नई दिल्ली: युद्ध क्षेत्र में भ्रम कभी-कभी दुश्मन से बड़ी चुनौती बन सकता है. ऐसा ही एक दुर्लभ और शर्मनाक उदाहरण 29 अप्रैल 1987 को देखने को मिला, जब पाकिस्तान वायुसेना ने अपने ही अत्याधुनिक F-16 फाइटर जेट को मार गिराया. यह घटना महज़ तकनीकी खराबी या युद्धकालीन दबाव का नतीजा नहीं थी, बल्कि एक ऐसे सैन्य हादसे की कहानी है जिसमें प्रशिक्षित पायलट की गलती ने पूरे देश को सामरिक स्तर पर शर्मिंदगी में डाल दिया.
अफगान युद्ध और पाकिस्तानी संलिप्तता
1980 के दशक के उत्तरार्ध में, अफगानिस्तान सोवियत संघ के सैन्य हस्तक्षेप से जूझ रहा था. अमेरिका द्वारा समर्थित पाकिस्तान इस संघर्ष में एक फ्रंटलाइन राज्य की भूमिका निभा रहा था. पाकिस्तान की वायुसेना को अक्सर सीमावर्ती क्षेत्रों में सोवियत और अफगान विमानों से लोहा लेना पड़ता था.
इसी परिप्रेक्ष्य में 29 अप्रैल 1987 को पाकिस्तान एयरफोर्स के दो F-16 विमान जो उस समय अमेरिकी सैन्य तकनीक के प्रतीक माने जाते थे को अफगान क्षेत्र में घुसे चार सोवियत समर्थित MiG-23 विमानों को इंटरसेप्ट करने का आदेश मिला.
ऑपरेशन का नेतृत्व और घातक भ्रम
इस मिशन की अगुआई कर रहे थे विंग कमांडर अमजद जावेद, और उनके साथ एक और F-16 उड़ा रहे थे फ्लाइट लेफ्टिनेंट शाहिद सिकंदर. जैसे ही दोनों विमान लो एल्टीट्यूड से चढ़ाई करते हुए दुश्मन विमानों की ओर बढ़े, घटनाओं ने अप्रत्याशित मोड़ ले लिया.
रणनीतिक दबाव के बीच, अमजद जावेद ने अपने ही साथी पायलट के विमान को MiG-23 समझ लिया. उन्होंने AIM-9P साइडवाइंडर मिसाइल दाग दी, जो सीधे शाहिद सिकंदर के F-16 से जा टकराई और उसके दाहिने विंग को पूरी तरह उड़ा दिया.
जिंदगी की जीत, सैन्य प्रतिष्ठा की हार
शाहिद सिकंदर ने त्वरित निर्णय लेते हुए इजेक्शन सीट का उपयोग किया और अपनी जान बचा ली. लेकिन अत्याधुनिक F-16 मलबे में तब्दील हो गया. यह हादसा न केवल पाकिस्तान वायुसेना की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न था, बल्कि अमेरिका के लिए भी चिंता का विषय बन गया, जिसने पाकिस्तान को F-16 जैसे संवेदनशील रक्षा उपकरण सौंपे थे.
अफगानिस्तान की वायुसेना ने तत्काल इस विमान को मार गिराने का दावा किया, लेकिन जब घटनास्थल से मलबे की जांच हुई, तो असलियत सामने आई, यह एक मित्र विमान द्वारा ही मार गिराया गया था.
'आईएफएफ' सिस्टम की विफलता
F-16 जैसी आधुनिक फाइटर जेट्स में 'Identification Friend or Foe' (IFF) सिस्टम होता है, जो इलेक्ट्रॉनिक बीम के जरिए यह पहचानता है कि सामने वाला विमान मित्र है या शत्रु. इस हादसे में, दावा किया गया कि IFF प्रणाली ने काम नहीं किया.
हालाँकि, अमेरिकी रक्षा विभाग खासकर पेंटागन ने इस थ्योरी पर लंबे समय तक संदेह जताया. विशेषज्ञों का मानना था कि या तो सिस्टम का संचालन ठीक से नहीं किया गया, या पायलट ने उसे नजरअंदाज कर दिया. ऐसी स्थिति में, यह घटना महज़ तकनीकी असफलता नहीं, बल्कि मानव त्रुटि और प्रशिक्षण की खामियों का संकेत थी.
रणनीतिक प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
यह घटना उस समय हुई जब अमेरिका और पाकिस्तान के रक्षा संबंध अपने चरम पर थे. अमेरिका ने पाकिस्तान को F-16 जैसे अत्याधुनिक हथियार इसलिए दिए थे ताकि वह सोवियत हस्तक्षेप के खिलाफ प्रभावी प्रतिरोध कर सके. लेकिन इस घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय रक्षा विश्लेषकों ने सवाल उठाए कि क्या पाकिस्तान इस स्तर की सैन्य तकनीक को संभालने के लिए तैयार था?
यह वाकया पाकिस्तान की सैन्य प्रतिष्ठा के लिए बड़ा झटका था. क्योंकि एक ओर यह मामला उसकी तकनीकी तैयारी पर सवाल खड़ा करता था, और दूसरी ओर उसके पायलटों के युद्धकालीन निर्णय लेने की क्षमता पर भी.
क्या सीखा गया?
इस घटना के बाद पाकिस्तान वायुसेना ने IFF सिस्टम और हवाई मिशन समन्वय के नियमों की समीक्षा की. पायलटों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी बदलाव लाए गए, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों से बचा जा सके. लेकिन यह ऐतिहासिक गलती पाकिस्तान की सैन्य रणनीतिक विफलताओं में दर्ज हो गई, जिसे आज भी एक "फ्रेंडली फायर" की सबसे कुख्यात घटनाओं में गिना जाता है.
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