उत्तर कोरिया एक बार फिर अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के चलते सुर्खियों में है. इस बार उसका ध्यान एक नए और विशाल पियर (जहाजों को लंगर डालने का प्लेटफॉर्म) पर केंद्रित है, जिसे उसने अपने अहम सोहे सैटेलाइट लॉन्चिंग स्टेशन पर तैयार किया है. ये कदम इस बात का संकेत है कि उत्तर कोरिया अपने रॉकेट लॉन्चिंग और अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है.
क्यों महत्वपूर्ण है यह नया पियर?
ये वही लॉन्च स्टेशन है, जिसे किम जोंग उन ने 2022 में आधुनिक बनाने के आदेश दिए थे. यह स्टेशन बड़े रॉकेटों की टेस्टिंग और लॉन्चिंग के लिए जाना जाता है. और अब इस नए पियर के निर्माण से ये संकेत मिलते हैं कि उत्तर कोरिया भारी रॉकेट पार्ट्स को समुद्र के रास्ते इस स्टेशन तक लाने की योजना बना रहा है.
पियर का डिज़ाइन खास इस तरह से किया गया है कि यह बड़े जहाज़ों को आसानी से लंगर डालने की सुविधा प्रदान करता है. इसके अलावा, स्टेशन के अंदर नई सड़कों और संभवतः रेलवे लाइनों का निर्माण भी किया जा रहा है, ताकि रॉकेट के पुर्जों और ईंधन को एक जगह से दूसरी जगह लाने में कोई परेशानी न हो.
किम जोंग उन का पुराना वादा और फिर उसकी वापसी
दिलचस्प यह है कि किम जोंग उन ने 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के दौरान इस स्टेशन को खत्म करने का वादा किया था. उनका कहना था कि अगर यह स्टेशन बंद हो जाता है तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से उत्तर कोरिया को राहत मिल सकती है. लेकिन बाद में उन्होंने इस वादे को तोड़ दिया, और अब यह स्टेशन सफलतापूर्वक काम कर रहा है.
क्या कहती हैं सैटेलाइट इमेज?
Planet Labs द्वारा जारी की गई सैटेलाइट इमेज के अनुसार, यह नया पियर 25 मई तक बन चुका था और अब यह पूरी तरह तैयार हो चुका है. ये पियर बड़े रॉकेट पार्ट्स के समुद्र के रास्ते ढुलाई के लिए एक अहम कदम साबित हो सकता है. 38 North प्रोजेक्ट के मुताबिक, इस पियर का मुख्य उद्देश्य है बड़े जहाज़ों को इस स्टेशन तक लाने की सुविधा देना.
उत्तर कोरिया की स्पेस प्रोग्राम: क्या है असली मंशा?
उत्तर कोरिया ने हमेशा दावा किया है कि वह सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने का इच्छुक है, लेकिन दुनियाभर के विशेषज्ञों का मानना है कि इसका असली उद्देश्य बैलिस्टिक मिसाइल टेक्नोलॉजी का परीक्षण करना है. सैटेलाइट और मिसाइल लॉन्चिंग की तकनीक में बहुत समानताएं होती हैं, जैसे कि इंजन, गाइडेंस सिस्टम, और वॉरहेड अलग करने की तकनीक, जिन्हें अक्सर एक साथ टेस्ट किया जाता है.
इसलिए, कई विशेषज्ञ यह मानते हैं कि उत्तर कोरिया चुपचाप अपनी मिसाइल क्षमता को बढ़ा रहा है, जबकि वह इसे अंतरिक्ष मिशन के रूप में पेश कर रहा है.
अब तक के प्रयास और सफलता की कमी
उत्तर कोरिया ने 1998 से 2024 के बीच 9 बार सैटेलाइट लॉन्चिंग की कोशिश की है, जिनमें से सिर्फ तीन प्रयास सफल रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में किए गए प्रयासों में से एक भी पूर्ण रूप से सफल नहीं रहा, और सबसे हाल की कोशिश में रॉकेट का पहला स्टेज ही फट गया था. इन विफलताओं के बावजूद उत्तर कोरिया की स्पेस कैपेबिलिटी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे दुनिया को एक नया खतरा महसूस हो सकता है.
स्पेस रेस में दक्षिण कोरिया भी पीछे नहीं
जहां उत्तर कोरिया अपनी चुपके से अंतरिक्ष यात्रा की तैयारी कर रहा है, वहीं उसका पड़ोसी दक्षिण कोरिया खुलकर अपने अंतरिक्ष मिशनों में जुटा है. पिछले दो सालों में दक्षिण कोरिया ने चार जासूसी सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे हैं और एक और लॉन्च करने की योजना बना रहा है. इससे साफ है कि स्पेस रेस और दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है.
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