ममता बनर्जी ने PM Modi को पत्र लिखकर 3 नये आपराधिक कानूनों को लागू करने से रोका, जानें इनके बारे में

    पिछली मोदी सरकार ने भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम हैं, को भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लाया है.

    ममता बनर्जी ने PM Modi को पत्र लिखकर 3 नये आपराधिक कानूनों को लागू करने से रोका, जानें इनके बारे में
    24 मई 2024 को बंगाल के दक्षिण परगना में एक रैली के दौरान ममता बनर्जी, प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo- ANI

    नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तीन आपराधिक कानूनों के क्रियान्वयन को स्थगित करने का आग्रह किया है, जो 1 जुलाई से लागू होने वाले हैं. इन तीनों कानूनों को आपराधिक न्याय को लेकर बड़ा कदम बताया जा रहा है. पिछली मोदी सरकार ने इन्हें क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला कानून बताया था.

    प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में बनर्जी ने कहा कि स्थगन से आपराधिक कानूनों की नए सिरे से संसदीय समीक्षा संभव होगी.

    गौरतलब है कि पिछली मोदी सरकार ने इन कानूनों को लाया है और ये नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम हैं, जो कि क्रमशः औपनिवेशिक काल के भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे.

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    1 जुलाई से लागू होंगे तीन नए आपराधिक कानून, ये होगा बदलाव

    आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए एक ऐतिहासिक कदम के रूप में, तीन नए अधिनियमित कानून - भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम हैं जो कि 1 जुलाई से लागू होंगे. पिछले साल अगस्त में मानसून सत्र के दौरान संसद में पेश किए गए ये कानून क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे.

    आइए जानते हैं क्या हैं ये तीनों कानून-

    पहला कानून- भारतीय न्याय संहिता (BNS)

    भारतीय न्याय संहिता 163 साल पुरानी आईपीसी की जगह लेगी, जिससे दंड कानून में महत्वपूर्ण बदलाव आएंगे. धारा 4 के तहत सजा के रूप में सामुदायिक सेवा उठाया गया एक अहम कदम है. हालांकि, की जाने वाली सामुदायिक सेवा की सटीक प्रकृति अभी भी साफ नहीं या स्पेसिक नहीं बताई गई है.

    यौन अपराधों के लिए कड़े उपाय किए गए हैं, कानून में उन लोगों के लिए 10 साल तक की कैद और जुर्माना निर्धारित किया गया है जो बिना किसी इरादे के शादी का वादा करके धोखे से यौन संबंध बनाते हैं. नया कानून धोखे देने पर भी ध्यान देता है, जिसमें किसी की पहचान छिपाकर रोजगार, पदोन्नति या शादी से संबंधित झूठे वादे शामिल हैं.

    संगठित अपराध पर अब व्यापक कानूनी जांच का सामना करना होगा, जिसमें अवैध गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है. इन गतिविधियों में अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, जबरन वसूली, भूमि हड़पना, कांट्रैक्ट किलिंग, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध और व्यक्तियों, ड्रग्स, हथियारों या अवैध वस्तुओं या सेवाओं की तस्करी शामिल है. संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य के तौर पर या ऐसे सिंडिकेट की ओर से मिलकर काम करने वाले व्यक्तियों या समूहों द्वारा वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव तस्करी करने पर कठोर दंड का सामना करना पड़ेगा.

    सीधे या अप्रत्यक्ष फायदे के लिए हिंसा, धमकी, डराने-धमकाने, जबर्दस्ती या अन्य गैरकानूनी तरीकों से अंजाम दिए गए इन अपराधों के लिए कड़ी सजा दी जाएगी.

    राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्यों को, एक आतंकवादी कृत्य जैसी गतिविधि के रूप में परिभाषित करता है जो लोगों में आतंक फैलाने के इरादे से भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता या आर्थिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाला हो.

    कानून में भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) के गंभीर मुद्दे पर भी ध्यान दिया गया है. इसमें कहा गया है, "जब पांच या अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य के आधार पर हत्या करता है, तो ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी देना होगा."

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)

    1973 की दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) कानून में अहम बदलाव करने वाला है. इसमें एक महत्वपूर्ण प्रावधान विचाराधीन कैदियों के लिए है, जो पहली बार अपराध करने वालों को उनकी अधिकतम सजा का एक तिहाई हिस्सा पूरा करने के बाद जमानत पाने की अनुमति देता है, आजीवन कारावास या कई आरोपों वाले मामलों को छोड़कर, जिससे विचाराधीन कैदियों के लिए अनिवार्य जमानत के लिए सहमति पाना कठिन हो जाता है.

