इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का अमेरिका दौरा एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार चर्चा सिर्फ कूटनीतिक मुलाकातों तक सीमित नहीं है. बीते कुछ वर्षों की घटनाओं को देखते हुए एक बार फिर यह आशंका जताई जा रही है कि उनके इस दौरे के दौरान इजराइल अपने दुश्मनों पर किसी बड़े हमले को अंजाम दे सकता है.
विशेष बात यह है कि नेतन्याहू के अमेरिका दौरे अक्सर उन पलों के साथ जुड़े रहे हैं, जब हमास या हिजबुल्लाह के प्रमुख चेहरों को निशाना बनाया गया. अब जब वो फिर अमेरिका रवाना होने वाले हैं, तो अटकलें तेज़ हैं कि इस बार कौन निशाने पर होगा.
दौरे के साथ 'हिट ऑपरेशन' की टाइमिंग महज संयोग या रणनीति?
सितंबर 2024: नेतन्याहू जब न्यूयॉर्क में UN महासभा को संबोधित कर रहे थे, उसी समय हिजबुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह को बेरुत में मारा गया.
जुलाई 2024: नेतन्याहू अमेरिकी कांग्रेस में बोलने पहुंचे, और कुछ ही दिन बाद तेहरान में हमास नेता इस्माइल हनिया की हत्या हो गई. अब, नेतन्याहू की एक और यात्रा तय है और अटकलें लगाई जा रही हैं कि अगला निशाना कौन हो सकता है?
'हिट लिस्ट' में शामिल हैं हमास के ये नाम
इजराइली रक्षा मंत्री इसराइल कात्ज ने हाल ही में बयान दिया था जिसमें उन्होंने कतर में रह रहे हमास नेता खालिल अल-हैया को खुलेआम चेतावनी दी थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजराइली एजेंसियों की हिट लिस्ट में और भी नाम हैं:
इज्ज अल-दीन अल-हद्दाद – गाजा में सैन्य प्रमुख
उसामा हमदान – लेबनान, सामी अबू जुहरी – अल्जीरिया, खालिल अल-हैया – कतर. इन सभी पर नजर रखी जा रही है और आशंका जताई जा रही है कि इनमें से किसी को भी "टारगेट" किया जा सकता है.
कतर में मिशन मुश्किल सहयोगी देश में हमला आसान नहीं
कतर सिर्फ एक इस्लामिक राष्ट्र नहीं, बल्कि अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी भी है. दोहा में अमेरिका का CENTCOM हेडक्वार्टर होने के चलते यहां कोई भी सैन्य कार्रवाई सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक संकट बन सकती है. यही कारण है कि जब वहां मौजूद हमास नेताओं से हथियार रखने या लोकेशन बदलने को कहा गया, तो इसे केवल सुरक्षा नहीं, दबाव की रणनीति माना गया.
सीजफायर और टारगेट किलिंग साथ-साथ?
अमेरिका और इजराइल इन दिनों गाजा में संघर्षविराम की योजना पर काम कर रहे हैं. ट्रंप का कहना है कि इजराइल 60 दिन की सीजफायर के लिए तैयार है. लेकिन इजराइली मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार इस डील के पीछे एक गुप्त शर्त भी है. अगर जरूरत पड़ी तो इजराइल फिर से ऑपरेशन शुरू कर सकता है. यानी एक तरफ शांति की पहल, दूसरी ओर संभावित 'टारगेट एलिमिनेशन' की तैयारी.
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