नई दिल्ली : भारत 24 के सीईओ और एडिटर इन चीफ डॉ. जगदीश चंद्र के 'The JC Show' का लाखों-करोड़ों दर्शकों को इंतजार रहता है. इस बार The JC Show जम्मू एंड कश्मीर में हो रहे चुनाव को लेकर है. इस शो का नाम है 'क्या इस बार श्रीनगर में कमल खिलेगा' है. आइए जानते हैं इस शो में Man of Prediction कहे जाने वाले डॉ. जगदीश चंद्र का विश्लेषण.
गौरतलब है कि राज्य में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं वोटर में जबर्दस्त उत्साह है और लोकतंत्र के इस महापर्व में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. अपनी सरकार चुनने के लिए अमन और शांति के साथ कश्मीर में चुनाव संपन्न हो रहे हैं. अब तक चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं. पहले चरण का चुनाव 18 सितंबर और दूसरे चरण का चुनाव 25 सितंबर हो चुका है. आखिरी चरण का चुनाव 1 अक्टूबर को होगा और नतीजे हरियाणा चुनाव के साथ 8 अक्टूबर को आएंगे.
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सवाल- क्या आपको लगता है कि श्रीनगर में इस बार कमल खिलेगा और बीजेपी वहां पर सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनेगी?
भारत 24 के सीईओ और एडिटर इन चीफ डॉ जगदीश चंद्र ने कहा कि हो सकता है, कहा नहीं जा सकता. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि यह हंग असेंबली होने जा रही है. कोई सिंगल पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में नहीं आ रही है. इस बार कोलिशन (गठबंधन) की सरकार बनेगी, जहां कोलिशन सरकार होती है वहां सब कुछ केंद्र सरकार के हाथ में होगा, भाजपा के हाथ में होगा.
खुद उमर अब्दुल्ला डरे हुए हैं. उनका कहना यह कि वोटों में अगर तोड़फोड़ की गई, बंटवारा हुआ तो बीजेपी सरकार बना सकती है, कमल वहां खिल सकता है. भाजपा नेता और मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह का कहना है कि हम निश्चित तौर पर सरकार बनाएंगे. किसी पोस्ट पोल अलायंसेज की जरूरत नहीं पड़ेगी. हम अपने बूते सरकार बनाएंगे.
राम माधव की भाषा भी कुछ ऐसी ही है तो कुल मिलाकर, बीजेपी इस बार मोस्ट कॉन्फिडेंट है कि श्रीनगर में कमल खिलेगा और सरकार बनेगी तो देखते हैं आखिर में क्या होता है. मोटे तौर पर आज जो दिखाई देता है एनसी और कांग्रेस का जो अलायंस है प्लस पीडीपी अगर मिलती है और कुछ निर्दलीय मिलते हैं तो उनके चांसेस सरकार बनाने के 51 फीसदी हैं. बीजेपी का जो अलायंस है इसके 49 फीसदी हैं.
लेकिन साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति में अमित शह का कोई सानी नहीं है और राजनीति में एवरीथिंग इज फेयर सब कुछ सही होता है. तो इसलिए 1 फीसदी की यह जो कमी दिख रही है, यह कब 2 फीसदी प्लस में कन्वर्ट हो जाए, कहा जा सकता. इसलिए यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि श्रीनगर में कमल के खिलने की बात अभी खारिज नहीं की जा सकती, देखते हैं क्या होता है.
सवाल- आपने हंग असेंबली का जिक्र किया है, तो क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं सरकार बनाने के, अगर हंग असेंबली होती है. मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा?
डॉ चंद्र ने कहा, हंग असेंबली में सबसे पहले तय इस पर होगा कि सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होने के आसार किसके हैं? अगर बीजेपी सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होती है, जिसके आसार लग रहे हैं. अगर डॉक्टर जितेंद्र सिंह का, राम माधव का गणित देखा जाए 35 10 का कि 35 तो जम्मू से लाएंगे 10 वहां (कश्मीर) से लाएंगे. 45 के लिए, एक कोई और को पकड़ेंगे और 46 पर सरकार बनाएंगे.
अगर वो सिंगल लार्जेस्ट पार्टी हैं तो राज्यपाल के यहां से सरकार बनाने का निमंत्रण बीजेपी के पास आएगा. उनको हफ्ते 10 दिन का समय मिलेगा और इसमें सब कुछ हो जाएगा. सरकार बीजेपी की बनेगी. अगर सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बीजेपी नहीं है तो पहला विकल्प ये है कि उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में कांग्रेस-एनसी की सरकार प्लस पीडीपी और बाकी जो हैं मिलकर बनाएंगे.
मान लीजिए कि अगर उमर अब्दुल्ला चुनाव हार जाते हैं, जैसा कि पहले हार गए थे, तो तुरंत फारूक अब्दुल्ला किसी दूसरे सक्सेसर को नॉमिनेट करेंगे और तोड़फोड़ नहीं करेंगे. दूसरा ऑप्शन है कि बीजेपी सरकार बनाए, बीजेपी खुद है तो पीडीपी पक्का होगी और निर्दलीय, उनमें से कुछ साथ होंगे तो फिर बीजेपी सरकार बनाएगी, ये दो मोटे तौर पर संभावनाए बनती हैं.
सवाल- आपने राम माधव का भी दो बार नाम लिया, आपको लगता है कि ये चुनाव राम माधव के लिए अग्नि परीक्षा जैसी चुनौती है?
