नाबालिग रेप पीड़िता की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, 30 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन की इजाजत

    नाबालिग रेप पीड़िता को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अबॉर्शन की इजाजत नहीं दी थी जो सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और मेडिकल चेकअप कराने का आदेश दिया है.

    Supreme Courts decision on the petition of minor rape victim
    Supreme Court 'ANI'

    मुंबई : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 14 साल की रेप पीड़िता को 30 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन (गर्भपात) कराने की इजाजत दे दी है. शीर्ष अदालत ने यह आदेश मुंबई के लोकमान्य तिलक अस्पताल को दिया है, जिसमें उसे तत्काल अबॉर्शन का इंतजाम करने को कहा है. 

    19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तत्काल सुनवाई की थी, जिसमें लड़की का मेडिकल कराने का आदेश दिया था. आज सुबह 10:30 बजे के करीब अस्पताल ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की.

    चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा, "मेडिकल रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि प्रेग्नेंसी जारी रखने से विक्टिम की मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर बुरा असर पड़ेगा. हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अबॉर्शन कराने में भी थोड़ा खतरा है, लेकिन प्रेग्नेंसी जारी रखने में उससे भी बड़ा खतरा है."

    ये भी पढ़ें- सियाचिन भारत के शौर्य और पराक्रम की राजधानी है, यह संप्रभुता का प्रतीक : रक्षामंत्री राजनाथ सिंह

    दरअसल, नाबालिग विक्टिम की मां ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. 4 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अबॉर्शन की इजाजत नहीं दी. इसके बाद विक्टिम की मां ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. 19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और नाबालिग का मेडिकल चेकअप कराने का आदेश दिया था.

    मेडिकल बोर्ड बताए कि बच्ची की जिंदगी खतरे में डाले बिना कैसे होगा अबॉर्शन- सुप्रीम कोर्ट

    इस मामले में IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट के तहत केस दर्ज है. चंद्रचूड़ की बेंच ने पिछली सुनवाई में कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न को लेकर जिस मेडिकल रिपोर्ट पर भरोसा किया वह नाबालिग पीड़िता की शारीरिक और मानसिक कंडीशन का आकलन करने में विफल रही है. कोर्ट ने निर्देश दिया था कि महाराष्ट्र सरकार याचिकाकर्ता और नाबालिग पीड़ि को सुरक्षा के साथ अस्पताल ले जाना तय करे.

    जानें अब तक प्रेग्नेंसी अबॉर्शन का क्या था नियम, MTP एक्ट बदलाव कर लाया गया था

    मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत, किसी भी रेप विक्टिम, शादीशुदा महिला, दिव्यांग महिला और नाबालिग लड़की को 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी अबॉर्ट करने की इजाजत है. 24 हफ्ते से ज्यादा की प्रेग्नेंसी होने पर मेडिकल बोर्ड की सलाह को बाद कोर्ट से अबॉर्शन कराने की इजाजत लेनी पड़ती है. साल 2020 में MTP एक्ट में बदलाव किया गया था.

    2023 में कोर्ट ने 26 हफ्ते की प्रेग्नेंट शादीशुदा महिला को अबॉर्शन की इजाजत नहीं दी थी

    16 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने 26 हफ्ते की प्रेग्नेंट विवाहित महिला को अबॉर्शन अबॉर्शन की इजाजत नहीं दी थी. CJI चंद्रचूड़, जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने तर्क दिया था कि प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन की 24 हफ्तों की समय सीमा खत्म हो चुकी है. ऐसे में किसी महिला को अबॉर्शन की इजाजत नहीं दे सकते.

    इस मामले की सुनवाई के दौरान महिला के वकील ने तर्क दिया था कि यह अनप्लान्ड और एक्सीडेंटल प्रेग्नेंसी थी. महिला अगले तीन महीने तक इस प्रेग्नेंसी को जारी रखने में समर्थ नहीं है. ये उसके अधिकारों का हनन है.

    इस पर कोर्ट ने कहा- महिला 26 हफ्ते 5 दिन की प्रेग्नेंट है. AIIMS की मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक, कोख में पल रहा भ्रूण पूरी तरह स्वस्थ है और मां को भी कोई खतरा नहीं है. AIIMS इस महिला की डिलीवरी करेगी और सरकार इसका पूरा खर्च उठाएगी. बच्चे के जन्म लेने के बाद मां-बाप फैसला करेंगे कि वो उसे पालना चाहते हैं या अडॉप्शन के लिए देंगे. इसमें सरकार उनकी मदद करेगी.

    ये भी पढ़ें- AP SSC 10th Result 2024: बीएसईएपी कक्षा 10 के रिजल्ट घोषित, जानें डिटेल्स

    भारत