नई दिल्ली : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने शुक्रवार को भाषाई विविधता और प्रतिनिधित्व पर चिंता जताई और चेन्नई दूरदर्शन के स्वर्ण जयंती समारोह के साथ-साथ हिंदी माह के समापन समारोह के आयोजन की कड़ी निंदा की.
स्टालिन ने एक्स पर पोस्ट किया, "मैं चेन्नई दूरदर्शन के स्वर्ण जयंती समारोह के साथ-साथ हिंदी माह के समापन समारोह के आयोजन की कड़ी निंदा करता हूं. माननीय @PMOIndia, भारत का संविधान किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं देता है. एक बहुभाषी राष्ट्र में, गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी माह मनाना अन्य भाषाओं को नीचा दिखाने के प्रयास के रूप में देखा जाता है. इसलिए, मेरा सुझाव है कि गैर-हिंदी भाषी राज्यों में इस तरह के हिंदी-ओरिएंटेड कार्यक्रमों को आयोजित करने से बचा जाना चाहिए, इसके बजाय, संबंधित राज्यों में स्थानीय भाषा माह के उत्सव को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए."
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संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं : सीएम स्टालिन
उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि भारतीय संविधान किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं देता है, और हिंदी व अंग्रेजी केवल आधिकारिक उद्देश्यों के लिए हैं. उन्होंने गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी भाषा के कार्यक्रमों से बचने का सुझाव दिया.
उन्होंने लिखा, "यह घोषणा की गई है कि हिंदी माह का समापन समारोह और चेन्नई टेलीविजन का स्वर्ण जयंती समारोह आज शाम चेन्नई स्थित दूरदर्शन तमिल में आयोजित किया जाएगा, और तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि विशेष अतिथि होंगे. हिंदी थोपने के इस प्रयास की कड़ी निंदा की जाती है. भारत में 122 भाषाएं हैं, जो काफी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती हैं और 1599 अन्य भाषाएं हैं. जब भारत विविधताओं वाला देश है, तो केवल एक भाषा को जश्व मनाने का कोई औचित्य नहीं है. जिस देश में 1700 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, खासकर उस राज्य में जहां दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल केवल हिंदी में बोली जाती है तो इससे देश की विविधता प्रभावित होगी. इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार नहीं होना चाहिए."
सीएम स्टालिन ने इसे बताया बाकी भाषाओं को नीचा दिखाने वाला
उन्होंने कहा कि भारत जैसे बहुभाषी देश में गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी माह मनाना बाकी भाषाओं को नीचा दिखाने का प्रयास माना जाता है. अपने पत्र में स्टालिन ने आगे सुझाव दिया कि यदि संभव हो तो गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी भाषा-केंद्रित कार्यक्रमों से बचा जा सकता है या यदि अनुमति दी जाए तो स्थानीय भाषा का उत्सव भी समान गर्मजोशी के साथ संबंधित राज्यों में मनाया जाना चाहिए.
स्टालिन ने सुझाव दिया, "यदि केंद्र सरकार अभी भी ऐसे आयोजन करना चाहती है तो वह भाषाओं के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय भाषा माह भी मना सकती है."
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने लिखा कि भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है और यदि हिंदी माह मनाया जा रहा है तो तमिल भाषा के साथ भी ऐसा ही किया जाना चाहिए.
स्टालिन ने चेन्नई टेलिविजन पर हिंदी माह के समापन मनाने को रद्द करने की मांग की
"चाहे केंद्र में कांग्रेस की सरकार हो या भारतीय जनता पार्टी की, हिंदी थोपने में कोई अंतर नहीं है. आज चेन्नई टेलीविजन की स्वर्ण जयंती भी मनाई जा रही है, पिछले पचास वर्षों में तमिल के साथ क्या किया है? चेन्नई टीवी एक कार्यक्रम आयोजित कर सकता था जिसमें यह बताया जा सके कि तमिल भाषा किस विधा में सर्वश्रेष्ठ है. इसके अलावा, केवल हिंदी का जश्न मनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. इसलिए, मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आज चेन्नई टेलीविजन स्टेशन पर आयोजित होने वाले दो समारोहों में हिंदी माह समापन समारोह को रद्द कर दिया जाए."
इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि देश की सरकार को संबंधित राज्यों में मान्यता प्राप्त शास्त्रीय भाषाओं की समृद्धि का जश्न मनाने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, जिससे लोगों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बढ़ाने में मदद मिल सके.
मुख्यमंत्री ने कहा- जितना हक हिंदी को है उतना ही तमिल भाषा को भी
"भारत में राष्ट्रीय भाषा जैसी कोई चीज नहीं है. यदि हिंदी दिवस और हिंदी माह मनाना उचित है क्योंकि हिंदी को 14 सितंबर 1949 को देश की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था, तो उत्सव का वही अधिकार तमिल भाषा को दिया जाना चाहिए. जब 26.01.1950 को भारत का संविधान अपनाया गया था, तो तमिल सहित 14 भाषाओं को इसकी 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया था. केंद्र सरकार को उस दिन को तमिल भाषा दिवस के रूप में घोषित करना चाहिए था. 12 अक्टूबर 2004 को तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया था. केंद्र सरकार को उस दिन को शास्त्रीय तमिल दिवस के रूप में घोषित करना चाहिए था. ऐसा किए बिना, केवल हिंदी के लिए समारोह आयोजित करना अन्य भाषाओं को बदनाम करने के समान है."
इससे पहले आज, पट्टाली मक्कल काची के संस्थापक एस रामदास ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में लिखा था कि चेन्नई में हिंदी माह का उत्सव हिंदी को थोपने का एक ज़बर्दस्त प्रयास था.
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