उन्होंने इसके जवाब में कहा, इसे अग्नि परीक्षा इस लिहाज से कहा जा सकता है कि उन्हें एक बार फिर से मौका मिला है अपनी प्रतिभा दिखाने का. उन्हें मुख्य धारा में लाया गया है, वह किसी जमाने में आरएसएस के प्रवक्ता हुआ करते थे. पावरफुल जनरल सेक्रेटरी थे, लेकिन उनका जो काम करने का तरीका था वह हाई प्रोफाइल था. यह बीजेपी और आरएसएस के संस्कृति के अनुकूल नहीं लगा लोगों को, तो वह 4 साल तक अलग हुए. एक तरह से साइडलाइन रहे. अब मुख्य धारा में लाए गए हैं. पहले वह श्रीनगर में अपनी कुशलता दिखा चुके हैं. 2015 में जो सरकार बनी तो उसमें कोलिशन बनाने में इनका बड़ा प्रयास था, जिसमें कि बीजेपी और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और घाटी के अंदर राम माधव का अच्छा प्रभाव है, जितनी पॉलिटिकल पार्टीज हैं, उन सबको अच्छे से जानते हैं. इस बार बीजेपी की टॉप लीडरशिप ने उन्हें मौका दिया है कि जाओ श्रीनगर, सरकार बनाकर लौट के आओ, जिम्मेदारी है. वह अमित शाह की निगरानी में काम भी अच्छा कर रहे हैं.
देखते हैं अगर राम माधव सरकार बनाने में वहां कामयाब होते हैं तो निश्चित तौर पर जब लौट के आएंगे तो नरेंद्र मोदी का आशीर्वाद उनको मिलना पक्का है. राम माधव का जो फ्यूचर है अभी तो अच्छा दिखाई देता है.
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सवाल- क्या यह सच है कि मतदान वाले दिन कश्मीर में ईद जैसा माहौल था?
बिल्कुल ईद जैसा माहौल था, वहां पर अगर आप देखें तो सुबह से उत्साह था. लोगों के मन में उमंग थी. एक नई आशा किरण थी. लोग घरों से 7:00 बजे निकल गए थे. मतदान केंद्र के बाहर लाइन लगा कर खड़े थे. बहुत से बच्चे ऐसे थे जो अभी युवा हुए हैं, इतने समय बाद चुनाव हो रहे हैं तो उनमें उत्सुकता है कि पहली बार लाइन में लगें, कैसे वोट डालेंगे, कैसे स्याही लगा के आए तो बाहर लोगों को उंगली दिखा रहे थे. लोग छोटी-छोटी गलियों से, संकरी गलियों से निकल कर मतदान केंद्रों पर जा रहे थे और मतदान केंद्रों पर खास बात है सिक्योरिटी का कोई एक्स्ट्रा अरेंजमेंट नहीं था. इस बार कोई बैरीकेडिंग नहीं थी, कोई एक्स्ट्रा पुलिस नहीं थी. सब कुछ नॉर्मल था, तो वास्तव में किसी ने वहां पर कहा कि आज ईद जैसा उत्सव का माहौल दिखाई देता है, तो हम कह सकते हैं वैली (घाटी) के अंदर 18 तारीख को ईद जैसा, उत्सव जैसा माहौल था.
सवाल- तीन से चार पंक्तियों में अगर इस चुनाव के विश्लेषण की बात की जाए तो आप क्या कहेंगे?
डॉ चंद्र ने कहा पहली पंक्ति में तो ये है कि यह एक मुश्किल लड़ाई होने जा रही है. जहां, बीजेपी इलेक्टोरल सुपरमेसी के तौर पर प्रयास कर रही है. वहीं रीजनल पार्टियां, अपनी गंवाई स्वायात्तता और पहचान को फिर से पाने की आखिरी कोशिश में हैं. ये सारा क्रक्स है, सिचुएशन का, कश्मीर का.
सेकंड यह है इसमें कि श्रीनगर और कश्मीर नॉर्मल होने की ओर है. कश्मीर लोकतंत्र की ओर लौटने की ओर और अमित शाह नरेंद्र मोदी की इमेज का सवाल.
आप देखिए 40 साल से जिन लोगों ने चुनाव का बॉयकॉट कर रखा था. टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन, मिलिटेंट जो हैं आज वो मुख्य धारा का पार्ट बने हैं. आज वो खुद चुनाव लड़ रहे हैं. खुद चुनाव के लिए वोटर्स के पास जा रहे हैं. यह बहुत बड़ी बात है और एक और महत्वपूर्ण बात ये कि जो बच्चे, स्त्री-पुरुष हाथ में पत्थर लेकर जाते थे, इस दिन का बॉयकॉट करने के लिए, वो आज चुनाव डालने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. तो टोटल सिनेरियो में ये चेंज हुआ है.
सवाल- क्या ये चुनाव एक रेफरेंडम है मोदी और शाह के 370 के एक्सपेरिमेंट पर?
भारत 24 के सीईओ ने कहा, मानना यही लोगों का है, यह देशभर में परसेप्शन बना है, लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं. 370 तो हो चुका. अब यह वापस नहीं आने वाला. अब यह इतिहास है. अमित शाह ने खुद ने कहा कि यह चुनाव पॉलिटकली रेफरेंडम नहीं है. मेरा कहना है कि रेफरेंडम उस पर होता है कि चीज वापस आ सकती है या नहीं.
