महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में बसे बांग्लादेशी हिंदू जमीन, बिजली समेत संकटों से जूझ रहे, मांगी नागरिकता

    निखिल भारत बंगाली शरणार्थी समन्वय समिति पिछले कई सालों से शरणार्थी बंगाली हिंदुओं के लिए लड़ रही हैं और उनकी मांग है कि सरकार उन्हें न्याय दे.

    महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में बसे बांग्लादेशी हिंदू जमीन, बिजली समेत संकटों से जूझ रहे, मांगी नागरिकता
    महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में रह रहे बांग्लादेशी हिंदू | Photo- ANI

    गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) : बांग्लादेश से आकर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में बसे हिंदू शरणार्थियों की आबादी करीब 50 हजार हो गई है. नक्सल प्रभावित इलाके में इन लोगों के लिए गुजारा करना बड़ी चुनौती रही है. ये लोग सालों से सड़क, बिजली, शिक्षा और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहे हैं. ये अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. ये लोग जमीन का मालिकाना हक, बंगाली मीडियम में शिक्षा का अधिकार, जाति प्रमाण पत्र, आरक्षण और नागरिकता के अधिकार हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

    सीएए लागू होने के बाद इन लोगों के लिए नागरिकता हासिल करना और भी मुश्किल हो गया है.

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    इन हिंदुओं ने कहा- वे सीएए के फैसले से असंतुष्ट हैं

    निखिल भारत बंगाली शरणार्थी समन्वय समिति पिछले कई सालों से शरणार्थी बंगाली हिंदुओं के लिए लड़ रही हैं और उनकी मांग है कि सरकार उन्हें न्याय दे.

    न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए निखिल भारत बंगाली शरणार्थी समन्वय समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुबोध बिस्वास ने कहा, "कोई भी अपना देश नहीं छोड़ना चाहता. बांग्लादेश के हिंदू भारत को अपनी मां मानते हैं, यही वजह है कि वे महाराष्ट्र आए. अब उन्हें आश्चर्य है कि हमारे साथ भेदभाव क्यों हो रहा है. हमारे पास भूमि स्वामित्व, जाति प्रमाण पत्र या नागरिकता नहीं है. हम बहुत संघर्ष कर रहे हैं. हम सीएए की शर्तों को पूरा नहीं कर सकते. हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर भरोसा करते हैं. हालांकि, हम सीएए के फैसलों से असंतुष्ट हैं."

    जमीन, भोजन समेत रहने के तमाम संकटों से जूझ रहे

    शरणार्थी बिधान बेपारी ने कहा, "हम 1964 में यहां आए थे. बांग्लादेश हमारे लिए सुरक्षित नहीं था. करीब 20 लाख लोग आए. कुछ लोग 1964 से पहले आए. वे अलग-अलग राज्यों में रहने लगे. कई लोग पश्चिम बंगाल में भी बस गए. सरकार ने 1974 तक कई लोगों को बसाया. उस समय हालात बहुत खराब थे. कुछ भी नहीं उगाया जा सकता था और खाने के लिए कुछ भी नहीं था. यह इलाका जंगली जानवरों से भरा हुआ था. धीरे-धीरे हमने जंगल साफ किए और चीजें उगाना शुरू किया. हालांकि, हम कुछ बुनियादी संकटों से जूझ रहे हैं. हममें से 80 फीसदी लोगों के पास नागरिकता नहीं है. देश को 1947 में आजादी मिली, लेकिन हमें नहीं लगता कि हमें कोई आजादी मिली है. हमें नागरिकता दी जानी चाहिए. हमें जाति प्रमाण पत्र दिए जाने चाहिए. सरकार ने हमें जो जमीन दी है, उसे कानूनी तौर पर हमें हस्तांतरित किया जाना चाहिए. हमें लगता है कि हमें न्याय मिलना चाहिए."

    एक अन्य शरणार्थी महारानी शुकेन ने कहा, "मैं एक साल की थी जब मेरे पिता हमें बांग्लादेश में हिंसा से बचने के लिए भारत ले आए. जब ​​हम यहां आए, तो हमें भोजन नहीं मिला. हमें जमीन और जानवर दिए गए, लेकिन हम गरीब ही रहे. हमें जाति प्रमाण पत्र नहीं दिया गया है. हमें दी गई जमीन समय के साथ बंटती रही. हम केंद्र से जाति प्रमाण पत्र देने का अनुरोध कर रहे हैं."

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