22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त तेवर अपना लिए हैं. भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करना, अटारी बॉर्डर बंद करना, पाकिस्तानी राजनयिकों को निष्कासित करना और द्विपक्षीय व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध जैसे कदम इस बात के संकेत हैं कि भारत अब हर मोर्चे पर दबाव बनाने की रणनीति पर चल रहा है.
इस पृष्ठभूमि में अब चर्चा इस बात पर तेज़ हो गई है कि अगर भारत किसी बड़े सैन्य एक्शन की ओर बढ़ता है, तो चीन पाकिस्तान का कितना और किस स्तर तक साथ देगा? चीन-पाकिस्तान के रिश्ते केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक, रणनीतिक और सैन्य क्षेत्रों में भी गहराई से जुड़े हैं. लेकिन भारत-चीन के विशाल व्यापारिक रिश्तों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
नीचे 10 अहम बिंदुओं में समझिए कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ता है तो चीन का रुख क्या हो सकता है:
1. राजनयिक समर्थन:
हमले के बाद चीन ने 'निष्पक्ष जांच' की बात कहते हुए पाकिस्तान की संप्रभुता का समर्थन किया. इससे स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन पाकिस्तान की छवि को बचाने की कोशिश करेगा.
2. आर्थिक मजबूरियां:
चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है. यह रिश्ता चीन को पाकिस्तान के पक्ष में झुकने के लिए मजबूर करता है.
3. सीमित सैन्य सहयोग:
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ने पाकिस्तान को PL-15 मिसाइलें दी हैं, जो रणनीतिक सैन्य समर्थन का संकेत है. लेकिन खुला युद्ध सहयोग फिलहाल असंभव लगता है.
4. भारत-चीन व्यापार:
136 बिलियन डॉलर का व्यापार भारत और चीन को आर्थिक रूप से जोड़े हुए है. चीन भारत के बड़े बाजार को खोने का जोखिम नहीं उठाएगा.
5. कश्मीर का कार्ड:
चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर को उठाकर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करता है, जिससे पाकिस्तान को परोक्ष लाभ मिलता है.
6. पाकिस्तान की आर्थिक हालत:
तेजी से बिगड़ती पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था और बढ़ता कर्ज चीन के निवेश को जोखिम में डालता है, जिससे उसका समर्थन सीमित रह सकता है.
7. भारत की वैश्विक स्थिति:
भारत की अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस से मजबूत कूटनीतिक साझेदारी चीन को खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े होने से रोक सकती है.
8. रणनीतिक संतुलन:
चीन क्षेत्र में भारत के प्रभाव को संतुलित करने के लिए पाकिस्तान को एक मोहरे के रूप में देखता है, लेकिन गलवान जैसे अनुभवों के बाद वह ज्यादा सतर्क है.
9. आतंरिक चिंता:
पाकिस्तान में आतंकवाद और अस्थिरता चीन की CPEC परियोजनाओं के लिए खतरा हैं, इसलिए चीन अनिश्चितता में और अधिक उलझना नहीं चाहेगा.
10. दीर्घकालिक रणनीति:
चीन भले ही पाकिस्तान को कुछ हद तक समर्थन दे, लेकिन क्षेत्र में भारत की बढ़ती कूटनीतिक और सैन्य स्थिति दीर्घकाल में उसे चीन से कहीं अधिक प्रभावशाली बना सकती है.
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