भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान ने अपनी सैन्य तैनाती को लेकर बड़ा कदम उठाया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तानी सेना, वायुसेना और नौसेना को भारतीय सीमा पर बड़ी संख्या में तैनात किया गया है. इस कदम का मकसद भारत की किसी संभावित सैन्य कार्रवाई से पहले खुद को तैयार करना बताया जा रहा है. हालांकि, इस रणनीतिक फैसले पर अब पाकिस्तान के भीतर से ही सवाल उठने लगे हैं. खासकर आंतरिक सुरक्षा को लेकर चिंता जताई जा रही है.
मौलाना फजलुर रहमान की चिंता
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-एफ (JUI-F) के प्रमुख और पूर्व गृह मंत्री मौलाना फजलुर रहमान ने एक बड़ा सवाल उठाया है. उनका कहना है कि सीमाओं पर फौज की बढ़ी तैनाती से देश के अंदर की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. उन्होंने कहा, “यदि सेना पूरी तरह पूर्वी सीमा की ओर केंद्रित हो जाएगी, तो आंतरिक सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कौन निभाएगा? ऐसे मुद्दों पर संसद को विश्वास में लिया जाना चाहिए था.”
पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति
चूहों से कौन निपटेगा?
एक राजनीतिक विश्लेषक के शब्दों में, “यदि सेना सीमा पर युद्ध में उलझ गई, तो देश के भीतर मौजूद आपराधिक और असामाजिक तत्वों को खुली छूट मिल जाएगी. सवाल सिर्फ सीमाओं की सुरक्षा का नहीं, समाज के भीतर की स्थिरता का भी है.” पाकिस्तानी जनता के बीच भी यह सवाल गूंजने लगा है कि सीमा की रक्षा करते-करते क्या देश की गली-मोहल्लों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी?
सरकार की चुप्पी पर भी निशाना
फजलुर रहमान ने केवल सुरक्षा नहीं, बल्कि सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि युद्ध जैसे गंभीर मसले पर जब राष्ट्रीय स्तर की बैठक बुलाई गई, तो प्रधानमंत्री और कई मंत्री इसमें शामिल ही नहीं हुए. उनका कहना है, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतना संवेदनशील समय होने के बावजूद पूरी कैबिनेट ने सदन से दूरी बना ली.”
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