370 अब पूरी तरह हट चुका है और अमित शाह ने कल ही कहा है वह इसे कश्मीर के अंदर दफन कर चुके हैं. 370 को दुनिया की कोई भी ताकत वापस नहीं ला सकती, और यह फैक्ट है. तो यह रेफरेंडम है नहीं, परसेप्शन रेफरेंडम जैसा बना है.
सवाल- जम्मू-कश्मीर चुनाव के पहले चरण में लगभग 61 फीसदी वोटिंग हुई, दूसरे चरण में 57 प्रतिशत तो क्या इसमें भी कोई मैसेज है?
डॉ चंद्र ने कहा कि इसमें संदेश है कि दूसरे चरण में उत्साह नहीं था. अब यह जाना जाए कि उत्साह क्यों नहीं था. ये रिसर्च का विषय है लेकिन यह बात पक्की है कि उत्साह पहले जैसा नहीं था और इस बार एक हल्का सा डर सा माहौल भी लोगों में दिखाई दिया. हो सकता है कि पहले चरण में जो पोल हुआ जबर्दस्त, उसका जो मैसेज गया, वो टेररिस्ट को मिलिटेंट्स को सूट नहीं किया हो.
और उन्होंने हो सकता है कि बैकरूम में कुछ किया हो. वोटर्स से इन्फ्लुएंस करने की कोशिश की हो, लेकिन यह तो फैक्ट है कि पहले की तुलना में उत्साह उतना नहीं था.
सवाल- क्या यह सच है कि जो 370 का मुद्दा है, वह कश्मीर की जनता के लिए उनके स्वाभिमान और डिग्निटी से जुड़ा हुआ मुद्दा बन चुका है?
हां बिल्कुल बन चुका है. सब कुछ किया सरकार ने उनके लिए, लेकिन दिल नहीं जीत पाए. आज भी कहना चाहिए कि 51 प्रतिशत लोग जो वैली में है, उनके मन में कहीं न कहीं खटक इस बात की रहती है. वह अभी भी सोचते हैं क्या यह वापस आ सकता है. इसका कोई सेंस नहीं है. कश्मीर नॉर्मल हो चुका है. कुछ लोग हैं जिनका धंधा चल रहा है. लेकिन लाइफ नॉर्मल हो गई है. साइकोलॉजिकली, इमोशनली कहना चाहिए एक सेंटीमेंट की बात है. उनके मन में कहीं न कहीं आता है कि ये हमारे स्वाभिमान से जुड़ा हुआ मुद्दा है.
ग्राउंड रीयलिटी अगर आप देखें तो ऐसा कुछ नहीं है जो लोग कहते हैं कश्मीर के स्वाभिमान का मुद्दा है उसी कश्मीर के श्रीनगर में देखिए, पहल गांव में देखिए, गुलमर्ग में देखिए, लाइफ, बिजनेस कितना नॉर्मल है, टूरिजम कितना नॉर्मल है तो क्या है. सब कुछ नॉर्मल होते हुए भी दिल में एक खटक है लोगों के मन में. कोई खास नहीं लेकिन हां मैटर ऑफ ग्राउंड रियलिटी है कि लोग अभी तक 370 को भुला नहीं पाए हैं.
सवाल- श्रीनगर में सबसे कम 29.24 प्रतिशत ही मतदान हुआ है, इसे आप कैसे देखते हैं?
यह थोड़ा चिंता का विषय है. श्रीनगर में हमेशा सबसे कम मतदान हुआ है. कुछ जगह तो 16 से 36 प्रतिशत मतदान हुआ है. वहां एक ईदगाह विधानसभा क्षेत्र है वहां पर 28 प्रतिशत के आसपास मतदान हुआ है. एक जगह 16 प्रतिशत, एक जगह 36 प्रतिशत मतदान हुआ है. एवरेज 29 प्रतिशत आया है लेकिन एक खास बात यह थी इस श्रीनगर के पोल के अंदर वह कि लाइनें थीं. लोग लाइनों में थे लेकिन उत्साह कम था. लोग शर्मा रहे थे या ऐसा कि जैसे कोई तीसरी आंख उनको वॉच कर रही थी. डरे हुए थे. उंगली में लगी स्याही लोग मिटा रहे थे. फोटो भी नहीं खिंचवा रहे थे. तो उनकी कोशिश रही कि कोई देखे न कि हमने वोट डाल दिया है.
ये ऑब्जर्वेशन भी हो सकता है मन में अभी भी थोड़ा बहुत भय रहा हो कि हम कर तो रहे हैं लेकिन कोई इसका बुरा तो नहीं मान रहा. ये भी एक कारण था. बाकी श्रीनगर में तो ट्रेडिशनली कम वोटिंग होती रही है. इस बार ज्यादा कम हुआ है और उसके पीछे ये सारे कारण हो सकते हैं और फिर क्या है कि श्रीनगर एक तरह से सेंट्रल पॉइंट रहा है टेररिज्म का.
सवाल- जम्मू क्षेत्र देखें जहां पुंछ, रियासी में आतंकी घटनाओं के बावजूद वोटिंग अच्छी हुई, इसके पीछे आप क्या वजह मानते हैं?
