'कोर्ट निर्दयी नहीं हो सकता'- SC ने हल्द्वानी रेलवे भूमि के लिए अतिक्रमण हटाने से पहले पुनर्वास योजना मांगी

    अदालत ने कहा- जब सब कुछ आपकी आंखों के सामने हो रहा है, तो आप भी कुछ करते. वहां लोग 3-5 दशकों से रह रहे हैं, शायद आजादी से भी पहले से. आप इतने सालों से क्या कर रहे थे?

    'कोर्ट निर्दयी नहीं हो सकता'- SC ने हल्द्वानी रेलवे भूमि के लिए अतिक्रमण हटाने से पहले पुनर्वास योजना मांगी
    भारत का सुप्रीम कोर्ट, प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo- ANI

    नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र और राज्य सरकार से उत्तराखंड के हल्द्वानी क्षेत्र में रेलवे की भूमि खाली करने के लिए कहे गए लोगों के लिए पुनर्वास योजना लाने को कहा.

    शीर्ष अदालत रेलवे की ओर से रेलवे पटरियों और हल्द्वानी रेलवे स्टेशन की सुरक्षा के लिए रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने पर रोक हटाने के लिए दायर आवेदन पर सुनवाई के दौरान ये बात कही.

    जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ ने रेलवे अधिकारियों और सरकारों को रेलवे पटरियों के विस्तार के लिए आवश्यक भूमि और प्रभावित होने वाले परिवारों की पहचान करने का निर्देश दिया. इसने अधिकारियों से चार सप्ताह के भीतर ये कवायद पूरा करने को कहा और पीठ ने अगली सुनवाई 11 सितंबर तय की है.

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    भूमि कब्जा करने की स्थिति में प्रभावित परिवारों की पहचान की जाए

    पीठ ने कहा, "पहली पहल के रूप में, जिस भूमि की तत्काल आवश्यकता है, उसकी पूरी जानकारी के साथ पहचान की जाए. इसी तरह, उस भूमि पर कब्जा करने की स्थिति में प्रभावित होने वाले परिवारों की भी तुरंत पहचान की जानी चाहिए."

    सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से रोक हटाने का अनुरोध करते हुए कहा कि भूमि न होने के कारण रेलवे की कई विस्तार योजनाएं विफल हो गई हैं. एएसजी ने कहा कि हल्द्वानी पहाड़ियों का प्रवेश द्वार है और कुमाऊं क्षेत्र से पहले अंतिम स्टेशन है.

    माना के वे अतिक्रमणकारी है, पर इंसान हैं और दशकों से रह रहे हैं : SC

    पीठ ने कहा कि रेलवे के स्वामित्व वाली लगभग 30.04 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण होने का दावा किया गया है, जिस पर 4,365 घर और 50,000 से अधिक लोग रह रहे हैं. रेलवे ने कहा कि भूमि के एक हिस्से की तत्काल आवश्यकता है, जहां अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे के अलावा निष्क्रिय रेलवे लाइन को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है. जब एएसजी स्टे हटाने का अनुरोध कर रहे थे, तो बेंच ने यह भी कहा, "मान लें कि वे अतिक्रमणकारी हैं, तो आखिर में सवाल यह है कि वे सभी इंसान हैं. वे दशकों से वहां रह रहे हैं. ये सभी पक्के मकान हैं.

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    कोर्ट निर्दयी नहीं हो सकता, लेकिन अतिक्रमण को बढ़ावा भी नहीं दे सकता

    पीठ ने कहा कि न्यायालय निर्दयी नहीं हो सकते, लेकिन साथ ही, न्यायालय लोगों को अतिक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर सकते. राज्य के रूप में, जब सब कुछ आपकी आंखों के सामने हो रहा है, तो आपको भी कुछ करना होता है. तथ्य यह है कि लोग वहां 3-5 दशकों से रह रहे हैं, शायद आजादी से भी पहले से. आप इतने सालों से क्या कर रहे थे?"

    उच्च न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने का दिया था निर्देश

    2023 में, निवासियों ने हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास अनधिकृत कब्जाधारियों को हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

    20 दिसंबर को, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कब्जाधारियों को एक सप्ताह पहले नोटिस देने के बाद हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था.

    क्षेत्र से कुल 4,365 अतिक्रमण हटाए जाने थे. बेदखली का सामना कर रहे लोग कई दशकों से इस जमीन पर रह रहे हैं. निवासियों ने उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का विरोध किया.

    याचिका में 70 साल से वहां का वैध निवासी बताया गया है

    याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि याचिकाकर्ता गरीब लोग हैं जो 70 से अधिक वर्षों से हल्द्वानी जिले के मोहल्ला नई बस्ती के वैध निवासी हैं. इसमें कहा गया है कि स्थानीय निवासियों के नाम नगर निगम के गृहकर रजिस्टर के रिकॉर्ड में दर्ज हैं और वे वर्षों से नियमित रूप से गृहकर का भुगतान कर रहे हैं.

    इसमें कहा गया है कि इलाके में पांच सरकारी स्कूल, एक अस्पताल और दो ओवरहेड पानी की टंकियां हैं.

    आगे कहा गया है कि "याचिकाकर्ताओं और उनके पूर्वजों के लंबे समय से स्थापित भौतिक कब्जे, जिनमें से कुछ भारतीय स्वतंत्रता की तारीख से भी पहले के हैं, को राज्य और उसकी एजेंसियों द्वारा मान्यता दी गई है, और उन्हें गैस और पानी के कनेक्शन और यहां तक ​​कि उनके आवासीय पते को स्वीकार करते हुए आधार कार्ड नंबर भी दिए गए हैं." 

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