नए आपराधिक कानूनों में अननेचुरल सेक्स का प्रावधान हटाने पर PIL, दिल्ली HC ने कहा- सरकार साफ करे रुख

    याचिका में कहा गया है, धारा 377 में पहले "सोडोमी" और "अप्राकृतिक यौन संबंध" को अपराध माना जाता था, लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे आंशिक रूप से अपराधमुक्त कर दिया है.

    नए आपराधिक कानूनों में अननेचुरल सेक्स का प्रावधान हटाने पर PIL, दिल्ली HC ने कहा- सरकार साफ करे रुख
    कोर्ट हैमर की प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo- ANI

    नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से एक जनहित याचिका (PIL) पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा, जिसमें कहा गया है कि नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के समतुल्य (बराबर) प्रावधान का अभाव है.

    याचिका में कहा गया है, धारा 377 में पहले "सोडोमी" (गुदा मैथुन) और "अप्राकृतिक यौन संबंध" को अपराध माना जाता था, लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे आंशिक रूप से अपराधमुक्त कर दिया है.

    कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला भी शामिल हैं, ने भारत सरकार के वकील को जनहित याचिका में उठाई गई शिकायत पर निर्देश प्राप्त करने के लिए 10 दिन का समय दिया है और मामले की अगली सुनवाई 27 अगस्त, 2024 तय की है.

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    बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध पर पूछे सवाल

    सुनवाई के दौरान, पीठ ने पूछा कि क्या भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंधों को एड्रेस करती है और सवाल किया कि क्या बीएनएस से इसके छूट जाने का मतलब यह है कि ऐसे कृत्यों को अब अपराध नहीं माना जाता है. केंद्र के वकील अनुराग अहलूवालिया ने निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा, इस बात पर जोर देते हुए कि इस मुद्दे को आगे बढ़ाया गया है और इस पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है.

    गंटाव्या गुलाटी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि बीएनएस में आईपीसी की धारा 377 के समतुल्य प्रावधान शामिल नहीं है, जो पहले "सोडोमी" और "अप्राकृतिक यौन संबंध" को अपराध मानता था.

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    2018 में इस मामले में दिया गया था फैसला

    धारा 377 को 2018 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (संघ) के ऐतिहासिक मामले में सहमति से समलैंगिक संबंधों के लिए अपराध से मुक्त कर दिया गया था. जनहित याचिका में इस बात पर चिंता जताई गई है कि क्या नया कोड यौन अपराधों से संबंधित सुरक्षा पर पर्याप्त रूप से ध्यान देता या बनाए रखता है, और क्या यह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करना जारी रखता है.

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि बीएनएस में समान प्रावधानों की अनुपस्थिति एक कानूनी फर्क पैदा करती है, जो बिना सहमति वाले यौन संबंंधों के खिलाफ सुरक्षा को हटाकर कमजोर समुदायों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. जनहित याचिका में धारा 377 आईपीसी के तहत पहले की तरह गैर-सहमति वाले यौन कृत्यों के खिलाफ सुरक्षा को अस्थायी रूप से बहाल करने के लिए एक निर्देश और ऐसे कृत्यों के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून प्रवर्तन के लिए आदेश देने की मांग की गई है.

    जनहित याचिका में यह भी घोषणा की मांग की गई है कि समकक्ष प्रावधानों के बिना धारा 377 आईपीसी को बीएनएस द्वारा निरस्त करना असंवैधानिक है और भारत संघ के लिए बीएनएस में संशोधन करने का मैनडेट है, ताकि बिना सहमति वाले यौन कृत्यों को अपराध घोषित करने वाले स्पष्ट प्रावधानों को शामिल किया जा सके.

    याचिका में दावा किया गया है कि यह विधायी चूक संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और व्यक्तियों और समुदायों को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकती है.

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