उन्होंने कहा कि इसके पीछे से कहीं न कहीं सपोर्ट था, अमित शाह का, वहां की सरकार का, पैरामिलिट्री फोर्सेस का और जम्मू में आप देखिए न कि अभी जुलाई के अंदर ही 10 घटनाएं हुई आतंकवाद की. आतंकवाद का सेंटर काश्मीर से जम्मू में शिफ्ट कर दिया. 15 तो जवान मारे गए वहां. जम्मू में लोगों का सेंट्रल लीडरशिप में भरोसा है. लोगों में नरेंद्र मोदी, अमित शाह में भरोसा हो गया है.
सवाल- जम्मू कश्मीर में चुनाव में कई फॉरेन डिप्लोमेट्स आए. उन्होंने चुनाव को काफी हेल्दी और इंस्पायरिंग बताया, आप इसे कैसे देखते हैं?
बेशक, ये तो एक मिरेकल ही था उनकी निगह में. उन्होंने इसे पूरी तरह लोकतांत्रिक भी कहा. यह सेंटेंस कितना महत्वपूर्ण था. उनका कहना कि कोई दबाव नहीं था और वेब पॉलिंग थी, खड़े होक देख लीजिए. यहां बैठ कर देख लीजिए, वाशिंगटन में बैठकर देख लीजिए. वेब पोलिंग थी, इससे ज्यादा ट्रांसपेरेंसी तो हो नहीं सकती. पीएमओ का यह कदम मास्टर माइंड मूव था. वहां इस टीम को भेजना, दिखाना. और देश भी कैसे-कैसे नॉर्वे, स्वीडन अमेरिका इतने बड़े-बड़े राष्ट्र के प्रतिनिधि वहां पर गए. यह बहुत अच्छा कदम था. हालांकि, उमर अब्दुल्ला ने बाद में कहा कि आप फौरन मीडिया को तो आने नहीं दे रहे हैं, इनको बुला रहे हैं. लेकिन यह तो राजनीति का पार्ट है. बयान देना होता है तो बयान दिया.
इसका फायदा इंटरनेशनल डिप्लोमेसी में जो है, भारत को मिला है और नरेंद्र मोदी को मिला है.
सवाल- उमर अब्दुल्ला दो विधानसभाओं से चुनाव लड़ रहे हैं. एक बड़गांव में एक गांदरबल और 2014 की तुलना के लिहाज से जो 25 सितंबर को चुनाव हुए उसमें ढाई प्रतिशत वोट कम पड़े हैं. आपको लगता है कि उमर अब्दुल्ला के लिए चुनाव के नतीजों से डरने की कोई बात है?
डॉ चंद्र ने कहा कि हां ऐसा है. कुछ ऐसा इंप्रेशन है कि एक बार वह फिर हार सकते हैं. अभी हार गए थे लोकसभा का चुनाव. एक बार हारने के बाद मन में ऐसा भय बैठ जाता. हालांकि वो कह रहे हैं कि इसमें से मेरी एक सीट होम कांस्टेंसी है, लेकिन कहीं न कहीं डर हैं. जो सामने कैंडिडेट है वो सरेआम कह रहा है कि वह लूज कर रहे हैं. तो कोई बड़ी बात नहीं है कि लूज कर जाएं लेकिन मेरा पर्सनल व्यू यह है कि चुनाव तो जीत जाएंगे, मार्जिन कम रहेगा. दो सीट हैं उनकी एक तो पक्का जीत जाएंगे मार्जिन कम रह सकता है.
सवाल- आखिर नरेंद्र मोदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की परिकल्पना पूरी कर दी- एक निशान, एक विधान, एक प्रधान की?
उन्होंने इस सवाल के जवाब में कहा तो हां ये सच है ये कल्पना शमशा मुखर्जी की थी- एक देश, एक विधान, एक निशान. मैं निश्चित तौर पर कहूंगा कि नरेंद्र मोदी अमित शाह का ये बहुत बड़ा योगदान है देश के लोगों के लिए.
सवाल- क्या देश के बाकी चुनावों की तरह जम्मू-कश्मीर का चुनाव भी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है?
उन्होंने कहा कि बेशक. इनका कोई विकल्प नहीं है. कोई दूसरा चेहरा नहीं है, जिसके जरिए चुनाव लड़ सकें मैं तो यहां तक कहूंगा 240 सीट के बावजूद पार्टी के पास कोई चेहरा नहीं है, जो नरेंद्र मोदी के मुकाबले हो. निश्चित तौर पर यह उनके चेहरे पर लड़ा जा रहा है.
उनके जो भाषण हुए हैं, उन्होंने उसमें समा बांधा है. वहां जो कैंपेन था उसकी दिशा बदली है. लोगों का उत्साह बनाया, तो इसमें तो कोई संदेह है नहीं कि वह पार्टी में एक ऐसा चेहरा बने हुए हैं, जिसको आगे रख कर चुनाव लड़ा जा सकता है.
सवाल- जम्मू-कश्मीर में अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डोडा, कटरा, श्रीनगर में सभाएं हुईं, पब्लिक रिस्पांस कैसा है?
भारत 24 के सीईओ डॉ जगदीश चंद्र ने कहा कि रिस्पांस अच्छा था. डोडा में शुरू में कुछ लोग कम आए थे, लेकिन बाद में आए. कटरा में जबर्दस्त भीड़ थी.
सवाल- प्रधानमंत्री ने वहां अपनी रैलियों में बार-बार कहा कि तीन परिवारों ने जम्मू कश्मीर को बर्बाद कर दिया, इसका क्या मतलब है?
