को समान धरातल पर रखना, भारत के लिए कूटनीतिक असंतुलन पैदा करता है.
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