बेंगलुरु/नई दिल्ली : कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाला मामले में दायर याचिका खारिज कर दी है. यह याचिका मामले में उनकी पत्नी को भूखंड आवंटित करने में कथित अनियमितता को लेकर राज्यपाल थावरचंद गहलोत की ओर से दी गई जांच को मंजूरी के खिलाफ दायर की गई थी.
अपने फैसले में न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि अभियोजन के लिए मंजूरी का आदेश राज्यपाल के विवेक का इस्तेमाल न करने से प्रभावित नहीं है.
इससे पहले न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने 12 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
यह भी पढे़ं : 'वापस जाओ, पद छोड़ो', बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर अमेरिका में मोहम्मद यूनुस के खिलाफ नारे
सीएम सिद्धारमैया ने मंजूरी के खिलाफ उठाया था सवाल
अपनी याचिका में सिद्धारमैया ने राज्यपाल द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए के तहत उनके खिलाफ जांच और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत अभियोजन की अनुमति देने की वैधता पर सवाल उठाया था. राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 17 अगस्त को बेंगलुरु के दो सामाजिक कार्यकर्ताओं प्रदीप कुमार एसपी और टीजे अब्राहम और मैसूर स्थित सामाजिक कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा द्वारा दायर आवेदनों पर मंजूरी दी.
आरोप- मुख्यमंत्री की पत्नी अनियमितता के तहत 14 साइटें दी गईं
आरोप है कि MUDA ने मैसूर शहर के प्रमुख स्थान पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी को अवैध रूप से 14 साइटें आवंटित कीं. उच्च न्यायालय ने 19 अगस्त को पारित अपने अंतरिम आदेश में सिद्धारमैया को बेंगलुरु की एक विशेष अदालत को आगे की कार्यवाही स्थगित करने और राज्यपाल द्वारा दी गई मंजूरी के अनुरूप कोई भी जल्दबाजी में कार्रवाई नहीं करने का निर्देश देकर अस्थायी राहत दी थी.
31 अगस्त को कर्नाटक के राज्यपाल के कार्यालय ने राज्य के उच्च न्यायालय को बताया कि मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री के सिद्धारमैया पर मुकदमा चलाने की अनुमति "विचार-विमर्श" के बाद दी गई थी.
भाजपा की राज्य इकाई ने फैसले का स्वागत किया और मांग की कि सिद्धारमैया मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें.
भाजपा ने तत्काल सीएम सिद्धारमैया से इस्तीफे की मांग की
भाजपा की राज्य इकाई ने X पर पोस्ट किया, "सत्यमेव जयते!! यह स्वागत योग्य है कि उच्च न्यायालय ने दलितों की जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करने वाले और गरीबों की जमीन पर कब्जा करने वाले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी है. कांग्रेस नेताओं ने अपने भ्रष्टाचार के संसार को छिपाने के लिए निम्न-स्तरीय राजनीति का सहारा लिया. लेकिन न्यायालय ने राज्यपाल के कदम को बरकरार रखा और दोहराया कि भारत में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं है. अगर सिद्धारमैया को इस देश के कानून, संविधान और न्यायालय का जरा भी सम्मान है, तो उन्हें अपना भ्रष्टाचार जारी नहीं रखना चाहिए और न्यायालय के फैसले के आगे झुकना चाहिए और तत्काल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए."
यह भी पढ़ें : 'एक बोतल भी सही जगह रखी होनी चाहिए', जानें अश्विन ने गंभीर, राहुल द्रविड़ के बीच क्या फर्क बताए
अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई सीनियर वकीलों ने दी मामले में दलीलें
इससे पहले सिद्धारमैया के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई वरिष्ठ वकीलों ने दलीलें दीं, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत की ओर से दलीलें दीं. साथ ही, शिकायतकर्ताओं के वकीलों स्नेहामाई कृष्णा और टीजे अब्राहम ने भी अपनी दलीलें पेश कीं.
कांग्रेस नेताओं ने राज्यपाल के खिलाफ किया था विरोध-प्रदर्शन
अगस्त में, कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दिए जाने पर विवाद के बीच, राज्य के मंत्रियों और कांग्रेस विधायकों ने राज्यपाल गहलोत द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दिए जाने के खिलाफ 'राजभवन चलो' विरोध-प्रदर्शन किया. कांग्रेस ने राज्यपाल पर भेदभावपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाते हुए कहा है कि राज्यपाल के समक्ष कई अन्य मामले भी लंबित हैं, लेकिन उन्होंने उन पर कोई निर्णय नहीं लिया है.
पिछले सप्ताह राज्यपाल ने मुख्य सचिव को लिखा था पत्र
इस बीच, राज्यपाल गहलोत ने पिछले सप्ताह राज्य की मुख्य सचिव शालिनी रजनीश को कथित MUDA घोटाले पर पत्र लिखा और जल्द से जल्द दस्तावेजों के साथ एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी. पत्र में जिक्र है कि मैसूर के पी.एस. नटराज ने 27 अगस्त को एक विस्तृत प्रतिनिधित्व किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण ने मुख्यमंत्री के मौखिक निर्देश पर उनके निर्वाचन क्षेत्र वरुणा और श्रीरंगपट्टन निर्वाचन क्षेत्र में कर्नाटक शहरी विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 15 और 25 का उल्लंघन करते हुए 387 करोड़ रुपये के कार्य किए हैं.
राज्यपाल ने कहा, "याचिकाकर्ता ने यह भी बताया है कि प्राधिकरण में धनराशि उपलब्ध न होने के बावजूद मुख्यमंत्री के मौखिक निर्देश पर निर्णय लिया गया है. साथ ही उन्होंने आरोप लगाया है कि ऐसा करके प्राधिकरण ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है. उन्होंने मामले की जांच सीबीआई से कराने का अनुरोध किया है. चूंकि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, इसलिए मामले की जांच कर जल्द से जल्द विस्तृत रिपोर्ट दस्तावेजों के साथ प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है."
यह भी पढे़ं : PM Modi-बाइडेन ने कहा- हमारी रणनीतिक साझेदारी 21वीं सदी की दुनिया को परिभाषा देगी