डॉ चंद्र ने कहा कि इसका मतलब है कि आज तक जो ट्रेडिशनल लीडरशिप रही है. चाहे वो शेख अब्दुल्ला की रही हो, फारूक अब्दुल्ला की रही हो, उमर अब्दुल्ला की रही हो. इधर. मुफ्ती सईद की रही हो. फिर उनकी बेटी महबूबा की रही हो. इन परिवारों ने यहां की राजनीति को कैप्चर कर रखा है. कश्मीर को इन्होंने आगे नहीं बढ़ने दिया. यह एक पॉलिटिकल स्टेटमेंट भी है और फेक्चुअल भी है कि परिवार तो यही थे जिन्होंने रूल किया है और आज अगर कश्मीर आगे नहीं बढ़ा, इतने सालों में तो उनका कहना था यही इसके मुख्य कारण थे और उनके स्टेटमेंट को कश्मीर और उसके बाहर लोगों ने सीरियसली लिया.
सवाल- क्या आपको लगता है कि एक बार फिर से जम्मू कश्मीर के चुनाव ने नरेंद्र मोदी के ग्राफ को बहुत ऊपर पहुंचा दिया है?
उन्होंने इस सवाल के जवाब में कहा ऑफकोर्स. उनके जो भाषण पिछले दिनों हुए हैं और उस भाषण के अंदर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का जो बयान आया उन्होंने पकड़ लिया और नरेंद्र मोदी लकी हैं हर चुनाव में कोई न कोई ऐसा मुद्दा उनके हाथ में लग जाता है. इस बार पाकिस्तान के रक्षामंत्री के बयान का मुद्दा उनके हाथ लग गया और उन्होंने कह दिया कि पाकिस्तान एनसी और कांग्रेस ये एक ही प्लेटफार्म पर हैं. इनका एक ही एजेंडा है और मैं किसी भी हालत में पाकिस्तान के एजेंडे को भारत में लागू नहीं होने दूंगा. यही बात अमित शाह ने कही.
दोनों ने जो भाषण दिए देश ने उसको हाथों हाथ लिया.
सवाल- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डॉक्टर मनमोहन सिंह कार्यकाल में कश्मीर के हैंडलिंग को आप किस तरह से देखते हैं?
उन्होंने कहा कि बहुत फर्क है दिन-रात का. उन्होंने (मनमोहन सिंह) ठीक है, बस पड़ी हुई चीज है. वहीं मोदी ने पूरे कश्मीर का कायाकल्प किया. आज कश्मीर ओपन हो गया है, आम आदमी का जीवन कैसा हो गया है वो सब आपके सामने है तो कश्मीर का टोटल टर्न अराउंड हुआ, 370 के साथ, ये नरेंद्र मोदी, अमित शाह ने किया. नरेंद्र मोदी ने किया है. मनमोहन सिंह के टाइम में ऐसा कुछ नहीं था. मनमोहन सिंह के टाइम में तो एक मनोहारी नीति थी जो वर्षों से चली आ रही थी. केवल मनमोहन सिंह के समय में ही नहीं, बल्कि पिछले 40 साल से चली आ रही थी. उग्रवादियों को पटा के रखो, इनको मना के रखो. नरेंद्र मोदी, अमित शाह ने फ्रंट ऑन लिया इस मामले को.
और यह बड़ा एक्टिव कार्यकाल है. उसी का परिणाम है कि इन सब खतरों के बावजूद चुनाव आज हो रहे हैं. एक्चुअल में काम करने के तरीके में मनमोहन सिंह और नरेंद्र के बीच कोई तुलना नहीं है.
सवाल- क्या अगर जरूरत पड़ती है तो पीडीपी का समर्थन, महबूबा मुफ्ती का समर्थन बीजेपी एक बार फिर से घाटी में ले सकती है और साथ ही 2018 में कारण क्या था पीडीपी से समर्थन वापस लेने का?
डॉ जगदीश चंद्र ने कहा, देखिए पहला तो ये कि राजनीति संभावनाओं का खेल है. तो कोई किसी से समर्थन ले सकता है और चांसेस है इस बात के, जैसे कि हालात चल रहे हैं. शायद महबूबा अपनी चार, पांच सीटें जीतें वो एक्सटेंड कर सकती हैं लेकिन उनको लगा कि अगर ये दूसरे लोग सरकार बना रहे हैं तो अब्दुल्ला को वो समर्थन दे देंगी. अब दूसरा सवाल आपका ये कि पहले क्यों समर्थन वापस लिया था बीजेपी ने, तो हालात ऐसे हो गए थे कि चुनाव हुआ विधानसभा का, किसी दल को बहुमत नहीं मिला. महबूबा की पार्टी 28 पर थी, बीजेपी 25 पर थी 15 पर अब्दुल्ला थे और 12 पर कांग्रेस थी.
फिर कश्मीर में स्थायित्व प्रदान करने के लिए मुफ्ती मोहम्मद साईद और भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई. उसमें इंस्ट्रूमेंटल थे राम माधव. गठबंधन हुआ, सरकार बनी. सईद का एक साल बाद ही निधन हो गया. वह महबूबा के पिता थे, जिसके बाद महबूबा सीएम बन गईं. सईद सबको साथ लेकर चलने वाले शख्स थे. इनका फोकस कश्मीर पर रहता था, बीजेपी कहती थी कि जम्मू का ध्यान रखो, वो नहीं हो पाया. डिफरेंसेस बढ़ते चले गए.
