नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच जारी सैन्य तनाव के बीच एक सकारात्मक पहल के तहत दोनों देशों ने संघर्ष विराम (Ceasefire) पर सहमति जताई है. यह समझौता ऐसे समय आया है जब सीमा पर हालात तनावपूर्ण थे. इस घटनाक्रम के साथ ही “सीजफायर” शब्द एक बार फिर सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया है. लेकिन आखिर यह सीजफायर है क्या? और इसका कानूनी, सामरिक और ऐतिहासिक महत्व क्या है?
अस्थायी या स्थायी शांति की पहल
"Ceasefire" एक सैन्य और कूटनीतिक शब्द है, जिसका अर्थ होता है—युद्ध या सशस्त्र संघर्ष को अस्थायी या स्थायी रूप से रोकना.
यह एक आपसी सहमति पर आधारित समझौता होता है, जो सरकारों, सैन्य कमांडरों या अंतरराष्ट्रीय संगठनों की पहल पर लागू हो सकता है. इसमें दोनों पक्ष यह तय करते हैं कि वे आगे किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई को रोक देंगे.
सीजफायर किसी औपचारिक संधि के तहत भी हो सकता है और कभी-कभी सिर्फ मौखिक या लिखित सहमति से भी लागू किया जा सकता है.
भारत-पाकिस्तान सीजफायर: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1949 की शुरुआत:
भारत और पाकिस्तान के बीच पहला औपचारिक संघर्ष विराम 1947-48 के कश्मीर युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से 1 जनवरी 1949 को हुआ. इसके तहत एक रेखा खींची गई, जिसे बाद में “सीजफायर लाइन” कहा गया.
LOC की स्थापना:
1972 के शिमला समझौते के बाद, सीजफायर लाइन को लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) का नाम दिया गया और इसे अंतरराष्ट्रीय सहमति के तहत लागू किया गया.
सीजफायर उल्लंघन: एक जटिल वास्तविकता
हालांकि, भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर समझौतों के बावजूद उल्लंघन की घटनाएं बार-बार सामने आती रही हैं. विशेषकर पाकिस्तान की ओर से LOC पर गोलीबारी, घुसपैठ और ड्रोन गतिविधियों जैसी कार्रवाइयों ने सीजफायर की शर्तों को कमजोर किया है.
LOC पर बैरियर्स और पाकिस्तान की आपत्ति
2003 का महत्वपूर्ण सीजफायर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में नवंबर 2003 में भारत और पाकिस्तान ने एक बार फिर LOC और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर समग्र सीजफायर की घोषणा की. इस फैसले से सियाचिन ग्लेशियर तक शांति की पहल की गई और यह एक राजनयिक उपलब्धि मानी गई.
समझौते के तहत क्या होता है
वर्तमान संदर्भ में महत्व:
अब जब 2025 में एक बार फिर दोनों देशों ने संघर्ष विराम पर सहमति जताई है, यह ज़रूरी है कि इस समझौते को लंबी अवधि की स्थिरता और विश्वास निर्माण की दिशा में पहला कदम माना जाए.
यदि इसका पालन सख्ती से किया जाए, तो यह दोनों देशों की जनता, सीमावर्ती नागरिकों और क्षेत्रीय शांति के लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकता है.
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