लद्दाख में आकाश का अपग्रेड वर्जन तैनात, समंदर में अग्नि-1 और पृथ्वी-2 मिसाइल की दहाड़ से कांपे चीन-पाकिस्तान

    पाकिस्तान ने जब अपने ‘नूर खान’ जैसे अहम सैन्य एयरबेस पर भारत के टारगेट को महसूस किया, तो सारा शांति-पाठ अचानक से ज़ुबान पर लौट आया.

    Upgraded version of Akash deployed in Ladakh Agni1 Prithvi2 missiles
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    पहलगाम हमले के बाद भारत अब वैसा भारत नहीं रहा, जो सिर्फ निंदा में उलझा रहता था. इस बार गोली का जवाब गोलियों से आया, और संदेश सीधा दिया गया - अब चुप नहीं बैठेंगे. पाकिस्तान ने जब अपने ‘नूर खान’ जैसे अहम सैन्य एयरबेस पर भारत के टारगेट को महसूस किया, तो सारा शांति-पाठ अचानक से ज़ुबान पर लौट आया. भारत ने भी संकेत दे दिया कि वो शांति के खिलाफ नहीं, लेकिन ये ठहराव है... अंत नहीं.

    भारत का दोतरफा वार: आसमान से समंदर तक

    एक तरफ भारत ने लद्दाख में ‘आकाश प्राइम’ को तैनात किया — वही आकाश डिफेंस सिस्टम जो पहले से कहीं ज़्यादा तेज़, ज़्यादा दूर तक और कहीं ज़्यादा सटीक हो गया है. दूसरी तरफ, ओडिशा तट से अग्नि-I और पृथ्वी-II मिसाइलों का एक के बाद एक सफल परीक्षण कर डाला, ताकि कोई ये न समझे कि बात सिर्फ रक्षा की है. ये तैयारी है... किसी भी मोर्चे के लिए.

    आकाश अब और ज्यादा तेज़, और ज्यादा खतरनाक

    जो ‘आकाश’ कभी भारत का भरोसेमंद एयर डिफेंस था, वो अब ‘प्राइम’ बन चुका है. 25-30 किलोमीटर की रेंज, बुलेट जैसी सटीकता, और रिएक्शन टाइम इतना तेज़ कि दुश्मन की मिसाइल हवा में ही राख बन जाए. इसे अब सीधे LAC के पास तैनात किया गया है, जहां चीन अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहा है. यह तैनाती सिर्फ सुरक्षा के लिए नहीं, एक सीधा संदेश है — देख रहे हैं, और तैयार हैं.

    चीन को भी अलर्ट मिला है

    LAC पर चीनी सेना जहां अपनी एयरस्ट्रिप्स और रडार एक्टिव कर रही है, भारत ने उसी मोर्चे पर आकाश प्राइम से संतुलन बैठा दिया है. किसी को गलतफहमी न हो — भारत सिर्फ रिएक्ट नहीं करता, अब प्री-इंप्लीमेंटेशन की रणनीति पर चल रहा है.

    मिसाइल टेस्टिंग या ताकत की घोषणा?

    17 जुलाई को भारत ने अपनी दो क्लासिक शॉर्ट-रेंज बैलिस्टिक मिसाइलों, अग्नि-I और पृथ्वी-II का सफल परीक्षण किया. अग्नि-I की रेंज 700 से 900 किलोमीटर, और पेलोड क्षमता 1,000 किलो तक. वहीं पृथ्वी-II, 350 किलोमीटर तक दुश्मन को भेद सकती है, 500 किलो पेलोड लेकर. और ये सब ऐसे समय में जब दो महीने पहले भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव अपने चरम पर था.

    स्ट्रैटेजिक फोर्सेस कमांड का मास्टरस्ट्रोक

    इस पूरे अभ्यास की जिम्मेदारी स्ट्रैटजिक फोर्सेज कमांड ने ली और सब कुछ ऑपरेशनल और टेक्निकल स्टैंडर्ड्स के मुताबिक रहा. कहने का मतलब साफ है - ये सिर्फ रूटीन टेस्टिंग नहीं थी. यह ताकत के प्रदर्शन की एक सोची-समझी टाइमिंग थी.

    हाई एल्टिट्यूड पर मार करने वाला सिस्टम

    आकाश प्राइम को लद्दाख जैसे हाई एल्टिट्यूड (4,500 मीटर से अधिक) इलाकों के लिए तैयार किया गया है. और जब 16 जुलाई को इसने दो हाई-स्पीड ड्रोन जैसे हवाई टारगेट को एक झटके में ध्वस्त किया, तो ये स्पष्ट हो गया कि भारत अब ऊंचाई पर भी कमजोर नहीं.

    रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर: ‘आत्मनिर्भर भारत’ की जीत

    इस सिस्टम में जो रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर है, वो पूरी तरह से भारत में ही विकसित किया गया है. यानी अब हमें बाहर से इनपुट लेने की ज़रूरत नहीं. दुश्मन की टेक्नोलॉजी को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की काबिलियत भारत के पास खुद की है.

    बात सिर्फ मिसाइलों की नहीं, इरादों की है

    भारत अब सिर्फ अपने सिस्टम्स को टेस्ट नहीं कर रहा, वो अपने इरादों को दोहरा रहा है. एक तरफ ये टेस्टिंग्स हैं, दूसरी तरफ शांति की बात भी है. पर कोई गलती न करे - शांति अब भारत की मजबूरी नहीं, चुनाव है.

    क्यों जरूरी है ये तैनाती?

    आज जब हर तरफ सैन्य तनाव बढ़ रहा है, और दुश्मन चुपचाप अपनी तैयारियों को धार दे रहा है, तो भारत का ये फैसला दूरदर्शी ही नहीं, ज़रूरी भी है. चाहे LAC हो या LoC, भारत अब पहले जैसा नहीं सोचता — अब वक्त है तैयार रहने का, और जरूरत पड़ी तो आगे बढ़कर जवाब देने का.

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