फिर कुछ मुद्दे सामने आ गए तो उन्होंने कहा कि भाई आप पत्थरबाजों को रिहा कर रहे हो, हमसे राय तो करो. बड़ी संख्या में आप रिहा कर रहे हो. एक और दो मुद्दे ऐसे थे तो करते करते इतने में क्या हुआ कि वहां एक 8 साल की बच्ची के साथ रेप और मर्डर हो गया. इस हंगामे से बीजेपी बैक फुट पर आ गई तो उन्होंने सोचा कि एक साल बाद लोकसभा के चुनाव होने ही हैं, समर्थन वापस ले लेते हैं, ले लिया. सरकार गिर गई. राष्ट्रपति शासन लग गया.
लेकिन राजनीति में ऐसा कुछ नहीं है, आवश्यकता पड़ेगी तो अमित शाह फोन करके बुला लेंगे उनको (महबूबा को). राजनीति में कुछ भी हो सकता है तो फिर से महबूबा-बीजेपी मिलकर सरकार बना सकते हैं और वह अब्दुल्ला के साथ मिलकर भी सरकार बना सकती हैं. देखते हैं.
सवाल- जम्मू कश्मीर की 28 ऐसी सीटे हैं जहां पर उसने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं, इसके पीछे क्या स्ट्रैटजी हो सकती है या फिर जो निर्दलीय उम्मीदवार हैं तो क्या वो इस चुनाव में गेम चेंजर होंगे या फिर किंग मेकर?
28 सीटों पर चुनाव न लड़ने की अमित शाह की बेसिकली स्ट्रैटजी है. उनका तरीका है कि हारने से अच्छा कैंडिडेट खड़ा नहीं करो. दूसरे सहयोगी दल हैं, उनके आदमी को सपोर्ट करो. निर्दलीयों को सपोर्ट करो, उन्होंने 19 लोगों को खड़ा किया बाकी खुला छोड़ दिया तो उनकी स्ट्रैटजी है और स्ट्रैटजी का परिणाम आएगा क्योंकि ऐसा अनुमान है कि बड़ी संख्या में निर्दलीय इस बार चुनाव जीतने वाले हैं.
ऐसा लगता है जितने निर्दलीय चुनाव जीत कर आएंगे उनमें ज्यादातर अमित शाह के घर के बाहर खड़े मिलेंगे. ऐसा मेरा असेस्मेंट है. सरकार किसी की बन रही हो, एक बार तो देखेंगे अगर सरकार बनने की 10 फीसदी बी संभावना में भाजपा की होगी तो निर्दलीय अमित शाह को तवज्जो देंगे, फिर किसी और को ऐसा मेरा असेस्मेंट है.
घाटी के अंदर हमेशा बीजेपी का खाता खुलना मुश्किल रहा है आज तक. इस बार चमत्कार हो सकता है. मेरा ऐसा मानना है कि घाटी में भी इनकी दो चार सीटें आ जाएंगी और वो तो 10 की उम्मीद कर रहे हैं. लेकिन वो ये मान के चल रहे थे, हमारी नहीं आएंगी वहां पे तो उन्होंने दूसरों को सपोर्ट करने का फैसला किया.
जो विनिंग कैंडिडेट लग रहे हैं, चाहे दूसरी पार्टी के हों, आएंगे तो शाम को यहीं.
सवाल- अगर कोई निर्दलीय उम्मीदवार. जिस पर टेरर फंडिंग के आरोप हैं या टेररिस्ट से जुड़े होने के आरोप हैं वह जीत जाता है तो क्या उसे राजनीतिक जोड़ तोड़ के तहत मंत्री भी बनाया जा सकता है?
उन्होंने कहा अगर बनाया जाएगा तो यह दुर्भाग्य होगा. यह भारतीय राजनीति में बहुत गंभीर घटनाक्रम होगा. सवाल ये नहीं है कि वह भाजपा समर्थित था या पीडीपी या कांग्रेस का. या इंजीनियर था वो. एक बार जिसका बैकग्राउंड मिलिटेंसी का रहा है, क्या उसको सत्ता सौंपी जा सकती है, क्या उसको राज्य में भागीदार बनाया जा सकता है मैं निजी तौर पर इस विचार को सहमति नहीं दूंगा, लेकिन राजनीति है, व्यवस्थाओं का खेल है. देखते हैं कितने लोग जीत कर आते हैं और सरकार में उनकी भागीदारी होती है कि नहीं और अगर होती है तो वे अगले 100 दिन में क्या व्यवहार करते हैं.
सवाल- घाटी में एक राजनीतिक दल दूसरे राजनीतिक दल पर आरोप लगा रहे हैं कि जो फॉर्मर टेररिस्ट हैं या फिर मिलिटेंट्स हैं वे या तो किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं या उन्हें सपोर्ट किया जा रहा है, इसके पीछे सच्चाई क्या है?
डॉ जगदीश चंद्र ने कहा, सच्चाई यही है कि सभी मिले हुए हैं, कोई थोड़ा, कोई ज्यादा. लेकिन परसेप्शन ऐसा ज्यादा बन गया है कि बीजेपी ने ऐसे उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं. लोगों का मानना है कि बीजेपी के लोगों ने 20-25 लोगों को फाइनेंस किया होगा या सपोर्ट किया होगा. लेकिन किया सबने है. अब इसको लेकर क्रॉस वार हो रही है. बीजेपी में तो राम माधव कह रहे हैं कि कांग्रेस-एनसी के कैंडिडेट्स और पीडीपी के सारे के सारे पुराने मिलिटेंट्स हैं जो एक्टिवली कैंपेन कर रहे हैं. वो उल्टा बीजेपी के लिए यही कह रहे हैं.
