वेटिकन की ऐतिहासिक सिस्टिन चैपल की चिमनी से उठते सफेद धुएं ने जैसे ही आकाश को छुआ, वैसे ही सेंट पीटर्स स्क्वायर में मौजूद हजारों लोगों की निगाहें आसमान में टिक गईं. यह परंपरागत सफेद धुआं इस बात का प्रतीक है कि कैथोलिक चर्च को उसका नया आध्यात्मिक मार्गदर्शक मिल चुका है. भीड़ में उत्साह की लहर दौड़ गई — प्रार्थनाओं, आंसुओं और तालियों के साथ चर्च के 267वें पोप का स्वागत हुआ.
कार्डिनलों के गुप्त कॉन्क्लेव में इस बार अमेरिका के कार्डिनल रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट को सर्वसम्मति से पोप चुना गया है. उन्होंने पोप के रूप में अपना नया नाम पोप लियो XIV चुना है. अब वह आधिकारिक रूप से दुनियाभर के 1.3 अरब से अधिक कैथोलिकों के आध्यात्मिक नेता हैं.
कौन हैं पोप लियो XIV?
पोप लियो XIV, जिनका असली नाम रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट है, का जन्म 14 सितंबर 1955 को अमेरिका के शिकागो में हुआ था. वे सेंट ऑगस्टीन ऑर्डर के सदस्य रहे हैं और लैटिन अमेरिका, खासकर पेरू में कई वर्षों तक मिशनरी सेवा दे चुके हैं. उन्होंने:
कैसे चुना जाता है नया पोप?
नए पोप के चयन की प्रक्रिया जितनी गूढ़ होती है, उतनी ही पारंपरिक भी. यह प्रक्रिया कॉन्क्लेव कहलाती है, जिसमें वेटिकन के सिस्टिन चैपल में विश्वभर से आए कार्डिनल एक गुप्त बैठक करते हैं.
पद रिक्त होने के बाद — पोप की मृत्यु या त्यागपत्र के बाद, कार्डिनलों का कॉलेज चुनाव के लिए एकत्रित होता है.
कॉन्क्लेव की शुरुआत — कार्डिनलों को सिस्टिन चैपल में सीमित कर दिया जाता है. उनका बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह कट जाता है.
गुप्त मतदान — हर कार्डिनल एक पर्ची पर उस व्यक्ति का नाम लिखता है जिसे वे पोप बनाना चाहते हैं.
मतगणना और संकेत — यदि कोई दो-तिहाई बहुमत हासिल नहीं करता, तो मतपत्र जलाए जाते हैं और काला धुआं निकलता है. यदि बहुमत मिल जाता है, तो मतपत्र फिर जलाए जाते हैं और सफेद धुआं निकलता है — जो न सिर्फ वेटिकन बल्कि पूरी दुनिया के लिए संकेत बन जाता है कि नया पोप चुन लिया गया है.
स्वीकृति और घोषणा — चुने गए कार्डिनल से पूछा जाता है कि क्या वे पोप पद स्वीकार करते हैं. स्वीकृति मिलने पर वह एक नया नाम चुनते हैं, और फिर वेटिकन की बालकनी से जनता को उनका पहला दर्शन और आशीर्वाद मिलता है.
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