OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कंपनियों से नोटिस जारी कर मांगा जवाब

    सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी (OTT) और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट के प्रसार को रोकने संबंधी याचिका पर सोमवार को केंद्र सरकार और संबंधित कंपनियों को नोटिस जारी किया.

    Supreme Court takes strict action on pornographic content on OTT and social media
    सुप्रीम कोर्ट/Photo- ANI

    नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी (OTT) और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट के प्रसार को रोकने संबंधी याचिका पर सोमवार को केंद्र सरकार और संबंधित कंपनियों को नोटिस जारी किया. न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस मामले को "गंभीर चिंता" करार देते हुए कहा कि यह विषय कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है, बावजूद इसके अदालत ने प्रारंभिक सुनवाई के लिए नोटिस जारी करने का निर्णय लिया.

    केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को अवगत कराया कि ओटीटी और सोशल मीडिया सामग्री को नियंत्रित करने के लिए पहले से कुछ नियम लागू हैं और सरकार इस दिशा में अतिरिक्त रेगुलेशन पर भी विचार कर रही है.

    याचिकाकर्ता की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बिना किसी सेंसरशिप के अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट व्यापक रूप से उपलब्ध है, जो समाज की नैतिकता और युवाओं की मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है.

    याचिका में क्या मांग की गई है?

    याचिका में सरकार से मांग की गई है कि वह एक नेशनल कंटेंट कंट्रोल अथॉरिटी का गठन करे, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर प्रकाशित हो रही सामग्री की निगरानी कर सके. याचिकाकर्ता का आरोप है कि कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े तत्व भी देखे जा रहे हैं, जो अपराध दर को बढ़ावा देने वाला एक चिंताजनक संकेत है.

    इसके अतिरिक्त, याचिका में एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति के गठन की भी मांग की गई है, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करें. यह समिति सेंसर बोर्ड की तर्ज पर ओटीटी और सोशल मीडिया कंटेंट के प्रकाशन को प्रमाणित करने तक निगरानी रखे, जब तक कि व्यापक विनियमन लागू न हो जाए.

    याचिका में यह भी आग्रह किया गया है कि सरकार भारतीय पुनर्वास परिषद से मान्यता प्राप्त मनोवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर अश्लील सामग्री के सामाजिक प्रभाव का अध्ययन करे और एक समग्र रिपोर्ट तैयार करे.

    अदालत की प्रारंभिक टिप्पणी

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कंटेंट रेगुलेशन एक नीतिगत निर्णय है, जिसमें कार्यपालिका को पहल करनी चाहिए. अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि न्यायपालिका पर कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करने के आरोप अक्सर लगाए जाते हैं, इसलिए इस मामले में संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है.

    ये भी पढ़ें- BBC को सख्त चेतावनी, शोएब अख्तर समेत 17 यूट्यूब चैनल बैन... भारत के एक्शन से फिर थर्राया पाकिस्तान!