सवाल- चुनाव आयोग द्वारा ऐसे टेररिस्ट बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की इजाजत देना कितना उचित है और क्या सरकार इस पर कोई कानून लाएगी?
मैं तो मानता हूं गवर्नमेंट इस बारे में जरूर सोचे. हो सकता है कि चुनाव बाद ऐसे हालात पैदा हो जाएं कि गवर्नमेंट ऐसा करने को मजबूर हो जाए. कॉमन सेंस तो यही कहता है.
सवाल- इस बार बीजेपी ने लीक से हटकर मुस्लिम उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है, जम्मू कश्मीर में बीजेपी को इनसे आशाएं, उम्मीदें कितनी हैं?
डॉ चंद्र ने कहा कि मेरा मानना है कि इनकी संख्या 22, 23, 24 है और रणनीति का हिस्सा है. क्या होता है न देश काल, परिस्थिति के अनुसार चीजों को बदलना पड़ता है.
सवाल- एक परसेप्शन है और चर्चा का भी विषय है कि असली चुनाव जम्मू में हो रहा है और बीजेपी ने वहां स्वीप करने की रणनीति बना चुकी है?
उन्होंने कहा कि बिल्कुल बना चुकी है और चर्चा तो यहां तक है कि ऐसा इंप्रेशन दिया गया है कि जम्मू में 43 में से 35 सीट ला कर दे दो तो हम जम्मू को एक अलग स्टेट ही बना देंगे, ऐसा मैंने सुना है, ऐसी चर्चा चली है. आपको अलग मुख्यमंत्री दे देंगे और दूसरी बात कि आतंकवादी घटनाएं हुई हैं तो जम्मू के लोग आतंकित हैं. ये लोग आ गए तो फिर परेशान करेंगे, तो जम्मू तो ऐसा लगता है कि बीजेपी के साथ जाने वाला है. 43 में 35 उनका आकलन है, इतनी सीटें आ सकती हैं. ज्यादा भी आ सकती हैं, कह नहीं सकते.
जनता एकतरफा वोट डालती है. वहीं राहुल गांधी ने कुछ गड़बड़ कर दी. वह कश्मीर में 370 को लेकर उलझ गए. वहां अमित शाह का, नरेंद्र मोदी का बहुत फोकस रहा. भाषण में कह दिया कि कांग्रेस, पाकिस्तान का एजेंडा लागू करेगी, यह असर करेगा. 100 प्रतिशत नहीं तो 51 प्रतिशत वोट तो लाएंगे न, 43 में 21 की तो गारंटी है जो गिरी सी गिरी हालत में है.
सवाल- चुनाव आयोग जो वोटिंग परसेंटेज देख कर उत्साहित है क्या आखिरी चरण तक भी ये उत्साह बना रहेगा?
उन्होंने कहा, बिल्कुल बना रहेगा. थोड़ा ऊपर-नीचे हो सकता है. 62 से 57 हो गया मान लो तो यह 62 से 40 नहीं होगा.
सवाल- सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जम्मू कश्मीर में चुनाव तो हो रहे हैं लेकिन क्या वाकई जम्मू कश्मीर इस वक्त चुनाव के लिए तैयार था?
डॉ चंद्र ने कहा कि आने वाले कल में अगले 100 दिन में चुनाव रिजल्ट आने के बाद में कश्मीर क्या करवट लेता है कश्मीर का लॉ एंड ऑर्डर क्या करवट लेता है क्या हालात हैं आज, जो स्थाई शांति है वहां पर, एक तरह से बनी रहती है कि नहीं.
370 उसी का पार्ट है एक तरह से, जो इस पर डिपेंड करेगा कि अगर ये डिस्टर्ब होता है तो मुझे अफसोस होगा नागरिक के नाते कि हमने क्यों चुनाव कराए अच्छा चल रहा था, सब चलता रहता कश्मीर में.
सवाल- कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस, भाजपा और पीडीपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जनता से जो वादे किए हैं, इसको लेकर क्या कहेंगे?
डॉ चंद्र ने कहा कि बीजेपी होमवर्क बहुत करती है. अमित शाह किसी को सोने नहीं देते, लगे रहते हैं रातभर. अनिल बलूनी से लेकर पूरी की पूरी फौज है थिंकर्स की. वे फाइनली फिर पीएमओ में बैठते हैं. मास्टर माइंड घोषणा पत्र वहां बनता है. इस बार 25 बातें रखी और सबसे बड़ी बात कही है कि मेट्रो लाएंगे और आईटी हब बनाएंगे. सबसे बड़ा फोकस रखा यूथ, फार्मर और वुमेन पर.
यूथ के लिए कहा कि स्कॉलरशिप दो साल तक देंगे. हर महीने ट्रेवलिंग अलाउंस. 5 लाख लोगों को रोजगार देंगे. पांच साल में जो है विमेन के लिए कहा कि 18000. अभी तक लोग देते थे 6000, 8000. कांग्रेस ने 3000 कहा है. किसानों के लिए पीएम सम्मान निधि की बात कही है. यह संतुलित, अच्छा है.
