वेटिकन सिटी रविवार को उम्मीद और भावनाओं से भर गया, जब पोप लियो XIV ने सेंट पीटर बेसिलिका की बालकनी से अपना पहला आधिकारिक संबोधन दिया. इस ऐतिहासिक क्षण में उन्होंने एक स्पष्ट और करुणामय संदेश दिया— दुनिया को अब युद्ध नहीं, बल्कि शांति की ज़रूरत है.
हाल ही में दिवंगत पोप फ्रांसिस के बाद चुने गए पोप लियो XIV पहले अमेरिकी पोप हैं, और उनके पहले ही संबोधन ने वैश्विक समुदाय को झकझोर कर रख दिया. उन्होंने अपनी बात सीधे शक्तिशाली देशों के नेताओं से शुरू की और उन्हें टुकड़ों में बंटे "तीसरे विश्व युद्ध" के खतरे से आगाह किया.
भारत-पाकिस्तान का ज़िक्र, गाजा और यूक्रेन पर भी चिंता
अपने संबोधन में पोप ने विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और संघर्ष विराम का जिक्र करते हुए कहा, "मैं इस समझौते का स्वागत करता हूं और उम्मीद करता हूं कि यह एक स्थायी शांति का मार्ग प्रशस्त करेगा." उनके ऐसा कहने पर वहां मौजूद लोगों में किसी ने भारतीय तिरंगा लहराया, जो इस ऐतिहासिक अपील का प्रतीक बन गया.
गाजा और यूक्रेन के हालात पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि "इन दोनों क्षेत्रों में हो रही मानवीय त्रासदी हमें विचलित कर देनी चाहिए." गाज़ा के लिए उन्होंने तत्काल युद्धविराम, सभी बंधकों की रिहाई और नागरिकों तक "अप्रतिबंधित मानवीय सहायता" की मांग की.
"यूक्रेन के लिए मेरा हृदय रोता है"
पोप लियो XIV ने कहा, "मैं अपने दिल में यूक्रेनी लोगों की पीड़ा को लिए फिरता हूं. सभी कैदियों को रिहा किया जाना चाहिए, और बच्चों को उनके परिवारों के पास लौटाया जाना चाहिए. यह समय है कि हम एक सच्ची और टिकाऊ शांति की दिशा में कदम बढ़ाएं."
वेटिकन से उठी शांति की पुकार
"अब और युद्ध नहीं" — यह सिर्फ एक अनुरोध नहीं था, बल्कि एक नैतिक चेतावनी थी, एक इंसानियत से भरी पुकार. पोप लियो XIV का यह पहला संदेश इस बात का संकेत है कि उनका नेतृत्व न केवल धर्म के क्षेत्र में, बल्कि वैश्विक इंसानियत की रक्षा में भी निर्णायक भूमिका निभाने जा रहा है.
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