    कम से कम 7 साल के कारावास की सजा वाले अपराधों के लिए अब फॉरेंसिक जांच अनिवार्य है, यह सुनिश्चित करते हुए कि फॉरेंसिक विशेषज्ञ अपराध स्थलों पर साक्ष्य जमा और रिकॉर्ड कर सकें. यदि किसी राज्य में फॉरेंसिक सुविधा नहीं है, तो उसे दूसरे राज्य में इस सुविधा का इस्तेमाल करना होगा.

    BNSS में होने वाले प्रमुख बदलाव

    पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (PRS Legislative Research) के अनुसार, नया कानून भारत में आपराधिक न्याय प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और तेज करने के मकसद से अहम संशोधन करता है.

    प्रमुख परिवर्तन इस प्रकार हैं:

    प्रक्रियाओं के लिए समयसीमा: विधेयक विभिन्न कानूनी प्रक्रियाओं के लिए खास समयसीमा तय करता है. इन प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:
    - बलात्कार पीड़ितों की जांच करने वाले चिकित्सकों को 7 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट जांच अधिकारी को देनी होगी.

    - दलीलें पूरी होने के 30 दिन के भीतर फैसला सुनाया जाना चाहिए, जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है.

    - पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में सूचित किया जाना चाहिए.

    - सत्र न्यायालयों को ऐसे आरोपों पर पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करना जरूरी है.

    न्यायालयों का पदानुक्रम (हयरार्की)

    दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) भारत में आपराधिक मामलों का फैसला करने के लिए न्यायालयों का एक पदानुक्रम बनाने वाली है. इनमें शामिल हैं:

    मजिस्ट्रेट की अदालतें: ये अधीनस्थ न्यायालय अधिकांश आपराधिक मामलों की सुनवाई संभालते हैं.

    सत्र न्यायालय: सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में ये न्यायालय मजिस्ट्रेट न्यायालयों से अपील सुनते हैं.

    उच्च न्यायालय: इन न्यायालयों के पास आपराधिक मामलों और अपीलों की सुनवाई व फैसला करने का अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र है.

    सर्वोच्च न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालयों से की गई अपील सुनता है और कुछ मामलों में अपने मूल अधिकार क्षेत्र का भी प्रयोग करता है.

    सीआरपीसी राज्य सरकारों को 10 लाख से अधिक आबादी वाले किसी भी शहर या कस्बे को महानगरीय क्षेत्र के रूप में नामित करने का अधिकार देता है, जिससे महानगर मजिस्ट्रेट की स्थापना होती है. नए विधेयक में इस प्रावधान को हटा दिया गया है.

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम

    साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के संबंध में महत्वपूर्ण अपडेट पेश किए गए हैं. नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU) के कानून के प्रोफेसर प्रणव वर्मा और अनुपमा शर्मा के अनुसार, नया विधेयक इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर नियमों को सुव्यवस्थित करता है और द्वितीयक साक्ष्य के दायरे का विस्तार करता है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के लिए विस्तृत खुलासे के प्रारूप की जरूरत दी गई है, जो केवल हलफनामे से आगे बढ़कर है.

    कानून में ऐसा कहा गया है, “यह कानून में एक नई अनुसूची जोड़ता है, जो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की सामग्री की वास्तविकता के बारे में केवल हलफनामे और स्व-घोषणा द्वारा शासित प्रमाण पत्र के विस्तृत खुलासे के प्रारूप को तय करता है. दूसरे साक्ष्य की परिभाषा का विस्तार किया गया है, और विधेयक लिखित स्वीकारोक्ति को दूसरे साक्ष्य के रूप में शामिल करके साक्ष्य अधिनियम की एक खामी को दूर करने वाला है.”

    इन प्रगति के बावजूद, प्रोफेसरों ने ध्यान दिया कि कई बदलावों में "मौजूदा प्रावधानों को फिर से संख्याबद्ध करना या पुनर्संरचना करना" शामिल है, यह सुझाव देते हुए कि इन्हें नए कानून के बजाय संशोधनों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता था. वे मसौदा तैयार करने में हुई गलतियों और गलत प्रावधानों को भी उजागर करते हैं, जो मूल कानून के एप्लीकेशन को लेकर भ्रम पैदा कर सकते हैं.

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