नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार सरकार और अन्य को राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें पटना उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण बढ़ाने के राज्य सरकार के संशोधनों को खारिज कर दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को एक इसी तरह की याचिका के साथ क्लब किया है.
यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष लिस्ट किया गया है और इसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं.
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राजद समेत बाकी ने पटना हाईकोर्ट के आदेश को दी है चुनौती
राजद समेत अन्य ने पटना उच्च न्यायालय के 20 जून के आदेश को चुनौती दी है, जिसके तहत उच्च न्यायालय ने बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए) संशोधन अधिनियम, 2023 और बिहार आरक्षण (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) संशोधन अधिनियम, 2023 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करने वाला बताते हुए रद्द कर दिया था.
राजद ने अपनी याचिका में कहा, "यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि विवादित अंतिम निर्णय और आदेश इस कारण से पारित किया गया है कि बिहार राज्य न तो दूरदराज का क्षेत्र है और न ही यह राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा से बाहर है, जिससे 50% की सीमा से अधिक होना एक अनिवार्य उपाय है."
पटना उच्च न्यायालय ने जून खारिज कर दिया था बढ़ा हुआ आरक्षण
बिहार सरकार द्वारा राज्य के स्थायी वकील मनीष कुमार के माध्यम से एक अपील भी दायर की गई थी. पटना उच्च न्यायालय ने जून में बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023, और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता के खंडों का उल्लंघन करने वाला और अधिकारहीन करार देते हुए खारिज कर दिया था.
बिहार विधानमंडल ने 2023 में दोनों अधिनियमों में संशोधन किया था और नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था.
बिहार सरकार ने कराया था जातिगत सर्वे, जिसके बाद बढ़ाया था आरक्षण
राज्य में जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर, राज्य सरकार ने एससी के लिए कोटा बढ़ाकर 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों के लिए दो प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए 25 प्रतिशत और पिछड़ा वर्ग के लिए 18 प्रतिशत कर दिया.
गौरतलब है कि उस समय नीतीश कुमार की जनता दल-यूनाइटेड महागठबंधन का हिस्सा थी, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पार्टी शामिल थी.
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