बाकी जो दो पार्टियां हैं उनका तो मेन फोकस वही है नंबर वन 370 हटाओ, नंबर दो पूर्ण राज्य का दर्जा लाओ. एक तरह से नंबर तीन हमारा झंडा लगा हो. यह तीन डिमांड उनकी कॉमन है. उन दोनों पार्टियों- महबूबा और अब्दुल्ला की. कांग्रेस जो है थोड़ा सा अलग- पांच गारंटी दी है. एक तरह से अच्छे, लुभावने वादे किए हैं.
लेकिन वहां का चुनाव संकल्प पत्र पर नहीं लड़ा जा रहा. फ्री बीज कहो या घोषणाएं कहो, इनका कोई रेलेवेंस नहीं रहा. कश्मीर के अंदर दूसरे मुद्दे हैं. उन्होंने ओवरटेक कर लिया है. अब 370 सेंटिमेंटल है. या दूसरा घाटी में पूर्ण राज्य का दर्जे का मुद्दा हो.
सवाल- नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का चुनावी मुद्दा 370 की बहाली है और वहां का झंडा दोबारा लाने का है, क्या आपको लगता है ये चुनावी वादे वाकई पूरे कर पाएंगे?
देखिए इसे केंद्र सरकार करती है. 370 भारत सरकार हटा सकती है. मैं तो कहता हूं, चलो भारत सरकार का हृदय परिवर्तन हो गया, मान लो पर हटा तो केंद्र सरकार ही सकती आप तो नहीं. आप तो विधानसभा में रेजॉल्यूशन पास कर सकते हैं. इसलिए फारूक ने कहा कि मैं विधानसभा की पहली बैठक में प्रस्ताव लेकर आऊंगा 370 को हटाने का और पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का और अपना एक झंडा लाने का तो ये उनकी इच्छा है, कुछ कर नहीं कर पाएंगे.
कोई भी राज्य सरकार केंद्र की सहमति के बिना किसी केंद्रीय कानून में बदलाव नहीं कर सकती. इसलिए यह पूरी तरह जा चुका है. अब्दुल्ला सरकार बने, कांग्रेस सरकार बने, मान लो इनकी सरकार है और रेजॉल्यूशन भी असेंबली में ले आते हैं तो वह गृह मंत्रालय में पड़ा रहेगा. यह वोट अट्रैक्ट करने के लिए है. इसके इंप्लीमेंटेशन का कोई चांस नहीं है.
सवाल- कांग्रेस ने शुरुआत में उमर अब्दुल्ला, फारूख अब्दुल्ला के स्टेटमेंट पर 370 की दोबारा बहाली का सपोर्ट किया, क्या आपको लगता है कि कांग्रेस के लिए आत्मघाती सिद्ध हो सकता है?
डॉ चंद्र ने कहा, 100%. वो तो स्मार्टली फिर राहुल गांधी ने अपने आप को इससे अलग कर लिया. केवल राज्य का दर्जा दिया जाए, वहीं तक अपने आप को सीमित रखा तो कांग्रेस ने अपनी गलती पर विचार कर लिया. 29 स्टेट्स का भारत बहुत बड़ा है. कश्मीर में एक मुद्दा आपको सूट कर सकता है, इंडिया में आपको नुकसान पहुंचा सकता है. डैमेज कितना हुआ, समय के साथ पता लगेगा. दूसरे जो राज्यों के चुनाव होंगे, वहां इसका कितना डैमेज हुआ, बाकी ये कांग्रेस के लिए रणनीतिक ब्लंडर था. राज्य की मांग कर लीजिए, अलग राज्य हो उसको स्टेटहुड का दर्जा दिया जाए, लेकिन यह कहना कि 370 वापस आए उनके साथ खड़े होना सुसाइडल है.
सवाल- इस चुनाव में आप गुलाम नबी आजाद और महबूबा की पार्टी को कैसे देखते हैं? क्या महबूबा इस चुनाव में किंग मेकर बन पाएंगी?
डॉ जगदीश चंद्र ने कहा, गुलाम नवी के सितारे गर्दिश में हैं. वो न इधर के, न उधर के रहे. एक निराश और उदास व्यक्ति बन चुके हैं. मैंने उनकी फोटो देखी. दाढ़ी बढ़ी हुई थी, तबीयत ठीक नहीं है तो जन्मपत्री का खेल है. किसी जमाने में कहां थे, इंदिरा गांधी के किचन कैबिनेट में. फिर झगड़े हुए, छोड़ दिया. राहुल गांधी के कारण बहुत से लोग पार्टी छोड़ गए, शायद ये भी छोड़ गए. भाजपा के करीब गए. वह कल्चर्ड आदमी हैं. चीफ मिनिस्टर रहे हैं.
लेकिन कुछ हालात ने साथ नहीं दिया, बस बात बैठी नहीं. पार्टी बनाई, लोग खड़े किए तो चार लोग खड़े किए. चारों की जमानत जब्त हो गई, फिर दो को खड़े करने की बात थी. पहले दो खड़े किए थे फिर अब चार की बात. फिर बीच में कह दिया मेरी तबीयत ठीक नहीं, प्रचार नहीं कर पाऊंगा तो पार्टी में भगदड़ मच गई तो चारों ने नाम वापस ले लिया तो गुलाम नबी आजाद की पार्टी का अभी कोई वजूद नहीं है.
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