केपी ओली की कौन सी वो भूल जो उन्हें पड़ी भारी, चली गई पीएम की कुर्सी; चीन का क्या है कनेक्शन?

    नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में बीते कुछ दिनों में जो कुछ हुआ, उसने पूरे क्षेत्र को चौंका कर रख दिया. 20 से 30 साल की उम्र के युवाओं—जिन्हें जेनरेशन-ज़ी (Gen Z) कहा जाता है,ने एक व्यापक और तीव्र जनआंदोलन की शुरुआत की, जिसकी परिणति प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के रूप में हुई.

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    नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में बीते कुछ दिनों में जो कुछ हुआ, उसने पूरे क्षेत्र को चौंका कर रख दिया. 20 से 30 साल की उम्र के युवाओं—जिन्हें जेनरेशन-ज़ी (Gen Z) कहा जाता है—ने एक व्यापक और तीव्र जनआंदोलन की शुरुआत की, जिसकी परिणति प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के रूप में हुई. इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत सोशल मीडिया बैन से हुई, लेकिन इसके पीछे की परतें कहीं ज्यादा गहरी थीं.


    नेपाल सरकार द्वारा अचानक फेसबुक, एक्स (पूर्व में ट्विटर), यूट्यूब जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने के बाद, युवाओं में भारी आक्रोश फैल गया. टिक-टॉक को बैन से बाहर रखने का फैसला इस आग में घी का काम कर गया. सरकार के इस पक्षपातपूर्ण निर्णय ने यह संकेत दे दिया कि कुछ मंचों पर नियंत्रण के पीछे राजनीतिक इरादे भी हैं. परिणामस्वरूप, हजारों युवा सड़कों पर उतर आए. देखते ही देखते यह विरोध एक सशक्त जनांदोलन में बदल गया.

    ओली सरकार के खिलाफ बगावत: संसद भवन जलाया, कर्फ्यू भी बेअसर

    काठमांडू की सड़कों पर प्रदर्शनकारियों का सैलाब उमड़ पड़ा. हालात इतने बिगड़ गए कि मंगलवार को कर्फ्यू लगाया गया, लेकिन उसका कोई असर नहीं दिखा. प्रदर्शनकारी संसद भवन तक पहुंच गए और आगजनी की घटनाएं सामने आईं. त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास से भी धुएं के गुबार उठते देखे गए, जिसके चलते हवाई संचालन रोकना पड़ा. इस दौरान पुलिस की ओर से फायरिंग की गई, जिसमें 21 लोगों की मौत हो गई और 250 से अधिक घायल हो गए. इसके बाद प्रदर्शन और भी अराजक रूप में बदल गया.

    टिक-टॉक को क्यों मिली छूट?

    सरकार ने कुल 26 ऐप्स पर रोक लगाई थी, लेकिन टिक-टॉक को इसमें शामिल नहीं किया गया. इसका कारण यह बताया गया कि यह चीनी ऐप पहले से ही नेपाल में रजिस्टर्ड है और उसने स्थानीय कानूनों का पालन करने की बात मानी थी. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि टिक-टॉक को छोड़ना केवल तकनीकी कारण नहीं था, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक रणनीति भी थी. यह मंच नेपाल के युवाओं के बीच राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र की मांग जैसी विचारधाराओं को तेज़ी से फैला रहा था. ऐसे में सरकार का इस प्लेटफॉर्म से दूरी बनाना शायद उसके लिए ज्यादा राजनीतिक जोखिम का कारण बन सकता था.

    बेरोज़गारी और हताशा से उपजा गुस्सा

    विश्व बैंक के अनुसार, नेपाल में युवाओं की बेरोजगारी दर 20% से अधिक है. हर दिन हजारों युवा रोजगार की तलाश में विदेश जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में सोशल मीडिया युवाओं के लिए केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति और विरोध का माध्यम बन गया है. टिक-टॉक ने इस आंदोलन को तेज़ और संगठित किया. छोटे-छोटे वीडियो के ज़रिए युवाओं ने भ्रष्टाचार, राजनीतिक असंतोष, और व्यवस्था में बदलाव की मांग को देशभर में फैला दिया.

    टिक-टॉक और चीन से नज़दीकियों का राजनीतिक गणित

    विश्लेषकों का मानना है कि ओली सरकार द्वारा टिक-टॉक को न छूने के पीछे चीन के साथ बढ़ते संबंधों की अहम भूमिका थी. हाल ही में ओली और शी जिनपिंग की SCO सम्मेलन में हुई मुलाकात के दौरान चीन ने नेपाल को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स में शामिल करने की बात की थी. ओली ने 'वन चाइना पॉलिसी' के प्रति समर्थन जताया था और आश्वासन दिया था कि नेपाली धरती का इस्तेमाल किसी भी चीन-विरोधी गतिविधि के लिए नहीं होगा. इसलिए टिक-टॉक जैसे चीनी मंच पर बैन न लगाना, कूटनीतिक समीकरणों से भी जुड़ा रहा.

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