अरब देश नहीं चाहते पाकिस्तान युद्ध में पड़े, भारत के साथ जंग हुई तो मुस्लिम देशों के लिए क्यों है खतरा?

    भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव न केवल इस क्षेत्र की शांति के लिए खतरा है, बल्कि इसका असर उन क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है जो पहले से ही अस्थिर हैं.

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    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    दक्षिण एशिया में एक बार फिर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव न केवल इस क्षेत्र की शांति के लिए खतरा है, बल्कि इसका असर उन क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है जो पहले से ही अस्थिर हैं. इनमें सबसे अहम है मध्य पूर्व—एक ऐसा इलाका जो गाजा संघर्ष, ईरान-अमेरिका टकराव और इजराइल के खिलाफ अरब देशों की बढ़ती नाराजगी से जूझ रहा है.

    इस संवेदनशील समय में पाकिस्तान का किसी बड़े युद्ध में उलझना अरब देशों के लिए भी एक रणनीतिक संकट खड़ा कर सकता है. कारण साफ है—पाकिस्तान सिर्फ एक दक्षिण एशियाई शक्ति नहीं, बल्कि अरब देशों का सैन्य सहयोगी भी है.

    अरब देशों के साथ पाकिस्तान के गहरे सैन्य रिश्ते

    पाकिस्तान की सेना वर्तमान में लगभग 22 अरब देशों में सक्रिय है, जहां उसके सैन्य अधिकारी प्रशिक्षण, रणनीति और सुरक्षा सलाह की भूमिका निभाते हैं. खाड़ी देशों जैसे सऊदी अरब और यूएई के पास युद्ध का अधिक अनुभव नहीं है, जिससे वे सुरक्षा के लिए पाकिस्तान पर निर्भर हैं.

    खासतौर पर जब ईरान, यमन के हूती विद्रोही और इस्लामिक स्टेट जैसे खतरे सिर उठा रहे हों, तब इन देशों के लिए एक विश्वसनीय सैन्य साझेदार की भूमिका में पाकिस्तान की उपस्थिति और महत्वपूर्ण हो जाती है.

    इस्लामी दुनिया में पाकिस्तान की विशेष भूमिका

    पाकिस्तान खुद को मुस्लिम देशों के बीच एक सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित करता रहा है. 50 से अधिक मुस्लिम देशों का समूह OIC (ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन) में भी पाकिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. पाकिस्तान का एकमात्र इस्लामी परमाणु शक्ति होना, उसे ईरान जैसे क्षेत्रीय विरोधियों के मुकाबले सऊदी अरब जैसे देशों के लिए और भी मूल्यवान बनाता है.

    इतिहास गवाह है कि 1967 और 1973 के अरब-इजराइल युद्धों से लेकर 1990 के खाड़ी युद्ध तक, पाकिस्तान की सेना ने सक्रिय भूमिका निभाई है. विशेषकर जब इराक ने कुवैत पर हमला किया था, तब पाकिस्तान ने सऊदी अरब की सुरक्षा के लिए हजारों सैनिक भेजे थे.

    पाकिस्तान के अस्थिर होने से अरब देशों पर खतरा

    अगर भारत-पाक के बीच युद्ध होता है, तो पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान हो सकता है. ऐसे में उसकी सैन्य क्षमताएं कमजोर पड़ेंगी, जिसका सीधा असर अरब देशों की सुरक्षा रणनीति पर पड़ेगा. अरब देशों के पास अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए पाकिस्तान जैसा सहयोगी होना एक रणनीतिक ज़रूरत बन चुका है.

    वर्तमान में सऊदी अरब, कतर और यूएई जैसे देश भारत-पाक तनाव पर शांति की अपील कर चुके हैं. उनका यह रुख सिर्फ कूटनीतिक नहीं बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी अहम है.

    ईरान का बढ़ता आक्रामक रुख और अरब देशों की चिंता

    ईरान पहले ही चेतावनी दे चुका है कि यदि उसके खिलाफ अमेरिकी या इजराइली हमलों में किसी अरब देश की भूमि का इस्तेमाल होता है, तो वह उन्हें भी निशाना बनाएगा. ऐसे में अरब देशों के लिए पाकिस्तान का मजबूत बने रहना और भी ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि वे न तो युद्ध के लिए तैयार हैं और न ही उनके पास पर्याप्त सैन्य अनुभव है.

    वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत-पाक युद्ध का असर

    आज दुनिया पहले ही कई बड़े संघर्षों से गुजर रही है—यूक्रेन युद्ध, सुडान में गृह संघर्ष, गाजा-पट्टी का युद्ध, चीन-ताइवान तनाव और अमेरिका-ईरान टकराव. ऐसे में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध का अर्थ है एक और बड़े संकट की शुरुआत, जिससे एशिया और मध्य पूर्व की सुरक्षा संरचना बुरी तरह प्रभावित हो सकती है.

    संयुक्त राष्ट्र समेत कई वैश्विक संगठन इस स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं और चिंता जता चुके हैं कि इस युद्ध में बड़ी संख्या में नागरिकों की जान जा सकती है—क्योंकि यह इलाका दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में आता है.

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